shih a ciel ma se oct cct og)

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SHIH A CIEL Ma Se Oct CCT OG) SaboLciac dl लिकप काठा लोलताठ।

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SHIH A CIEL Ma Se Oct CCT OG)

Sabo Lciac dl लिकप का ठा लो लताठ।

जजधरम की कहानिया

लखक :

बर. हरिभाई सोनगढ

अनवादक :

सौ. सवरणलता जन एम.ए. , नागपर

समपादक :

पणडित रमशचनद जन शासतरी, जयपर

परकाशक :

अखिल भारतीय जन यवा फडरशन

महावीर चौक, खरागढ - ४९१ ८८१ (मधयपरदश )

और

शरी कहान समति परकाशन

(५ सनत साननिधय, सोनगढ - ३६४२५० (सौराषटर) ER

परथम चार आवतति. - 20,000 परतिया पचम आवतति - 5,000 परतिया (मगलायतन, अलीगढ म आयोजित परतिषठा महोतसव क अवसर पर)

दिनाक 31जनवरी स 6 फरवरी, 2003

(2 सरवाधिकार सरकषित

न‍यौछावर - सात रपय मातर

परापति सथान -

७ अखिल भारतीय जन यवा फडरशन, शाखा - खरागढ

शरी खमराज परमचद जन, 'कहान-निकतन

खरागढ - 491881, जि. राजनादगाव (म.पर.)

अनकरमणिका 5 ७ पणडित टोडरमल समारक टरसट जात

ए-4, बापनगर, जयपर - 302015| दसर सिह की कहानी. 11 दो जञानियो की चरचा 14

@ बर, ताराबन मनाबन जन | सगर चकरवरती और... 15

“कहान रशमि, सोनगढ - 364250| वजबाह का वरागय 24 जि. भावनगर (सौराषटर) सकौशल का वरागय 33

वाधिन का बवरागय 39

एक था हाथी 41

भरत और हाथी 46

दसर हाथी की आतमकथा 49 टाइप पटिग एव मदरण वयवसथा - बोल....तो कया बोल ? 57

जन कमपयटरस, अहिसा धरम की कहानी. 59

वनवासी अजना 65 शरी टोडरमल समारक भवन, मगलधाम,

ए-4, बापनगर, जयपर - 302015 आतमजञानी वीर हनमान 70

फोन : 0141-2700751 हनमान को परमातमा क... 73

फकस : 0141-2709865 दशभषण-कलभषण 78

(2)

परकाशकीय

पजय गरदव शरी कानजीसवामी दवारा परभावित आधयातमिक करानति को जन-जन तक पहचान म पणडित टोडरमल समारक टरसट, जयपर क डॉ. हकमचनदजी भारिलल का योगदान अविसमरणीय ह, उनही क मारगदरशन म अखिल भारतीय जन यवा फडरशन की सथापना की गई ह। फडरशन की खरागढ शाखा का गठन 26 दिसमबर, 1980 को पणडित जञानचनदजी, विदिशा क शभ हसत किया गया | तब स आज तक फडरशन क सभी उददशयो की परति इस शाखा क माधयम स अनवरत हो रही ह।

इसक अनतरगत सामहिक सवाधयाय, पजन, भकति आदि दनिक कारयकरमो क साथ-साथ साहितय परकाशन, साहितय विकरय, शरी वीतराग विदयालय, गरनथालय, कसट लायबररी, सापताहिक गोषठी आदि गतिविधिया उललखनीय ह; साहितय परकाशन क कारय को गति एव निरतरता परदान करन क उददशय स सन‌ 198 8 म शरीमती धडीबाई खमराज गिडिया गरनथमाला की सथापना की गई।

इस गरनथमाला क परम शिरोमणि सरकषक सदसय 21001/- म, सरकषक शिरोमणि सदसय 11001 /- म तथा परमसरकषक सदसय 5001 /- म भी बनाय जात ह, जिनक नाम परतयक परकाशन म दिय जात ह।

पजय गरदव क अतयनत निकटसथ अनतवासी एव जिनहोन अपना समपरण जीवन उनकी वाणी को आतमसात करन एव लिपिबदध करन म लगा दिया - ऐस बर. हरिभाई का हदय जब पजय गरदवशरी का चिर-वियोग (वीर स. 2506 म)

