vsu2avsu2a - vasudha1.webs.com · श्याम स िंह शशश ग लग ह ¨...

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EDITOR EDITOR EDITOR EDITOR - - - - PUBLISHER PUBLISHER PUBLISHER PUBLISHER : : : : Dr. Sneh Thakore Dr. Sneh Thakore Dr. Sneh Thakore Dr. Sneh Thakore Awarded By The President Of India Awarded By The President Of India Awarded By The President Of India Awarded By The President Of India Limka Book Record Holder Limka Book Record Holder Limka Book Record Holder Limka Book Record Holder VASUDHA VASUDHA VASUDHA VASUDHA A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI ON ON ON ON Year 16, Issue 63 Year 16, Issue 63 Year 16, Issue 63 Year 16, Issue 63 July July July July-Sept., 2019 Sept., 2019 Sept., 2019 Sept., 2019 kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka vsu2a vsu2a vsu2a vsu2a s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn MkW- Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur wart ke ra*3 wart ke ra*3 wart ke ra*3 wart ke ra*3^ ^ ^ ^ pit μara purS¡t pit μara purS¡t pit μara purS¡t pit μara purS¡t ilMka buk irka ilMka buk irka ilMka buk irka ilMka buk irka$ $ $ $ DR ho DR ho DR ho DR hoLDr LDr LDr LDr v8R ÉÎ - A.k ÎË, jula{-istMbr ÊÈÉÑ

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  • शहर के लोग

    पद्मश्री डॉ. श्याम स िंह शशश

    आग लगी ह ै

    शिशिज-वनों में

    लपटें उठ रही हैं

    जै े चौकड़ी भरि ेद्वाभा के

    द्रिुगामी नीले हररन

    जै े नुहरे रिंगों की बकररयों के शशशु

    छलािंगें भर रह ेहैं

    अपने आश्रय-स्थल की ओर जािे हुए.

    शहर के नीचे

    उग रहा ह ै

    एक किंकरीट का गुलाब

    गशिशवहीन डिंठल शलए

    कक ी अध:कोष्ठ की

    कर रहा ह ैप्रिीिा

    चािंद्रायण पराग के शलए

    और आग की लपटों में ााँ लेने को

    किंकरीटी गुलाब की पिंखुररयों में खोए

    अदशृ्यप्राय

    दौड़िे लोग

    ुखों े ऊबिे लोग

    द:ुखों में डूबिे लोग

    शहर के लोग.

  • 16, 63 2019 1

    डॉ. (पोस्ट-डॉक्टरल फ़ेलोशिप अवाडी)

    (भारत के राष्ट्रपशत द्वारा राष्ट्रपशत भवन में "शिन्दी सेवी सम्मान" से सम्माशनत)

    सम्पादकीय २

    मानशसक स्वाधीनता के शलए

    शिन्दी की दरकार प्रो. शिरीश्र्वर शमश्र ७ शिन्दी की शिन्दी में िान ररखि चंद रााँका ‘कल्पेि’ ९

    उसका क़सूर क्या था?.... मधु अरोड़ा १०

    ऐ मेरी क़लम शिव चौिान ‘शिव’ १८

    सववकाशलक कृष्ण सुिील िमाव १९

    मृितृष्णा मोिनजीत कुकरेजा २१

    फ़ादसव ड े मदन लाल िुप्ता २२

    यि दिे भारत अरुण शतवारी २५

    दिुावरानी डॉ. िोपेि मोिन जैसवाल २७

    ग़ज़ल दवेकी नन्दन ‘िांत’ ३१

    लावाररस कुत्तों की अनकिी त्रासदी तारकेि कुमार ओझा ३२

    स्वयं शमट्टी में शमलकर शविम्भर व्यग्र ३३

    सुभद्रा कुमारी चौिान मनोज कुमार िुक्ल ‘मनोज’ ३४

    तुलसी िनाम िैशसल कादम्िरी मेिरा ३५

    शसतम्िर की िवा डॉ. सुषम िेदी ४१

    ज्ञान के मंददरों का अशनश्र्चय डॉ. चन्द्र कान्त शतवारी ४२

    पैिंद डॉ. आस्था नवल ४४

    ििर के लोि पद्मश्री डॉ. श्याम ससंि िशि १अ

    डॉ. स्नेि ठाकुर का रचना संसार ४४अ

    16 Revlis Crescent, Toronto, Ontario M1V-1E9, Canada. TEL. 416-291-9534 Annual subscription..........$25.00, . .

    By Mail $35.00, International Mail $40.00

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  • 16, 63 2019 2

    भारत में सम्पन्न हुए शवश्व के सिस ेिड़ ेलोकतांशत्रक चनुाव न ेअपनी एक शमसाल कायम कर दी ि.ै माननीय मोदी जी की प्रिंसनीय जीत को नमन और उन्िें वसुधा एवं अपनी ओर से िधाई तथा िुभ-कामनाएाँ

    पे्रशषत करती हाँ. माननीय मोदी जी का अप्रशतम, ओजस्वी, अद्भुत नारा “सिका साथ, सिका शवकास, सिका

    शवश्वास” और उनका भशवष्य का दशृिकोण “शवरासत के साथ शवज़न” साशववक शवचारों से पररपूणव ि.ै ईश्र्वर उन्िें

    इन्िीं सद्भावनाओं की ऊजाव का िाथ पकड़ े आिे िी आिे प्रिशत-पथ पर िढ़ते रिने की पे्ररणा दतेा रि.े

    शवजयोपरांत उनके द्वारा ददया िया पे्ररणादायी भाषण यिााँ यथावत् उद्धतृ कर रिी हाँ –

    भारतीय जनता पाटी के यिस्वी, पररश्रमी अध्यक्ष भाई अशमत िाि जी, भारतीय जनता पाटी के सभी

    वररष्ठ साथी और प्यारे भाइयो और ििनो,

    आज स्वयं मेघराज भी इस शवजयोवसव में िरीक िोने के शलए िमारे िीच िैं।

    २०१९ लोकसभा का जनादिे, िम सि दिेवाशसयों के पास नए भारत के शलए जनादिे लेने के शलए

    िए थे। आज िम दखे रि ेिैं, दिे के कोरट-कोरट नािररकों ने इस फकीर की झोली को भर ददया। मैं भारत के

    १३० करोड़ नािररकों का सर झुकाकर के नमन करता हाँ। लोकतांशत्रक शवश्व में २०१९ का ये जो मतदान का

    शसफव आकड़ा ि,ै ये अपने आप में लोकतांशत्रक शवश्व के इशतिास की सिसे िड़ी घटना िै, पूरे शवश्व की ये सिस े

    िड़ी घटना ि।ै दिे आजाद हुआ, दकतने लोकसभा के चनुाव हुए, लेदकन आजादी के िाद, इतने चुनाव िोने के

    िाद सिसे अशधक मतदान इस चुनाव में हुए िैं। और वो भी ४०-४२ शडग्री िमी के िीच में, ये अपन ेआप में

    भारत के मतदाताओं की जािरूकता, लोकतंत्र के प्रशत भारत की प्रशतिद्धता, पूरे शवश्व को इस िात को रशजस्टर

    करना िोिा, पूरे शवश्व को भारत की लोकतांशत्रक िशि को पिचानना िोिा।

    इस अवसर पर मैं, इस लोकतंत्र के उवसव में, लोकतंत्र के खाशतर शजन-शजन लोिों ने िशलदान ददया ि,ै

    जो लोि घायल हुए िैं उनके पररवार के प्रशत मेरी सम्वेदना प्रकट करता हाँ। और लोकतंत्र के इशतिास में

    लोकतंत्र के शलए मरना, ये शमसाल आने वाली पीदढ़यों को पे्ररणा दतेी रििेी। मैं चनुाव आयोि को, सुरक्षािलों

    को, इस लोकतंत्र की व्यवस्था को साँभालने वाल ेिर दकसी को उत्तम तरीके से लोकततं्र में शवश्वास िढ़ाने वाली

    व्यवस्था दनेे के शलए, िहुत िी उत्तम तरीके से चुनाव प्रदियाओं को सम्पन्न कराने के शलए हृदयपूववक िहुत-िहुत

    िधाई दतेा हाँ।

    साशथयो, जि मिाभारत का युद्ध समाप्त हुआ ति श्री कृष्ण से पूछा िया दक आप दकसके पक्ष में थे। मैं

    समझता हाँ, उस समय मिाभारत के काल में भिवान श्री कृष्ण ने जो जवाि ददया था वो आज २१वीं सदी में,

    २०१९ के इस चुनाव में सिदंसु्तान के १३० करोड़ नािररकों ने, जनता जनादवन न ेश्री कृष्ण के रूप में जवाि

    ददया ि।ै और श्री कृष्ण ने जवाि ददया था दक मैं दकसी के पक्ष में निीं था, मैं तो शसफव िशस्तनापुर के शलए

    िशस्तनापुर के पक्ष में खड़ा था। आज १३० करोड़ नािररक श्री कृष्ण के रूप में भारत के शलए खड़ ेिैं, भारत के

    शलए मतदान दकया ि ै और इसशलए दिे के सामान्य नािररक की य े भावना भारत के उज्जवल भशवष्य की

    िारंटी ि।ै इस चुनाव में मैं पिले ददन स ेकि रिा था, ये चुनाव कोई दल निीं लड़ रिा िै, कोई उम्मीदवार निीं

    लड़ रिा ि,ै कोई नेता निीं लड़ रिा िै, ये चुनाव दिे की जनता लड़ रिी ि।ै शजनके आाँख-कान िंद थ ेउनके

    शलए मेरी िात समझना मुशश्कल था, लेदकन मेरी उस भावना को जनता जनादवन ने प्रकट कर ददया ि ैऔर

    इसशलए अिर कोई शवजयी हुआ ि ैतो सिदंसु्तान शवजयी हुआ िै, अिर कोई शवजयी हुआ ि ैतो लोकतंत्र शवजयी

    हुआ ि,ै अिर कोई शवजयी हुआ ि ैतो जनता जनादवन शवजयी हुई ि।ै और इसशलए िम सभी भारतीय जनता

  • 16, 63 2019 3

    पाटी के कायवकताव, िम सभी एनडीए के साथी नम्रतापूववक इस शवजय को जनता जनादवन के चरणों में समर्पवत

    करते िैं।

    इस लोकसभा के चुनाव में जो शवजयी हुए िैं, उन सभी शवजेताओं को मैं हृदयपूववक िहुत-िहुत िधाई

    दतेा हाँ और सभी शवजयी, दकसी भी दल से जीत कर आए िों, दकसी पाश्ववभूशम स े आए िों, लेदकन दिे के

    उज्जवल भशवष्य के शलए प्रशतिद्धता के साथ कंधे से कंधा शमलाकर के भारत के उज्जवल भशवष्य के शलए शवजयी

    सभी जन, सभी प्रशतशनशध आने वाले ददनों में दिे की सेवा करेंिे, इस शवश्वास के साथ मैं उन सि को

    िुभकामनाएाँ दतेा हाँ।

    चार राज्यों में भी चुनाव थे, ओशडिा, आन्र, शसदिम, अरुणाचल। उन शवधानसभाओं में जो प्रशतशनशध

    चुन कर आए िैं, उन राज्यों की जनता ने शजन सरकारों को चुना ि ैउनका भी मैं िहुत-िहुत अशभनंदन करता हाँ।

    और मैं उन सभी सरकारों को शवश्वास ददलाता हाँ दक भारतीय जनता पाटी भारत के संशवधान को समर्पवत िै,

    फेडरशलज्म पर समर्पवत ि ैऔर इसशलए इन चीजों को शवजय प्राप्त करन ेवाले लोिों को मैं शवश्वास ददलाना

    चािता हाँ दक कें द्र सरकार उन राज्यों की शवकास यात्रा में पूरी तरि कंधे से कंधा शमलाकर के उनके साथ

    चलेिी। जैसा िमारे अध्यक्ष जी न ेकिा की भारतीय जनता पाटी के करोड़ों कायवकताव, उनके पररश्रम, उनका

    पुरुषाथव, इतना िवव िोता ि ैदक शजस दल में िम िैं उस दल में ऐसे ददलदार लोि िैं। कोरट-कोरट कायवकताव शसफव

    एक िी भाव, भारत माता की जय और कुछ निीं, व ेकायवकताव, वे भारतीय जनता पाटी पररवार का प्रवयेक

    साथी कोरट-कोरट अशभनंदन का अशधकारी िै, शजसने शनस्वाथव भाव से लोकतंत्र का झडंा ऊाँ चा रखते हुए दिे के

    सामान्य मानव की आिाओं-आकांक्षाओं की पूर्तव के शलए जी-जान से, लोकतांशत्रक तरीके स ेइस पूरे लोकिािी

    के उवसव में िरीक िो कर के उसकी आन, िान, िान िढ़ाने में यिस्वी भूशमका शनभाई ि।ै

    भारतीय जनता पाटी की शविेषता ि ैऔर शविेषता ये ि ैदक िम कभी दो भी िो िए, लेदकन िम कभी

    अपने मािव से शवचशलत निीं हुए, आदिों को ओझल निीं िोने ददया, ना रुके, ना थके, ना झुके, कभी िम दो भी

    िो िए तो भी और आज दोिारा आ िए। दो स ेदोिारा आने तक इस यात्रा में अनेक उतार-चढ़ाव आए िैं। दो थ े

    ति भी शनराि निीं हुए, दोिारा आए ति भी ना िमारी नम्रता छोड़ेंिे, ना िमारा शववेक छोड़ेंिे, ना िमारे

    आदिों को छोड़ेंिे, ना िमारे संस्कार छोड़ेंिे।

    साशथयो, अभी िमारे अध्यक्ष जी चनुाव नतीजों की कुछ िाईलाइट्स िता रि ेथे। मैं स्वयं आज काफी

    व्यस्त था उसके कारण चुनाव नतीजों पर मेरा ध्यान निीं था और इसशलए मुझे पूरी जानकारी भी निीं ि ैदक

    किााँ क्या हुआ, कैसे हुआ, लेदकन अध्यक्ष जी ने जो शवस्तार से िताया, मैं आज रात के िाद समय शनकाल कर के

    दखेूाँिा दक आज ददन भर क्या-क्या हुआ ि।ै लेदकन जो अध्यक्ष जी ने िताया, ये अपने आप में सिदंसु्तान के

    पॉलीरटकल पंशडतों को, उनकी सारी २०वीं सदी की सोच को छोड़ना पड़िेा। ये २१वीं सदी ि,ै ये नया भारत

    ि,ै ये चुनाव का शवजय, कोई किता ि ैमोदी-मोदी, ये मोदी का शवजय निीं ि।ै ये दिे में ईमानदारी के शलए

    तड़पते हुए नािररक की आिा-आकांक्षाओं की शवजय ि,ै ये २१वीं सदी के सपनों को लेकर चल पड़ ेनवजवान

    का शवजय ि।ै य ेशवजय आवमसम्मान, आवमिौरव के साथ एक िौचालय के शलए तड़पती हुई, उस मााँ की शवजय

    ि।ै ये शवजय उस िीमार व्यशि का ि ैजो चार-चार, पााँच-पााँच साल से पैसों के अभाव में उपचार निीं करवा पा

    रिा था, शजसका आज उपचार िो पाया उसके आज आिीवावद की शवजय ि।ै ये शवजय दिे के उन दकसानों की ि ै

    जो पसीना ििा कर के राष्ट्र का पेट भरने के शलए अपने पेट को भी परेिान करता रिता ि ैऔर खुद जिमत