सवीकार नही कर पा रहा था, ऐस समय म उनहोन पजय गरदवशरी की मत दह क समीप बठ-बठ सकलप लिया कि जीवन की समपरण शकति एव समपतति का उपयोग गरदवशरी क समणणारथ ही खरच करगा।

तब शरी कहान समति परकाशन का जनम हआ और एक क बाद एक गजराती भाषा म सतसाहितय का परकाशन होन लगा, लकिन अब हिनदी, गजराती दोनो भाषा

क परकाशनो म शरी कहान समति परकाशन का सहयोग परापत हो रहा ह, जिसक परिणाम सवरप नय-नय परकाशन आपक सामन ह।

साहितय परकाशन क अनतरगत‌ जनधरम की कहानिया भाग 1, 2, 3, 4, 5,

6, 7, 8, 9, 10, 11, 12,13,14 एव लघ जिनवाणी सगरह : अनपम सगरह,

चौबीस तीरथकर महापराण (हिनदी-गजराती), पाहड दोहा-भवयामत शतक-

आतमसाधना सतर, विराग सरिता तथा लघतततवसफोट - इसपरकार इककीस पषप परकाशित किय जा चक ह ।

दसर पषप का यह पचम ससकरण परकाशित कर हम इस बात पर अतयनत गौरव अनभव कर रह ह कि इन कहानियो क माधयम स बाल-यवा-वदध सभी भरपर लाभ ल रह ह | इस भाग म पराण परषो क भव-भवानतरो क आधार पर तततवजञान स आपरित, वरागय एव जञानबरदधक 1 5 कहानिया दी जा रही ह | जिनका समपादन पणडित रमशचनद

जन शासतरी, जयपर न किया ह। अत: हम आपक आभरी ह।

आशा ह पराण परषो की कथाओ स पाठकगण अवशय ही बोध परापत कर

सनमारग पर चलकर अपना जीवन सफल करग।

जन बाल साहितय अधिक स अधिक सखया म परकाशित हो - ऐसी भावी योजना

ह। इसी क अरनतगत‌ जनधरम की कहानिया भाग-1 5 शीघर आ रहा ह | तथा अब शीघर

ही जन कामिकस ' क परकाशन की योजना आरमभ कर रहा ह।

साहितय परकाशन फणड, आजीवन गरनथमाला शिरोमणि सरकषक, परमसरकषक

एव सरकषक सदसयो क रप म जिन दातार महानभावो का सहयोग मिला ह, हम उन

सबका भी हारदिक आभार परकट करत ह, आशा करत ह कि भविषय म भी सभी इसी

परकार सहयोग परदान करत रहग। विनीत:

मोतीलाल जन परमचनद जन

अधयकष साहितय परकाशन परमख

Se सचना

पसतक परापति अथवा सहयोग हत राशि डराफट दवारा

“अखिल भारतीय जन यवा फडरशन, खरागढ क नाम स भज।

हमारा बक खाता सटट बक आफ इणडिया की खरागढ शाखा म ह। (4)

TAS BU ALO a ae da 'वतसल' एक सिह की सनो कहानी जगल म वह मसती a1 मार-मार कर खाता निश-दिन जीव वहा की बसती स॥

करर जानवर करर हदय स करर करम म निपण महान। जिसक नख ही करत रहत हर-कषण तलवारो का काम॥

एक दो नही पाच दस नही होत चार पर क बीस। पकड और खाय जीवित ही अलग कर नहि धड स सीस |

एक समय वह हिरण पकड कर खाय रहा था हो निरभय। अकसमात‌ इक घटना घटती भवय सनो उसका निरणय॥

चारण ऋदधीधारी मनिवर जो दोय गगन स उतर रह। व इसको दख नजर इसकी म अपनी नजर मिलाय रह॥

अब तो वह सिह सोचता उस कषण मानो मझ स बोल रह। होता भी ऐसा ह सचमच मनिवर उसको समबोध रह॥

अय सिहराज ! क‍या सोच रह हो य नहि काम तमहारा ह। जिनशासन नायक पद पान का आया समय तमहारा ह॥

निज शकति का कछ पता नही यात ककतय अपनाय लिया। अब भी त चत अर चतन ! त सिह नही सन खोल हिया।॥

तब उसन अगल पर जोडकर करी वनदना उसी समय। अनदर स फिर वरागय जगा मानो ककतय स खाया भय॥

आखो म आस भरकर क सवीकत अपना अपराध किया। अर पडा शानत चरणो म मानो वह अब माफी माग रहा॥

कोई उपाय नहि जीन का ऐसी परयाय लई मन। अब खाकर मास रह जीवित फिर क‍या ककतय छोडा मन॥

तात भोजन-पानी तजकर लीनी समाधि निज आतम-हित। तब मरा जान वन जीव सभी निरभय हो दख रह द चित॥

वह भी समाधि स नही डिगा निज-आराधन म अडिग हआ। तब दह-तयाग सौधरम सवरग म हरिधवज नामा दव हआ॥

दशव भव म व महावीर तीरथकर भी बन जात ह। पश स परमातम बन, 'परम' विधि जनधरम म पात ह॥

जनधरम की कहानिया भाग-२/११

दसऐ सिह की कहानी (जो ऋषभदव का पतर होकर मोकष गया)

e

(जनधरम की कहानियो क परथम भाग म भी आपन एक सिह की आतम-

कथा पढी थी, वह सिह भगवान महावीर का जीव था। यहा दसर सिह की बात ह, यह जीव भरत चकरवरती का जीव ह । जब यह सिह योनि म था, जञब

उसक ऊपर मनिराज को भी वातसलय भाव आया था।

वाह, समयबदषटि धरमातमाओ क परति मनियो को भी वातसलय भाव आता ह | भरत चकरवरती का जीव परवभव म सिह था, उससमय मनिराज का आहार-दान दखकर वह बहत आनदित हआ और उसीसमय जातिसमरण जञान हआ, उसक बाद उसन वरागय परापत कर सनयास धारण किया, उसी समय

मनिराज न एक राजा स उसकी सवा करन क लिए कहा था। उसकी कहानी

पराणो म आती ह। वह कहानी इसपरकार ह -)

भगवान ऋषभदव का जीव परव म बजञजघ राजा था, उस भव म

उसन मनियो को आहार-दान दिया था, तब अति विनगरभाव स उसन

मनियो स पछा- ' ह नाथ ! यह मतिवर मतरी वगरह मझ मर भाई क समान

परिय लगत ह। इसलिए आप कपा करक उनक परवभव का वततानत

बताइय ।

तब मनिराज न कहा- ह राजन‌ ! सनो, यह मतिवर मतरी का

जीव परवभव म विदहकषतर म एक परवत क ऊपर सिह था | एक बार वहा

जनधरम की कहानिया भाग-२/१२

का राजा परीतिवरधन उस परवत पर आया और वहा पिहितासरव नाम क

मनि को विधिपरवक आहार-दान कराया। सिह (मतिबर मतरी क जीव

अथवा भरत चकरवरती क जीव) को यह दखकर जातिसमरण जञान हआ,

उसस वह सिह अतिशय शानत हो गया, फिर मनिराज क उपदश स उसन

बरत धारण करक सन‍यास-मरण (समाधि-मरण ) अगीकार किया।*

जब मनिराज पिहितासरय न उस सिह क समाधि-मरण की सारी

बात जान ली, तब राजा परीतिवरधन स कहा- ह राजन‌ ! इस परवत पर

एक सिह शरावक बरत धारण करक समाधि-मरण कर रहा ह, वह निकट

मौकषगामी ह, इसलिए तमह उसकी सवा करना योगय ह | वह सिह का जीव

अलप भव म भरत कषतर क परथम तीरथकर का पतर भरत चकरवरती होकर उस

ही भव म मोकष परापत करगा।

मनिराज क वचन सनकर राजा को बहत आशचरय हआ। उसन

मनिराज क साथ जाकर उस बरागी सिह को दखा। फिर राजा न उसकी

सवा तथा समाधि म यथायोगय सहायता की। “यह सिह का जीव दव

होकर, मोकष को जावगा _ - ऐसा समझकर मनिराज न भी उसक कान

म णमोकार मतर सनाया।

जनधरम की कहानिया भाग-२/१३

“१८ दिन तक आहार का तयाग करक पचपरमषठी क चिनतन परवक दह छोडकर वह सिह दसर सवरग म दव हआ | बहा स आय परण कर यह तमहारा (बरजजघ राजा का) मतरी मतिवर हआ ह।