    उठाता रिता ि,ै य ेउसकी शवजय ि।ै ये उन ४० करोड़ असंिरठत मजदरूों की शवजय िै, शजनको पिली िार,

    लेफ्ट के लोिों ने शवचार िहुत रखे िोंिे, लेदकन इस दिे में ऐसी सरकार शजस पर लफे्ट का लेिल तो निीं िै,

  • 16, 63 2019 4

    लेदकन ४० करोड़ लोिों के शलए, असंिरठत कामदारों के शलए पेंिन योजना लाि ू कर के उनको सम्माशनत

    जीवन दनेे का काम दकया ि,ै ये उनकी शवजय ि।ै जो िेघर सजंदिी िुजारते-िुजारत ेआज पिे घर में रिने िए

    िैं, ये उनकी शवजय ि ैऔर शजनका २०२२ तक पिा घर िनना तय ि ैउनका शवजय ि।ै

    भाइयो-ििनो, ये शवजय उन मध्यम विव के पररवार का िै, जो काननू-शनयम का पालन करता रिा, जो

    दिे की भलाई के शलए टैक्स दतेा रिा, लेदकन ना कभी उसे सम्मान शमला, ना िी उस ेकभी भरोसा हुआ दक जो

    वो टैक्स दतेा ि ैवो दिे के काम आता ि ैक्या? पााँच साल में अनुभव दकया की जो द ेरिा ि ैवो सिी जिि पर

    जा रिा ि,ै सिी काम आ रिा ि।ै उस मध्यम विव को जो संतोष हुआ ि ैवो संतोष इन चुनाव नतीजों में नजर आ

    रिा ि।ै ईमानदारी को जो ताकत शमली ि ैउस ताकत को इस चनुाव न ेएक नई स्वीकृशत दी ि।ै और इस प्रकार

    से जो िदलाव आया ि ैउस िदलाव ने ये पररवतवन लाया ि।ै

    भाइयो-ििनो, िमारे दिे में ये चुनाव ऐसा हुआ, वरना आपने दखेा िोिा ३० साल तक लिातार दिे

    में शविेष रूप से, वैसे ये ड्रामेिाजी तो लम्िे समय से चल रिी ि।ै एक ऐसा सपं्रटआउट, एक ऐसा टैि फैिन िो

    िई थी, कुछ भी करो उसको लिा लो िंिा स्नान करने शजतना पुण्य शमल जाता था और पूरी तरि नकली, उस

    टैि का नाम था सेक्यूलररज्म और नारे लित ेथ ेसेक्यलूर एक िो जाओ-सेक्यूलर एक िो जाओ। आपन ेदखेा

    िोिा २०१४ से १९ आते-आते उस पूरी जमात न ेिोलना िी िंद कर ददया। इस चनुाव में एक भी राजनीशतक

    दल सेक्यूलररज्म का नकाि पिनकर दिे को िुमराि करने की शिम्मत निीं कर पाया ि।ै दसूरा, सिदंसु्तान में

    कोई चुनाव ऐसा निीं िया, शजसके कें द्र सिंद ुमें माँििाई ना रिी िो, ये चुनाव ऐसा ि ैजिााँ माँििाई पर एक भी

    शवरोधी दल ने आरोप निीं लिाया। ये चुनाव ऐसा ि ै दक शजसमें सिदंसु्तान के शपछले कोई भी चुनाव उठा

    लीशजए, सि चुनाव भ्रिाचार के मुद्द ेसे राँिे िए थे। भ्रिाचार के मुद्दों पर चुनाव लड़ ेिए थे, भ्रिाचार के मुद्दों

    पर जवाि दनेे पड़ ेथे। ये पिला चुनाव ऐसा था शजसमें दिे का कोई राजनीशतक दल पााँच साल के िासन पर

    भ्रिाचार का एक आरोप निीं लिा पाया। भारत के लोकतंत्र में ये तीन चीजें कासंटेंट रिी िैं, इस चनुाव में

    शमससंि थीं। इसशलए पॉलीरटकल पंशडतों को समझ निीं आ रिा था दकस तराजू स ेचीजों को तौला जाए।

    भाइयो-ििनो, इस चुनाव ने २१वीं सदी की एक मजिूत नींव िमारे सामाशजक, साववजशनक,

    राजनीशतक जीवन के शलए शनर्मवत की ि ैऔर मैं चाहाँिा जो दिे का उज्जवल भशवष्य चािते िैं। सरकार कौन

    िने, दकसकी िने, कौन आए-कौन जाए, वो तो जनता तय करती रििेी, लेदकन भारत के उज्जवल भशवष्य के

    शलए, दिे की एकता और अखंडता के शलए अि भारत ने, भारत की जनता ने इस चनुाव में एक नया नैरेरटव

    दिे के सामने रख ददया ि।ै सारे समाजिाशियों को अपनी पुरानी सोच पर पुनर्ववचार करने के शलए दिे के

    िरीि से िरीि व्यशि ने मजिूर कर ददया िै, और वो क्या ि?ै अि इस दिे में शसफव दो जाशत िचेिी, दो जाशत

    िी रिने वाली ि ैऔर दिे इन दो जाशत पर िी कें दद्रत िोने वाला ि।ै ये जाशत के नाम पर खेल खेलने वाले लोिों

    को िहुत िड़ा प्रिार इस चुनाव में हुआ ि।ै और दो जाशत ि,ै कौन सी? अि २१वीं सदी में भारत की एक जाशत

    ि ैिरीि और दसूरी जाशत ि ैदिे को िरीिी से मुि कराने के शलए कुछ ना कुछ अपना योिदान दनेे वालों की।

    एक वो िैं जो िरीिी से िािर आना चाित ेिैं, दसूरे वो िैं जो िरीिी से दिे को मुि कराना चािते िैं। ये दो िी

    जाशत िैं और इसशलए िमें २१वीं सदी में इन दोनों को सिि करना ि।ै िरीिी स ेिािर शजसको लाना ि ैउसको

    भी सिि करना ि ैऔर िरीिी से िािर लान ेमें जो िढ़-चढ़ कर मदद कर रिा ि ैउसको भी ताकतवर िनाना

    ि,ै ये दो िशियााँ इस दिे पर से िरीिी के कलंक को शमटा सकती िैं, इस सपने को लकेर के िमें चलना ि।ै

    दोस्तों, ये चुनाव इसशलए मिववपूणव ि ै दक इसी कालखडं में, ये २०१९ से २०२४ ये पााँच साल का

    कायवकाल और इतना प्रचंड जनमत िहुत िड़ी घटना ि ैजो, शवश्व को अचशम्भत करने वाली घटना ि।ै पल भर

    याद कीशजए, यिी समय ि ैजि मिावमा िााँधी के १५०वीं वषविााँठ दिे मनाएिा। यिी समय ि ैजि २०२२ में

  • 16, 63 2019 5

    भारत आजादी के ७५ साल मनाएिा, िााँधी-१५० और भारत-७५ । इन पााँच सालों में १९४२ से १९४७ के

    साथ िम प्रशतफल जोड़कर के दखेें। १९४२ से १९४७ दिे का िर व्यशि जो भी करता था आजादी के शलए

    करता था। स्कूल छोड़ दतेा था आजादी के शलए, जले जाता था आजादी के शलए, खादी पिनता था आजादी के

    शलए, झाड़ू लिाता था आजादी के शलए, िच्चों को पढ़ाई कराता था आजादी के शलए, स्वदिेी का पालन करता

    था आजादी के शलए। १९४२ से ४७ तक एक जन आंदोलन ने दिे को आजादी ददलान ेमें िहुत िड़ी मदद की।

    ये २०१९ स े२०२४, ये कालखंड दिे के आजादी के शसपाशियों का स्मरण करन ेका ि ैऔर दिेवासी

    भी तय करें दक इन पााँच साल का िम १३० करोड़ लोि, उस समय तो जनसंख्या भी इतनी निीं थी और िड़ी-

    िड़ी सल्तनत को समाप्त कर ददया था। आज िम १३० करोड़ लोि िैं, अिर िम संकल्प कर लें दक दिे को सभी

    मुसीितों से मुि करना ि,ै दिे को एक समृद्ध राष्ट्र की तरफ ले जाना िै, एक शवकशसत भारत िनाकर के सााँस

    लेनी ि।ै िमारे िरीि से िरीि की आवश्यकताओं को पूणव करना िै, अिर २०१९ से २०२४ जो शस्पररट

    आजादी का था वो शस्पररट समृद्ध भारत के शलए िन जाए, स्वतंत्र भारत का वो शस्पररट समृद्ध भारत के शलए

    िन जाए, २०२४ के पिले दिे को िम नई ऊाँ चाइयों पर िम ले जा सकते िैं। और इसशलए दोस्तो, इस चुनाव

    को िमें नम्रता से स्वीकारना ि।ै सरकार तो िहुमत से िनती ि ैऔर जनता ने िना भी दी िै, लेदकन लोकतंत्र के

    संस्कार, लोकतंत्र का शस्पररट भारत के संशवधान का शस्पररट िमें इस िात के शलए शजम्मेवारी दतेा ि ै दक

    सरकार भले िहुमत स ेिनती िो, लदेकन दिे सववमत से िनता ि।ै और इसशलए मैं आज साववजशनक रूप स े

    किता हाँ दक चनुाव में क्या हुआ, कैसे हुआ, कौन क्या िोला, मेरे शलए वो िात िीत चुकी ि।ै िमें आिे दखेना ि,ै

    िमें सि को साथ लेकर के चलना िै, िमारे घोर शवरोधी िोंिे उनको भी साथ लेकर चलना िै, दिेशित के शलए

    चलना ि ैऔर इतन ेिड़ ेप्रचडं िहुमत के िाद भी पूरी नम्रता के साथ चलना िै, लोकतंत्र की मयावदा के िीच

    चलना ि।ै संशवधान िी िमारा सुप्रीम िै, उसी की छाया में, उसी के िर िब्द के भाव को पकड़त ेहुए िमें चलना

    ि ैऔर उस काम में भारतीय जनता पाटी का कोई कायवकताव भी, सिदंसु्तान का िर कोई नािररक भी उसी उमंि

    और उवसाि के साथ िमसे जड़ुिेा, ये मेरा शवश्वास ि।ै

    भाइयो-ििनो, दिे ने िमें िहुत ददया ि,ै मैं आज इस पल दिेवाशसयों के सामने भी कुछ किना चािता

    हाँ। मैं दिेवाशसयों को शवश्वास ददलाना चािता हाँ दक आपने इस फकीर की झोली तो भर दी। मेरे प्यारे

    दिेवाशसयों आपने इस फकीर की झोली भर दी िै, िड़ी आिा-अपेक्षा के साथ भरी ि ैमैं जानता हाँ । आपकी

    आिा-आकांक्षा, आपके सपन-ेआपके संकल्प िहुत कुछ इसके साथ जुड़ा हुआ ि ै मैं भली-भााँशत इस िात की

    िम्भीरता को समझता हाँ, लदेकन मैं इस दिे को कहाँिा दक आपने २०१४ में, मुझे ज्यादा जानत ेनिीं थ ेलेदकन

    आपने भरोसा दकया। २०१९ में आपने मुझे ज्यादा जानने के िाद उसमें और ज्यादा ताकत डाली िै, मैं इसके

    पीछे की भावना को भली-भााँशत समझता हाँ। जैस ेअशमत भाई कि रि ेथे, िहुत वषों के िाद एक चनुी हुई

    सरकार दसूरी िार पूणव िहुमत से और पिले से अशधक ताकत के साथ जीतकर आए, इसका मतलि दिे की

    जनता का दकतना भरोसा ि ैऔर भरोसा जैस ेिढ़ता ि ैशजम्मेवारी और ज्यादा िढ़ती ि।ै इसशलए मैं दिेवाशसयों

    को किना चाहाँिा दक आपने मुझे जो दाशयवव ददया िै, िमारे एनडीए के सभी साशथयों ने जो िमें समथवन ददया

    ि।ै एनडीए के साशथयों ने भी शमलकर के पूरी मेिनत की ि ैति जा कर के मैं दिेवाशसयों से आज जरूर किना

    चाहाँिा और इसे मेरा वादा माशनए, मेरा संकल्प माशनए, मेरा समपवण मान लीशजए, मेरी प्रशतिद्धता माशनए,

    लेदकन मैं जरूर कहाँिा दक आपने जो मुझे जो दफर से काम ददया ि ै - आने वाले ददनों में मैं िदइराद े से,

    िदनीयत स ेकोई काम निीं करूाँ िा। काम करते-करते िलती िो सकती ि ैलेदकन िदइराद ेसे, िदनीयत स ेमैं

    कोई काम निीं करूाँ िा। दसूरा दिेवाशसयों आपने मुझे इतना िड़ा भरोसा, इतनी िड़ी शजम्मेवारी दी ि ैति मैं

  • 16, 63 2019 6

    दिेवाशसयों को दफर से कहाँिा दक मैं मेरे शलए कुछ निीं करूाँ िा। और तीसरी िात मैं साववजशनक रूप स ेकिना

    चाहाँिा, मेरे समय का पल-पल, मेरे िरीर का कण-कण शसफव और शसफव दिेवाशसयों के शलए ि।ै मेरे दिेवासी

    आप जि भी मेरा मूल्यांकन करें, इन तीन तराजू पर जरूर मुझे कसते रिना, कभी कोई कमी रि जाए तो मुझ े

    कोसत ेरिना, लेदकन मैं दिेवाशसयों को शवश्वास ददलाता हाँ मैं साववजशनक रूप स ेजो िातें िताता हाँ उसको जीन े

    के शलए भरपूर प्रयास करता हाँ।

    मैं आज िमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष, उनकी पूरी टीम, राज्यों के अध्यक्ष, राज्यों की टीम, पाटी के पन्ना प्रमुख

    तक के लोि, लोि पन्ना प्रमुख की मजाक उड़ाते रिते िैं, लेदकन उस पन्ना प्रमुख की ताकत क्या िोती ि ैवो इस

    चुनाव में पता चल िया। पन्ना प्रमुख से लेकर राष्ट्रीय प्रमुख तक इन लक्षावशध कायवकतावओं को, उनके पररश्रम

    को, उनकी प्रशतिद्धता को एक िार हृदय से िहुत-िहुत अशभनंदन करता हाँ, िहुत-िहुत धन्यवाद करता हाँ,

    धन्यवाद।

    मेरे साथ िोशलए, भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की

    जय, वंद ेमातरम, वंद ेमातरम, वंद ेमातरम, वंद ेमातरम, वंद ेमातरम।

    भारत के प्रधान मंत्री स्वप्नद्रिा माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी का पे्ररणादायी, ओजस्वी, कल्याणकारी

    नारा “सिका साथ, सिका शवकास, सिका शवश्वास” शजसकी प्रयोजना में भारत के उज्ज्वल भशवष्य का स्वप्न

    शनशित ि,ै उसकी मंिल-पूर्तव ितेु वसुधा की ओर से उन्िें अनेकानके िुभकामनाएाँ अर्पवत –

    सादर, सस्नेह, स्नहे ठाकुर

  • 16, 63 2019 7

    मानशसक स्वाधीनता के शलए शिन्दी की दरकार

    प्रो. शिरीश्वर शमश्र

    (पूवव कुलपशत मिाव मा िााँधी अंतरराष् रीय सिदंी शवश् वशवद्यालय)

    स्वतंत्र भारत के सत्तर साल से ऊपर िो चुके िैं पर राज भाषा सिदंी को लेकर आज भी एक संभ्रम की