ह राजा ! अब आठव भव म तम जिस समय करषभदव तीरथकर होग, उसीसमय यह मतिवर मतरी का जीव तमहारा पतर (भरत चकरवरती) होकर उसी भव स ही मोकष परापत करगा ।”” -इसपरकार मनिराज न राजा ass को मतिवर मतरी क जीव का वतात बताया।

मतिवर मतरी अपन भत और भविषय क भव की उततम चरचा मनिराज क शरीमख स सनकर बहत आननदित हआ |

पशमावमा क परतीक : अषटदवय

जल स निरमल नाथ ! चनदन स शीतल परभो | अकषत स अविनाश, पषप सदश कोमल विभो ! रतनदीप सम जञान, षटरस वयजन स सखद । सरभित धप समान, सरस स-फल सम सिदध पद ॥।

जनधरम की कहानिया भाग-२/१४

दो जञानिया की चरचा

एक था सिह और एक था हाथी | एक बार उन दोनो की भट हई ।

व दोनो आतमा को जाननवाल थ और आनद स बात करत थ -

सिह न पछा- ह गजराज ! तमह आतमजञान कहा हआ?

हाथी न कहा- ह वनराज ! सममदशिखर की ओर एक सघ जा

रहा था, उसक साथ रहनवाल जन मनिराज शरी अरविद क उपदश स हम ATA BST |

फिर हाथी न पछा- ह वनराज ! तमह आतमजञान कहा हआ ?

सिह न कहा - आकाशमारग स दो मनिराज आय थ, उनक

उपदश स मझ आतमजञान हआ।

तब सिह न पछा - ह हाथी भाई ! तम भविषय म कया होग?

हाथी न कहा- म पारसनाथ-तीरथकर होकर मोकष जाऊगा।

फिर हाथी न पछा- ह सिह भाई ! तम भविषय म क‍या होग ?

सिह न कहा- म महावीर-तीरथकर होकर मोकष जाऊगा।

वाह, एक-दसर की यह सरस बात सनकर व दोनो भावी तीरथकर खश हए और इन दोनो की बात सनकर हम सब भी.......खश हए | ०

जनधरम की कहानिया भाग-२/१५

सणर चकरवरती ऑर साठ SAR USHA का

वशगय (जीव को धरम म मदद कर, वही सचचा मितर)

इस भरत कषतर म परथम तीरथकर भगवान ऋषभदव हए, उनक पतर परथम चकरवरती भरत हए। बाद म दसर तीरथकर अजितनाथ हए, उनक

शासनकाल म सगर नाम क दसर चकरवरती हए।

सगर चकरवरती परवभव म विदह कषतर म जयसन नाम क राजा थ,

उनह अपन दो पतरो स बहत सनह था, उनम स एक पतर क मरण होन पर

ब मरछित हो गय, पशचात‌ शरीर को दःख का ही धाम समझ कर जनम-

मरण स छटन क लिए दीकषा लकर मनि हए। तब उनक साल महारप न

भी उनक साथ दीकषा ल ली, दसर हजारो राजा भी दीकषा लकर मनि हए

और समयगदरशन-जञान-चारितररप शदध मोकषमारग को साधन लग।

जयसन और महारप- य दोनो मनिराज समाधि-मरणपरवक दह छोडकर सोलहव अचचयत सवरग म दव हए । व दोनो एक दसर क मितर थ

और जञान-वरागय की चरचा करत थ। एक बार उनहोन परतिजञा ली कि हम

म स जो भी पहल पथवी पर अवतार लकर मनषय होगा, उस दसरा दव

परतिबोध दगा अरथात‌ उस ससार क सवरप को समझाकर बरागय उतपनन

कराकर और दीकषा लन की पररणा करगा। इसपरकार धरम म मदद करन क

लिए दोनो मितरो न एक-दसर क साथ परतिजञा की । सच ही ह सचचा मितर वही ह, जो धरम म मदद कर।

अब उमम स परथम जयसन राजा क जीब न बाईस सागरोपम तक

दवलोक क सख भोग कर आय परण होन पर मनषय लोक म अवतार लिया। भरत कषतर म ही जहा पहल दो तीरथकर और भरत चकरवरती न

अवतार लिया था, उसी अयोधया नगरी म उनहोन अवतार लिया | उनका

नाम था सगरकमार | व दसर चकरवरती हए और छह खणड पर राजय करन

जनधरम की कहानिया भाग-२/१६

लग। उन चकरवरती क अतयत पणयवान साठ हजार पतर थ, व सभी उततम

धरमससकारी थ।

एक बार किसी मनिराज को कवलजञान हआ और बहत उतसव मनाया गया, कितन ही दव उतसव म आय | उनम मणिकत नाम का दव

जो सगर चकरवरती का मितर था वह भी आया | कवली भगवान की वाणी

सनकर उस यह जानन की इचछा हई कि मरा मितर कहा ह ? इचछा होत

ही उसन अपन अवधिजञान स जान लिया कि बह जीव पणयोदय स

अयोधया नगरी म सगर नाम का चकरवरती हआ ह।

अब उस दव को परव की परतिजञा याद आयी और अपन मितर को परतिबोध दन क लिए वह अयोधया आया | वहा आकर सगर चकरवरती स

कहा-

“ह मितर ! तझ याद ह ? हम दोनो सवरग म एक साथ थ और हम

दोनो न साथ म निशचित किया था कि अपन म स जो पथवी पर पहल

अवतार लगा, उस सवरग म रलनबाला दसरा साथी परतिबोध दगा।

ह भवय ! तमन इस पथवी पर पहल अवतार लिया ह, परनत तम मनषयो म उततमोततम ऐसा चकरवरती पद परापत कर बहत काल तक भोगो म ही भल हो | अर, सरप क फण समान द:ःखकर इन भोगो स आतमा को कया लाभ

ह ? इसम किचित‌ सख नही, इसलिए ह राजन‌ ! ह मितर ! अब इन भोगो

को छोडकर मोकषसख क लिए उदयम करो। अर, अचयत सवरग क दवी

वभव असखय वरषो तक भोगन पर भी तमह तपति नही हई । यह राजय वभव

तो उसक सामन कछ भी नही ह। इसलिए इनका मोह छोडकर अब

मोकषमारग म लगो।

अपन मितर मणिकत दव क ऐस हितपरण बचनो को सनकर भी उस सगर चकरवरती न लकषय म नही लिया | वह विषयो म आसकत और बरागय स विमख ही रहा।

जनधरम की कहानिया भाग-२/१७

मितर की ऐसी दशा दखकर, “इसको अभी भी मकति का मारग

दर ह -ऐसा विचार कर वह दव अपन सथान पर चला गया, सच ही ह कि जञानी परष दसर क अहित की तो बात ही नही करता, परनत हित की बात भी योगय समय विचार कर ही करता ह। अर, धिककार ह ऐस ससार को कि जिसकी लालसा मनषय को अपन बचनो स चयत कर दती ह। सगर चकरवरती तो जञानी थ, फिर भी व भोग आसकति क कारण चारितर दशा लन क लिए तयार नही हए।

बहत समय बाद, वह मणिकत दव फिर स इस पथवी पर आया, अपन मितर को ससार स बरागय कराकर मनिदशा अगीकार करवान क लिए | इससमय उसन दसरा उपाय विचार किया | उसन चारण ऋदधिधारी छोट कद क मनरि का रप धारण किया। व तजसवी मनिराज अयोधया नगरी म आय और सगर चकरवरती क चतयालय म जिननदर भगवान को वदन कर सवाधयाय करन बठ गय | इसी समय सगर चकरवरती भी चतयालय म आय और उसन मनिराज को दखा, मनि को दखकर उस बहत आशचरय हआ और भकति स नमसकार करक पछा-

““परभो ! आपका तो अदभत रप ह, आपन इतनी छोटी उमर म ही मनिपद कस ल लिया ?

उससमय अतयत वरागय स उन चारण ऋदधिधारी मनिराज न कहा- ' ह राजन‌ ! दह का रप तो Gane की रचना ह और इस जवानी का कोई भरोसरा नही, जवानी क बाद बढापा आयगा ही, इसका मझ विशवास al | आय तो परतिदिन घटती जाती ह। शरीर तो मल का धाम ह, विषयो क पाप स भरा हआ ह, उसम द:ख ही ह- यह अपवितर अनितय और पापमय ससार का मोह क‍यो ? यह छोडन योगय ही ह।

वदधावसथा की राह दखत हए धरम म आलस करक बठ रहना तो मरखता ह। परिय बसत का वियोग और अपरिय वसत का सयोग ससार म