    शस्थशत िनी हुई ि।ै वस्तुतः (अघोशषत) राज भाषा अाँग्रज़ेी िी िनी हुई ि।ै राजकीय कायव में सिदंी अभी भी

    अनुवाद की िी भाषा ि ै और शिक्षा तथा ज्ञान जसैे आधारभूत क्षेत्रों में उसकी पहुाँच सीशमत ि।ै न्याय और

    स्वास््य के क्षेत्रों की दशृि से भी सिदंी की िशि दिुवल ि।ै कुल शमला कर वि पूणव राज भाषा के क़ाशिल निीं िो

    सकी ि ैऔर भशवष्य में कि िोिी इसका कोई अता-पता निीं ि ै। दसूरी ओर सिदंी राि के शलए आलाप शलया

    जाना राष्ट्रीय पंचांि का शिस्सा िन चुका ि।ै इसका मुहतव आते िी प्रदिे और दिे के स्तर पर सिदंी को लेकर

    सम्मान, सवकार, संिोष्ठी, कायविाल, अशधवेिन, पुरस्कार, अशभनंदन और सम्मेलन आयोशजत िोने लित ेिैं ।

    वैसे स्थाशपत व्यवस्था के तित संसद की राजभाषा सशमशत शनरंतर दिे भर दौड़-दौड़ कर शवशभन्न

    संस्थानों में सिदंी की ज़मीनी िक़ीक़त का जायज़ा लतेी िैं और उसे माननीय राष्ट्रपशत जी के संज्ञान में लाती िैं।

    माननीय राष्ट्रपशत जी तवसम्िंशधत आदिे भी पाररत करते िैं। भारत सरकार के प्रवयेक मंत्रालय की अपनी -

    अपनी राजभाषा सलािकार सशमशतयााँ िैं। एक कें द्रीय सिदंी सशमशत भी ि।ै सिदंी की उन्नशत के शलए सरकारी

    िजट में व्यवस्था ि।ै सरकारी तंत्र मुस्तैद ि ैऔर एक स्तर पर सिदंी के प्रशत अपने ढंि से संवेदनिील भी ि ै। यि

    उसकी संवैधाशनक िाध्यता भी ि ै। सिदंी भाषी प्रदिेों की सरकारों ने भी अपने-अपने स्तर पर सिदंी के सम्िधवन

    के शलए व्यवस्थाएाँ खड़ी कर रखी िैं। सिदंी की अकादशमयााँ और अनेक संस्थान भी िने िैं जो पुरस्कारों और

    आयोजनों द्वारा सिदंी को प्रोवसाशित करने का कायव करते िैं। ये सारे प्रयास सरकारी तंत्र-जाल में

    औपचाररकताओं के शनवावि तक शसमट जाते िैं। दसूरी ओर कभी शन:स्पृि सिदंी सवेा के संकल्प के साथ िनी

    नािरी प्रचारणी सभा, राष्ट्रभाषा प्रचार सशमशत और सिदंी साशिवय सम्मेलन जैसी सिदंी की ग़ैर सरकारी

    संस्थाएाँ आपसी कलि, स्वाथव और वैमनस्य के कारण अवस्थ िो रिी िैं और प्रायः मरणासन्न-सी दिा में पहुाँच

    रिी िैं।

    सिदंी के उवसव के शलए सिदंी पखवाड़ े का िैनर सरकारी दफ़्तरों पर प्रशतवषव सिुोशभत िोता ि।ै

    परम्परावादी दिे में सरकारी दफ़्तर शनयमपूववक प्रशतयोशिता, भाषण और सम्मान, िायन-वादन और सिदंी-

    स्तुशत का प्रीशतकर अनुष्ठान सम्पन्न करते िैं। यत्र-तत्र सिदंी को लकेर िम्भीर सचतंा भी व्यि की जाती ि ैऔर

    इसके प्रशत समपवण का सवसकंल्प भी दिुराया जाता ि।ै इन सिके दशु्चि में सिदंी जीवी लेखक, अशधकारी और

    भाषाशवद फाँ से रिते िैं कुछ िेमन से और कुछ िड़ ेमनोयोि से। शवशभन्न सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाएाँ भी

    इन कायविमों की व्यवस्था और आयोजन में आए ददन उलझी रिती िैं। निर राजभाषा कायव सशमशत (नराकास)

    की िैठक िोती ि ैऔर सिदंी के शलए खानापूरी का काग़ज़ी दौर चलता रिता ि।ै सिदंी के पे्रशमयों, साशिवयकारों

    और मिारशथयों को अस्त-व्यस्त रखन ेमें इन सभी का िड़ा योिदान ि।ै यि सि दखे सनु कर सिदंी में अशभरुशच

    रखने वालों को कुछ-कुछ सखुकर भी लिता ि।ै परंत ुत्य यिी ि ैदक इन सि प्रलोभनों के तुमुल कोलािल के

    िीच सिदंी को लेकर उठन ेवाले मुख्य प्रश्न प्रायः धरे के धरे िी रि जाते िैं । सिंदी के रथ का पशिया जिााँ धाँसा

    था विााँ से शनकलने का नाम निीं ले रिा ि ै। सि कुछ के िावजूद सिदंी रथ आिे निीं शखसकता ददख रिा ि ै।

    कभी ‘राष्ट्रभाषा‘ किी जाने वाली सिदंी की शस्थशत को लेकर असंतोष िना हुआ ि।ै सिदंी का प्रयोि जिााँ और

  • 16, 63 2019 8

    शजस रूप में िोना चाशिए वसैा अभी निीं िो पा रिा ि।ै सिदंी को वि प्रशतष्ठा और स्थान निीं शमल पा रिा ि ै

    शजसकी वि अशधकाररणी ि।ै

    सरकार वचनिद्ध ि ैदक सिदंी पररपक्व िोते िी और सिके द्वारा स्वीकृत िोते िी पूणव राजभाषा का दजाव

    पा सकेिी। कें द्र की सरकार ने सिदंी के उद्धार के शलए ििृ मंत्रालय के अधीन राजभाषा शवभाि स्थाशपत कर

    रखा ि।ै अनुवाद, प्रशिक्षण और िब्द शनमावण आदद के शनशमत्त एकांत भाव से समर्पवत अनेक सरकारी संस्थान

    वषों से कायवरत िैं । सरकारी कायालयों में सिदंी अशधकारी शनयुि िैं। सरकारी ततं्र की तमाम सीमाओं के

    िावजूद इनके द्वारा मिववपूणव कायव भी हुआ ि।ै भारत के अनेक शवश्वशवद्यालयों और मिाशवद्यालयों में सिदंी

    शवभाि िैं। सिदंी का एक िड़ा प्रकािन व्यापार भी ि।ै सिदंी दफ़ल्मों की धूम मची ि।ै सिदंी मीशडया भी

    ज़िरदस्त ि ैऔर सिदंी िहुल राजनतेा भी िैं। आज सिदंी की भाषा प्रौद्योशिकी भी सुदढ़ृ धरातल पर स्थाशपत ि।ै

    दफर भी सिदंी िाशिए पर क्यों ि ै? क्यों सिदंी शिक्षा, न्याय, स्वास््य और सरकारी काम काज में प्रभावकारी

    ढंि से निीं आ पा रिी ि?ै िम क्यों शनरुपाय हुए जा रि ेिैं? िमारे समक्ष यि यक्ष प्रश्न दक चूक किााँ िो रिी ि ै

    िम्भीर शवचार की अपेक्षा रखता ि ै । सिदंी के प्रयोि से शिक्षा में सृजनावमकता, दक्षता, नािररक जीवन की

    सुशवधा में वृशद्ध, न्याय में पारदर्िवता, लोकतांशत्रक प्रदिया का सिलीकरण और जीवन की िुणवत्ता में वृशद्ध

    सभी जुड़ ेिैं। संस्कृशत और सभ्यता भाषा में िी सााँस लतेे िैं। उनके संरक्षण और उवथान के शलए भी सिदंी की