जनधरम की कहानिया भाग-२/१८

होता ही ह। ससार म करमरपी शतर दवारा जीव की ऐसी दशा होती ह,

इसलिए आतमधयानरपी अमिन क दवारा उस करम को भसम करक अपन

अविनाशी मोकषपद को परकट करो | ह राजन‌ ! तम भी इस ससार क मोह

को छोडकर मोकष साधन क लिए उदयम करो।

मनिवश म सथित अपन मितर मणिकत दव की बरागयभरी बात सनकर सगर-चकरवरती ससार स भयभीत तो हआ, परत ६० हजार पतरो क तीवर सनह स वह मनिदशा नही ल सका | अर, सनह का बधन कितना

मजबत ह। राजा क इस मोह को दखकर मणिकत को खद हआ और

“अब भी इसका मोह बाकी ह - ऐसा विचार कर वह पन: चला गया।

अर, दखो तो जरा ! इस सामराजय की तचछ लकषमी क वश

चकरवरती परवभव क अचचयत सवरग की लकषमी को भी भल गया ह। उस सवरग की विभति क सामन इस राजय-सपदा का क‍या मलय ह कि

जिसक मोह म जीव फसा ह; परनत मोही जीव को अचछ-बर का विवक नही रहता | यह चकरवरती तो आतमजञानी होन पर भी पतरो म

मोहित हआ ह, पतरो क परम म वह ऐसा मोहित हो रहा ह कि मोकष क उदयम म भी परमादी हो गया ह।

उस चकरवरती क सिह क बचचो समान शरवीर और परतापवत राजपतर एक बार राजसभा म आय और विनयपरवक कहन लग- ह पिताजी ! जवानी म शोभ- ऐसा कोई साहस का काम हम बताइय-

उस समय चकरवरती न परसन‍न होकर कहा- ह पतरी ! चकर क दवारा

अपन सब कारय सिदध हो जात ह | हिमवन परवत और लवण समदर क बीच (छह खणड म ) ऐसी कोई वसत नही, जिस हम परापत न कर सक | इसलिए

तपहार लिय तो अब एक ही काम शष ह कि तम इस राजयलकषमी का

यथायोगय भोग करो।

शदध भावनावाल उन राजपतरो न पन: आगरह किया-

जनधरम की कहानिया भाग-२/१९

“ह पिताजी ! हमको धरम की सवा का कोई कारय सौप, यदि

आपन कोई कारय नही सौपा तो हम भोजन नही करग। सभी राजपतर धरमातमा थ। (उनक इस मागलिक आदरश को दखकर यवावरग को धरमकारय म उतसाह स भाग लना चाहिए।)

उतसाही पतरो क आगरह को दखकर राजा को चिता हई कि उनह

कया काम सौपना चाहिय? विचार करत ही उनह याद आया कि हा, मर

स पहल हए भरत चकरवरती न कलाशपरबत पर अतिसदर परतिमाय सथापित की ह | उसकी रकषा क लिए चारो ओर खाई खोद कर उसम गगा नदी का

पानी परवाहित किया जाय तो उसस मदिरो की रकषा होगी- ऐसा विचार कर राजा न पतरो को वह कारय सौपा ।

पिता की आजञा शिरोधारय करक व राजपतर उस काम को करन क

लिए कलाशपरवत पर गय। वहा जाकर उनहोन अतयत भकतिपरवक

जिनबिमबो क दरशन किय, पजा की ।

““अहा ! ऐस अदभत रतनमय जिनबिमब हमन कही नही दख ।

हम ऐस भगवान क दरशन हए और महाभागय स जिनमदिरो की सवा करन

का अवसर मिला '-- इस तरह परम आनदित होकर व ६० हजार राजपतर

भकतिपरवक अपन सौप हए कारय को करन लग।

यहा चकरवरती का मितर मणिकत दव फिर स राजा को समझान क लिय आया । इस समय उसन नया उपाय सोचा ।

“उसन एक मोट जहरील साप का रप बनाया और कलाशपरवत

पर जाकर उन सभी राजकमारो को उसन डस कर बहोश कर दिया, जिसस

कोई समझ कि व मर गय ह- ऐसा दिखावा किया।

““कितन ही वचन हितरप होन क साथ मधर हो जात ह और कितन ही वचन हितरप होन पर भी कटठ हो जात ह, उसीपरकार अहित वचनो म भी कितन मधर और कितन ही कट हो जात ह। व दोनो परकार क अहित वचन तो छोडन योगय ही ह।''