    अशभवृशद्ध ज़रूरी ि।ै िायद मानशसक ग़़ुलामी के अविेष िचे िैं। अतः सिदंी के पक्ष में राजनैशतक - सामाशजक

    आधार मज़िूत करने के साथ िमें उन दिुवल क्षेत्रों की ओर भी ध्यान दनेा िोिा जिााँ सिदंी की साम्यव की

    सम्भावना ि।ै िमें उन भ्रमों को दरू करना िोिा जो सिंदी की छशव को धूशमल करते िैं।

  • 16, 63 2019 9

    शिन्दी की सिदंी में िान

    ररखि चन्द रााँका 'कल्पिे'

    शिन्दी भाषा की सिंदी में िान,

    शतरंिे के िौरव िाथा की आन।

    राजभाषा का ये पाती सम्मान,

    राष्ट्रभाषा से मेरा भारत मिान।

    संस्कृत के मस्तक पर चमके,

    ससंधी, पंजािी चुनरी में दमके।

    िांग्ला, कोंकणी संि में शथरके,

    राजस्थानी चूशड़यों में खनके ।

    शलशप दवेनािरी रखती ध्यान,

    स्वर व्यंजन में ि ैइसकी िान।

    मात्राओं का िमें कराती ज्ञान,

    िब्द भंडार ि ैअनमोल खान।

    शिन्दी से राष्ट्र का नव शनमावण,

    जन-जन का करती कल्याण।

    दशुनया में भारत की पिचान,

    सिदंी से िोिा जि का उवथान।

    किीर, मीरा, तुलसी, रसखान,

    सिने िाया शिन्दी का िुणिान।

    'ररखि' करता िारद ेका ध्यान,

    पाता शनिददन अनुपम वरदान ।

  • 16, 63 2019 10

    उसका क़सरू क् या था?….

    मध ुअरोड़ा

    उस अजन् मे िच् च ेका क् या क़सूर था? रमा ऐसा सोच भी कैसे पाई? सोचा तो सोचा, करवा कैस ेपाई

    यि जघन् य िव या। िव या िी तो थी उस िच् चे की। दकसने किा था दक यदद िच् चा निीं चाशिये तो शिना प्रीकॉिन

    के सेक् स करो।

    रमा भी क् या करती? सच कि ेतो कोई शवश् वास निीं करेिा। िादी के िुरूआती ददन। अाँशधयारा शघरत े

    िी जय रमा के आस-पास घूमने लिते। रमा का खाना िनाना दशु् वार िो जाता। कई िार तो उसे एक तरि का

    अनजाना डर-सा लिने लिता। िर रात विी दियाएाँ, विी दोिराव। अंतत: स् त्राव और ठंडभरी रात को खुद को

    साफ करना। वसैे कई िार लिता दक वि जय को मना कर द,े ‘प् लीज़, आज निीं। ददल निीं’, पर जय की

    नाराज़िी का खयाल आते िी खुद को समर्पवत कर दतेी। वि ख़ुद एक मध् यविीय पररवार की िी तो िेटी थी, तो

    सपने भी मध् यविीय थे। उसने कभी ऐस ेसपन ेदखेे िी निीं जो पूरे न िो सकें और ददल िेचारा दकरच-दकरचकर

    लहलुिान िो जाये।

    जय से पररचय रमा की शमत्र ने िी कराया था। उन ददनों रमा के पास पक् की नौकरी निीं थी और वि

    ईवसनंि क् लासेस के जररय ेअपनी पढ़ाई पूरी कर रिी थी। रमा को कभी िॉयफ्रैं ड में भी रुशच निीं रिी थी।

    िमेिा सोचती थी दक कौन इनके साथ समय ज़ाया करे। य ेउसकी शज़न् दिी की प्रमुखता तो ि ैनिीं। दफर भी जय

    उसके जीवन में प्रवेि कर िी िये। जय से मुलाक़ातें िढ़ीं। रात को जि रमा का कॉलेज खव म िोता तो जय

    कॉलेज के दरवाज़ ेपर शमलत ेऔर दोनों विााँ स ेस् टेिन के शलये रवाना िो जाते। जय भी क् या करते? इस माया

    निरी में शनतांत अकेले थे। पेइंि िेस् ट िाउस में िाम को जाकर क् या करते? तो ऐसे समय में रमा से मुलाक़ात

    मानो डूिते को शतनके का सिारा थी।

    रमा को अंदर िी अंदर िौला रिता था दक कॉलोनी के दकसी न ेउसे रेस् तरााँ में जय के साथ दखे शलया

    तो उसके घर तक िात न पहुाँच जाये। पृ् वी िोल ि।ै जान-पिचान के लोि किीं न किीं टकरा जाते िैं, वसै े

    िायद कभी न टकरायें पर ऐसे नाज़़ुक समय में ज़रूर शमलेंिे।

    अपनी पढ़ाई के आशखरी वषव में रमा ने नौकरी छोड़ दी थी तादक अच् छे नम्िरों से पास िो सके और एक

    अच् छी नौकरी का सपना दखे सके। िााँ, उसने सप् ताि में दो ददन सिदंी के ट्यूिन पढ़ाना िुरू कर ददया था और

    िाकी ददन लायब्रेरी में िैठकर अपने नोट्स िनान ेका काम। इन् िीं ददनों उसकी जय के साथ नज़दीदकयााँ िढ़न े

    लिी थीं।

    एक िार जि वे दोनों ईरानी रेस् तरााँ में चाय और पेस् री खा रि ेथे, ति रमा ने अपना मुाँि खोला और

    किा, ‘दखेो जय, यि रोज़ िाम का शमलना और चाय पीना दकतने ददन चलेिा? यदद इस दोस् ती को स् थायी रूप

    दनेे में ददलचस् पी रखते िो तो िम शमलेंिे, अन् यथा िम अपनी ददिा िदल देंिे।’

    रमा की मुखरता पर जय अचंशभत रि िये थे। उन् िोंने अपने चेिरे पर िम्भीर भाव लाकर किा, ‘अरे,

    यि क् या कि ददया तुमने? मैंने तो इस रूप में तुमको न दखेा और न सोचा। कुछ समय दीशजये।’ अचानक व े

    औपचाररक िो िये। रमा ने स् वीकृशत में शसर शिला ददया।

    उसके िाद एक सप् ताि तक रमा और जय की मुलाक़ात निीं हुई। रमा ने इस मामले को खवम-सा समझ

    शलया और साथ िी इस िकीी़कत से रू-ि-रू िो िई दक यथाथव दकतना पथरीला िोता ि ैऔर उसने इसे स् वीकार

    भी कर शलया था। एक ददन वि लायब्रेरी में िैठी थी दक जय आये और िोले, ‘आज क् लासेस िंक कर सकती िैं?’