जनधरम की कहानिया भाग-२/२०

एक साथ ६० हजार राजकमारो क मरण को दखकर राजमतरी भी

एकदम घबरा गय- राजमतरी जानत थ कि महाराजा को पतरो स बहत ही परम ह, उनक मरण का समाचार व सहन नही कर सकत | उनम भी एक

साथ ६० हजार पतरो का मरण ! यह दःखद समाचार राजा को सनान

की हिममत किसी की नही हई।

उसीसमय , मणिकतदव एक वदध बराहमण का रप धारण करक

सगर चकरवरती क पास आया और अतयत शोकपरबक कहन लगा-

“ह महाराज ! मरा इकलौता जवान पतर मर गया ह, यमराज न

उसका हरण कर लिया ह, आप तो समसत लोक क पालक हो, इसलिए

मर पतर को बापिस लाकर द दो , उस जीवित कर दो , यदि तम मर इकलौत

पतर को जिदा नही करोग तो मरा भी मरण हो जावगा।

बराहमण की बात सनकर राजा न कहा- “ अर बराहमण ! कया त

यह नही जानता कि मतय तो ससार क सभी जीवो को मारती ही ह।

एकमातर सिदध भगवान ही मरण स रहित ह, दसर सभी जीव मरण स सहित

ह| -इस बात को सभी जानत ह कि जिसकी आय समापत हो गयी, वह किसी भी परकार स जीवित नही रह सकता | सभी जीव अपनी-अपनी

आय परमाण ही जीत ह, आय परी होन पर उनका मरण होता ही ह, इसलिए मरणरप यमराज को यदि तम जीतना चाहत हो तो शीघर ही

सिदधपद को साधो | इस जीरण-शीरण शरीर क या पतर क मरण का शोक

छोडकर मोकष की परापति क लिए ततपर होकर जिनदीकषा धारण करो | घर

म पड रहकर बढ होकर मरन क बदल दीकषा लकर मोकष का साधन

करो ।

इसपरकार सगर चकरवरती न वरागयपररक उपदश दिया | उससमय

उस बराहमण (मणिकत दव) न कहा- ' ह महाराज ! जो आप कहत हो

वह बात यदि वासतव म सतय ह तो मरी भी एक बात सनो, यदि यमराज

जनधरम की कहानिया भाग-२/२१

स बलवान कोई नही ह और मतय स कोई बच नही सकता- ऐसा आप कहत हो तो म आपको एक गभीर समाचार सनाऊ, उस सनकर आप भी भयभीत मत होना, आप भी ससार स बरागय लकर मोकष की साधना म ततपर होना |”

सगर चकरवरती न आशचरय स कहा- “अर बराहमण दव ! कहो, ऐसा क‍या समाचार ह ?”!

बराहमण रपधारी मितर न कहा- “ह राजन‌ ! सनो, तमहार ६० हजार पतर कलाशपरवत पर गय थ, वहा व सब मतय को परापत हो गय ह। उनको भयकर सरप न डस लिया ह, एक भी नही बच सका . .....एक साथ ६० हजार पतरो को मारनवाल दषट यमराज को जीतन क लिए आपको भी मर समान मोह छोडकर शीघर दीकषा ल लना चाहिय और मोकष का साधन करना चाहिय। इसलिए चलो ......हम दोनो एकसाथ दीकषा ल लव।'”

बराहमण क वजपात जस वचन सनकर ही राजा का हदय छिनन- भिनन हो गया और पतरो क मरण क आघात स व बहोश हो गय । जिन पर अतयत सनह था - ऐस ६० हजार राजकमारो क एक साथ मरण होन की बात व सन न सक, सनत ही उनह मरछा आ गयी | लकिन वह चकरवरती आतजञानी था......थोडी दर बाद बहोशी समापत होन क बाद होश म आत ही उनकी आतमा जाग उठी, उनहोन विचार किया--

“अर! वयरथ का खद किसलिए ? खद करानवाली यह राजयलकषमी या पतर-परिवार कछ भी मर नही ह, मरी तो एक जञानचतना ही ह। अब मझ पतरो का अथवा किसी का भी मोह नही ह। अर र |! अब तक म वयरथ ही मोह म फसा रहा। मर दव-मितर (मणिकत) न आकर मझ समझाया भी था, फिर भी म नही माना | अब तो पतरो का भी मोह छोडकर म जिन- दीकषा लगो और अशरीरी सिदधपद की साधना करगा।