  • 16, 63 2019 11

    रमा ने किा, ‘कोई खास वजि?’ और अचानक की रमा की आाँखों में सपने शतरने लिे थे शजन् िें उसन े

    अपनी आाँखों में आने से मना कर ददया था।

    जय न ेकिा, ‘िााँ, मैंने अपन ेघर में िता ददया ि ैदक मैंन ेमुंिईया लड़की पसन् द कर ली ि ैऔर वे तुम् िारी

    फोटो दखेना चािते िैं। सो फोटो स् टूशडयो चलना ि।ै’

    रमा िुरू से िी काफी सादिी पसंद ि।ै उसे िर समय कान में, नाक में, िाथ में कुछ पिने रिना िेशड़यों

    जैसा लिता ि।ै उस ददन भी उसने कान में कुछ निीं पिना था। जय ने किा, ‘तुम् िारी फोटो तुम् िें पसंद करने के

    शलये भेजी जा रिी ि।ै आज तो कान में कुछ पिन लो।’ रमा ने फुटपाथ से िी काले रंि के मोती खरीदकर कान

    में पिन शलये थे।

    अंतत: फोटो सखंचवाये िये और जय के पररवार को भजे ददये िये। रमा जन् मजात सुन् दर तो थी िी। सो

    उन लोिों को पसन् द आना िी था और इस तरि दो दोस् त पररवारों की रज़ामंदी से शववाि के िंधन में िाँध िये

    थे। रमा ने अपनी सुंदरता और पाक कला से सभी को अपने वि में कर शलया था।

    ससुराल में कुछ ददन रिकर रमा और जय वाशपस अपने ििर आ िये, नौकरी जो थी। जय की कंपनी न े

    िड़ी मुशश् कल से िैचलर फ्लैट ददया था, वि भी िड़ी मेिरिानी से। िााँ, िस, इस कमरे में एक िी फायदा था दक

    सुसशज् जत था। पूरा फनीचर था जो एक जोड़ ेके शलय ेठीक िी था। मंुिई जैस ेििर में यि भी किााँ नसीि िोता

    ि।ै सि रमा के भाग् य को सराि रि ेथे।

    ससुराल में रमा ने दखे शलया था दक वे भी मध् यविव से िी ताल् लुक़ रखते थे। जय की नौकरी अच् छी

    जिि थी तो उनका थोड़ा दिदिा था पररवार में। यि तो िाद में पता चला दक दिुनी िाय की तो लातें सभी

    सिते िैं। रमा ने अपने पुरान ेऑदफस में दफर से नौकरी के शलये आवेदन कर ददया था, यि सोचकर दक कुछ न

    िोने स ेकुछ अच् छा। वि नौकरी उसे शमल भी िई।

    ददन ठीक-ठाक िुज़र रि ेथे। िालत तो यि थी दक पे्रम शववाि हुआ था तो दिजे का लेन दने न िोना

    पिली ितव थी। रमा निीं चािती थी दक वि औरों के दम पर िृिस् थी िसाये। रमा और जय अक् सर रात का

    खाना िािर खाते थे। िािर का खाते-खात ेदोनों िोर िोने लिे थे। दफर भी िािर खाने का शसलशसला क़रीि

    एक साल चला। घर-िृिस् थी का सामान जुटान ेमें समय तो लिना िी था। इसी िीच रमा को अपने िरीर में

    कुछ िदलाव मिसूस िोने लिा। मसलन, समय-िेसमय उशल् टयााँ िोना, दरे रात कुल् फी खाने का ददल करना। उस े

    लिा दक यि क् या िो िया? रमा को िड़ी शिचक िो रिी थी दक कैसे जय को िताये। िादी इतनी पुरानी तो निीं

    हुई थी दक वि जय के साथ पूरी तरि अनौपचाररक िो जाये।

    जि रमा की तशियत थोड़ी शिरी-शिरी रिने लिी और रात को जय के साथ लेटने के शलये मना करन े

    लिी, तो जय ने एक ददन पूछा - ‘क् या िात ि ै रमा, मुझसे इतनी अलि क् यों रिती िो, साथ लेटने से भी

    कतराती िो, क् या िात ि?ै’ ति जाकर रमा ने सकुचात ेहुए जय को अपने अन् दर िोनवेाले पररवतवन के शवषय में

    िताया था। सनुकर जय एक पल को चुप रि ेऔर दफर िोले, ‘इतनी जल् दी मेरा प् यार िााँटनेवाला आ जायेिा तो

    मेरा क् या िोिा?’

    रमा को जय की यि िात समझ में निीं आई। कुछ समय िाद जय ने किा, ‘इतनी जल् दी पे्रिनेंट निीं

    िोना चाशिये था। अभी घर के िालात तो दखे रिी िो। चलो, दफर भी डॉक् टर को ददखा दो। कन् फमव िो िया तो

    सोचेंिे दक क् या करना ि।ै’

    जय की ठंडी आवाज़ और िच् चे के प्रशत रूखा रवैया दखेकर परेिान िो िई। सच कि ेतो वि भीतर स े

    डर िई थी दक किीं.....। इसके िाद उसन ेअपनी आाँखें िंद कर लीं थीं। ददमाग़ सनु् न सा िो िया था। कभी

    कमज़ोरी मिससू न करनेवाली रमा अचानक ख़ुद को कमज़ोर मिसूस करने लिी थी।

  • 16, 63 2019 12

    दसूरे ददन वि सुिि डॉक् टर के यिााँ िई। डॉक् टर न ेनब् ज़ दखेी, आाँखें चेक कीं और किा, ‘कल खून चके

    करवा लो और पेिाि टेस् ट के शलये द ेजाओ। दो ददन िाद ररपोटव शमलेिी।

    रात को जय ने पूछा, ‘डॉक् टर के यिााँ िई थीं? क् या किा डॉक् टर ने?’

    रमा ने किा, ‘इतनी जल् दी कैसे ितायेिी? कल खून चके करेिी और पिला पेिाि भी मााँिा ि।ै कल

    जाऊाँ िी।’ इसके िाद कुछ किना सुनना िाकी निीं रि िया था। दोनों करवट िदलकर लेट िये। जय को लिा

    दक आज रमा को छेड़ना ठीक निीं। उसका मूड ठीक निीं ि।ै

    रमा दसूरे ददन सुिि नौ िजे शिना कुछ खाये शपये अस् पताल िई। साथ िी सुिि का पिला पेिाि

    िीिी में भरकर ले िई। द ेददया। जि डॉक् टर ने रमा के िाथ की नस में इंजेक् िन की सईु घुसाकर खून शलया था,

    वि शिलशिलाकर रि िई थी। पिली िार ददया था खनू।

    उसे रि-रिकर उशल् टयााँ िो रिी थीं। जय उसकी उशल् टयों की आवाज़ से रात को परेिान िो जाते। रमा

    को लिता दक िायद जय मानशसक रूप से शपता िनने के शलये तैयार निीं थे। इसका कारण क् या िो सकता ि?ै

    िादी हुई तो यि काम भी तो िोना िी िै, ये इतन ेशचड़शचड़ ेसे क् यों िो रि ेिैं, जिदक ररपोटव आना तो िाकी ि।ै

    दो ददन िाद वि डॉक् टर के यिााँ िई। डॉक् टर तो शमली निीं पर काउन् टर से िी ररपोटव शमल िई। उन

    ररपोटों में सि मेशडकल टम् सव शलखे थे जो उसकी समझ से िािर थे। काउन् टर िलव स ेपता करना चािा तो वि

    िोली, ‘िमको कुछ िताने का ऑडवर निीं ि।ै डॉक् टर मैडम िाम को आयेंिी, तभी आईये।’

    वि िाम को दफर िई और डॉक् टर को ररपोटव ददखाई। डॉक् टर ने सि पेपर दखेे और िोलीं, ‘रमा,

    आपकी सि ररपोट्सव पॉशजरटव ि,ै याने आप िभववती िैं।’

    सच किा जाये तो रमा को अन् दर से कोई खास खुिी निीं हुई थी। उसकी आाँखों के सामने जय का

    िंभीर चेिरा आ िया। वि डॉक् टर का धन् यवाद करके घर आ िई।

    िाम को जय घर आय ेतो रमा ने चाय दी। चाय पीते-पीते जय ने पूछा, ‘ररपोटव क् या कि रिी ि?ै’

    जि रमा ने िताया दक वि िभववती िो चुकी ि ैतो जय क्षशणक खुि तो हुए पर चिेरे पर वि चमक निीं

    ददखी जो शपतृव व प्राप् त करन ेकी खिर पर ददखनी चाशिय।े

    रमा ने किा, ‘तुम् िें खुिी निीं हुई यि खिर सुनकर?’

    जय न ेकिा, ‘ऐसी िात निीं ि,ै पर तुम तो जानती िो, मेरा पररवार िड़ा ि ैऔर मेरे पास अच् छी

    नौकरी ि ैतो मुझ पर शज़म् मेदारी भी ज् यादा िैं। यदद िच् चा आ िया तो दफर मैं पररवार की मदद निीं कर

    पाऊाँ िा।’

    रमा एक शमनट के शलये सक़ते में आ िई पर दफर खदु को साँभालते हुए किा, ‘तुम क् या चािते िो

    मुझसे?’

    जय ने किा, ‘अपने पररवार से तो मैं कुछ निीं कि सकता पर तुमसे तो कि सकता हाँ।’ जय को िोल-

    िोल िातें करते दखेकर रमा को िुस् सा आ िया। उसने किा, ‘खुलकर किो न। पिशेलयााँ क् यों िुझा रि ेिो?’

    ‘ऐसा ि ैरमा, अभी तो तुम् िें ज् यादा ददन निीं चढ़ ेिैं। क् यों न तुम यि िभव शिरवा दो। मैं दफलिाल यि

    नई शज़म् मेदारी लनेे के शलये तैयार निीं हाँ। तमु् िारी नौकरी भी पक् की निीं ि।ै कभी भी िाथ स ेजा सकती ि।ै घर

    के नाम पर एक कमरा िी ि।ै वैसे यि मेरा सुझाव िै, मानो न मानो तुम् िारी मजीी़व।’

    दकतनी िोशियारी से जय न ेिेंद रमा के पाले में डाल दी थी। सभी मदव ऐस ेिी िोते िैं? उस ेअपना

    चचेरा भाई याद आ िया जो अपनी पव नी को ऐसे िी लचर कारण दकेर तीन िभवपात करवाता रिा और अंतत:

    डॉक् टर ने कि ददया था दक उसकी पव नी कभी मााँ निीं िन सकती। िभाविय की दीवारें ख़ुरदरी िो िई िैं। िभव

    रटकेिा निीं।’

  • 16, 63 2019 13

    रमा ने किा, ‘मुझे सोचने का मौका दो।’ उस ददन से वि पूरे िफ़्ते सो निीं पाई थी। िादी से पिले जय

    ने क् यों निीं िताया था दक उनका पररवार उनकी प्रमुखता में रििेा। इस भावी िच् चे का क् या क़सूर ि?ै क् या वि

    करे और क् या न करे, िस इसी के िीच पेंडुलम की तरि इधर से उधर िोती रिती।

    उधर जय इस इंतज़ार में थे दक दखेें, ऊाँ ट दकस करवट िैठता ि।ै रमा ऑदफस जाती रिी और अि तो

    उसे नौकरी करना और ज् यादा ज़रूरी लिने लिा था। उसे लिने लिा था दक यदद पररवार की ज़रूरतों का

    वास् ता दकेर घर खचव दनेा कम कर ददया तो? जय से िात भी करना था।

    जि रात को दोनों सोने लेटे तो रमा ने िी िुरूआत की, ‘दखेो जय, तुम् िें इतना आसान लिता ि ैिभव

    शिरवाना? िम दोनों के प् यार का पिला सितू पल रिा ि।ै तुम ऐसा कैसे सोच सकत ेिो? तुम भी इतने भाई-

    ििन िो। तुम् िारी मााँ ने तो निीं शिरवाये िभव, दफर तुम यि िात कैसे सोच सकते िो?’

    जय ने कोई उव तर निीं ददया। दोनों के िीच पसरी चुप् पी मािौल को भारी िना रिी थी।

    ‘जय, िोलो न! चुप् पी साधने से काम कैस ेचलेिा? जो भी तुम् िारे मन में ि,ै कि डालो।’

    जय ने मुाँि खोला और िोले, ‘सच कहाँ?’

    ‘िााँ, सच िी किो। ज् यादा ददन चढ़ िये तो मैं कुछ निीं कर पाऊाँ िी।’

    अि जाकर जय खुले, ‘रमा, मुझे अन् यथा मत लेना, पर तुम इस िच् चे को जन् म मत दो। मेरी िालत

    समझो। मैं अभी यि शज़म् मेदारी लेने और साँभालने में समथव निीं हाँ।’ यि किते समय जय रुाँआसे-से िो िये थे।

    रमा ने कुछ निीं किा। उसे एक उिकाई आई और वि भािकर िाथरूम चली िई।

    अि दोनों के िीच कुछ भी किने-सुनन ेको निीं रि िया था। एक वाक् य में जय अपनी िात कि चकेु थे।

    शनणवय तो रमा को लनेा था, िच् चा तो उसके पेट में पलना था। वि क् या करे और क् या न करे, कुछ भी तो समझ

    में निीं आ रिा था। पेट में रि-रिकर िोले उठ रि ेथे। वि अपने पेट को िल् के से दिाकर उन िोलों को उठने से

    रोकने का यव न कर रिी थी। अचानक उसने अपनी आाँखों को नम मिसूस दकया। अाँधेरे में उसके आाँसू कौन

    दखेता और कौन पोंछता? कोरों में आये पानी को उसन ेिथेशलयों में ले शलया और आाँखें िन् द कर लीं।

    सुिि जय िायद जल् दी उठ िये थे। अचानक उसने सुना, ‘रमा, आज काम पर निीं जाना क् या? सुिि के

    आठ िज िये िैं। मैंने चाय िना ली ि।ै तुम जल् दी स ेतैयार िो जाओ।’

    रमा न ेकिा, ‘आज मैं काम पर निीं जा रिी। ठीक निीं लि रिा। आज आराम करूाँ िी। िााँ, चाय द े

    जाओ और िााँ, ब्रेड िटर खाकर चले जाना।’

    रमा की ठंडी आवाज़ सुनकर जय कुछ शमनटों के शलये शिल ज़रूर िये थे, पर चेिरे पर कोई भाव निीं

    आने ददया और रमा को चाय शिशस् कट दकेर निाने चल ेिये। रमा चाय पीकर दफर सो िई। रात उस ेठीक स े

    नींद निीं आई थी। जय भी शिना कोई िात दकये तैयार िोकर काम पर चले िये।

    क़रीि दोपिर के िारि िज ेरमा उठी। िरीर भारी लि रिा था। अनमन ेमन से उठी और अपने शलय े

    आलू की ज् यादा तेल और मसालेवाली सूखी सब् ज़ी िनाई। ब्रेड के चार पीस शलये। अपने शलये निीं पर अन् दर

    पलनेवाले िच् चे के शलय ेतो पेट में कुछ डालना था। उसन ेयि शमनी लचं खाया और दफर निाने चली िई।

    अि शनणवय तो उसे लेना िी था। जय अपनी िात कम िब् दों में कि चुके थे। घड़ी दखेी। िाम के चार

    िजे थे। उसन ेअपनी डॉक् टर को फोन दकया, ‘िलैो, डॉक् टर, मैं आज िाम को आ सकती हाँ? आपसे कुछ ज़रूरी

    िात करना ि।ै’ उधर से आवाज़ आई, ‘िााँ, आ जाओ। अि तो तुमको आना िोिा, छ: िजे आ जाओ।’

    िाम को छ: िजे रमा डॉक् टर के यिााँ िई। डॉक् टर ने उसका चेकअप दकया और दफर पूरा टाईम टेिल

    िना डाला, ‘दखेो रमा, िभव धारण करने के िाद िर मिीने ये-ये परीक्षण करवाने िोंिे। िर परीक्षण की फीस

    अलि-अलि िोिी।’ रमा चुपचाप सुनती रिी।

  • 16, 63 2019 14

    सि सनुन े के िाद रमा न ेकिा, ‘डॉक् टर, आपका आभार सि िताने के शलये। लेदकन मुझे अभी यि

    िच् चा निीं चाशिये।’

    रमा की आवाज़ सुनकर डॉक् टर को आश् चयव हुआ पर उन् िोंने अपनी सामान् य आवाज़ में पूछा, ‘यि आप

    क् या कि रिी िैं? यदद अन् यथा न लें तो कारण जान सकती हाँ?’ डॉक् टर