जनधरम की कहानिया भाग-२/२२

“शरीर अपवितर ह और विषय-भोग कषणभगर ह! -ऐसा जानकर ऋषभदव आदि तीरथकर तथा भरत आदि-चकरवरती विषय-भोगो क धाम

गह-परिवार को छोडकर वन म चल गय और चतनय म लीन होकर मोकष

गरापत किया। म भी अब उनक बताय मारग पर ही चलगा। म मरख बनकर अब तक विषयो म ही फसा रहा। अब एक कषण भी इस ससार म

नही रहगा ।

इसपरकार सगर चकरवरती वरागय की भावना कर ही रह थ कि वहा

उनकी नगरी म महाभागय स दढवरमा नामक कवली परभ का आगमन

हआ। सगर चकरवरती अतयत हरषोललास क साथ उनक दरशन करन गय और परभ क उपदशामत गरहण करक राजपाट छोडकर जिनदीकषा धारण

की। चकरवरती पद छोडकर अब चतनय क धयानरपी धरमचकर स व

सशोभित होन लग उनह मनिदशा म दख कर उनका दवमितर (मणिकत

दव) अतयत परसनन हआ।

अपन मितर को परतिबोध करन का कारय परा हआ जानकर बह दव अपन असली सवरप म परकट हआ और सगर मनिराज को नमसकार करक कलाशपरवत पर गया | वहा जाकर उसन राजपतरो को सचत किया

और कहा- ' ह राजपतरो ! तमहारी मतय की बनावटी खबर सनकर तमहार पिता सगर महाराज ससार स बरागयपरवक दिगमबर दीकषा अगीकार कर

मनि बन गय ह, अत: म तमह ल जान क लिए आया ह।

अहा, कसा अदभत परसग !! उन चरम शरीरी ६० हजार राजकमार

पिताशरी की वरागयोतपादक बात सनकर एकदम उदासीन हो गय, अयोधया

क राजमहलो म वापस लौटन क लिए सभी न मना कर दिया और ससार

स विरकत होकर सभी राजकमार शरी मनिराज की शरण म गय, वहा धरमोपदश सना और एकसाथ ६० हजार राजपतरो न मनिदीकषा धारण कर

ली। वाह ! धनय व मनिराज !! धनय व वरागी राजकमार !!!

जनधरम की कहानिया भाग-२/२३

मणिकतदव न अपन वासतविक सवरप म आकर सभी मनि

भगवनतो को नमसकार किया। तथा अपन मितर क हित क लिए यह सब

माया करनी पडी, इसक लिए कषमा मागी | मनिराजो न उस सातवना दी

और कहा- ' अर ! इसम तमहारा कया अपराध ह ?. किसी भी परकार स

जो धरम म सहायता कर, वही परमहितषी सचचा मितर ह। तमन तो

हमारा परमहितरप काम किया ह।

इसपरकार मणिकतदव का मितर को मोकषमारग की पररणा दन का

कारय सिदध हआ, साथ ही साथ ६० हजार राजकमारो न भी मनिधरम

अगीकार किया; अत: वह परसननचितत स सवरग म वापस चला गया।

सगर-मनिराज तथा ६० हजार राजकमार (मनिराज) - य सब

आतमा क जञान-धयानपरवक विहार करत हए अनत म सममदशिखरजी पर आय और शकलधयान क बल स कवलजञान परकट करक मोकषपद को परापत

किया। उनह हमारा नमसकार हो |

शासतरकार कहत ह कि जगत म जीवो को धरम की पररणा .

दनवाल मितर क समान हितकारी अनय कोई नही ह।

“ सचचा मितर हो तो ऐसा - जो धरम की पररणा द।”

| Stat और जडराना दोनो कायरता ह। |

जनधरम की कहानिया भाग-२/ २४

AAAS GI ALTA भगवान ऋषभदव क इशषवाक वश म , ऋषभदव स लकर मनिसतरत

तीरथकर तक क काल म असखय राजा मनि होकर मोकषगामी हए। उनम

मललिनाथ भगवान क मोकषगमन क बाद अयोधया नगरी म विजय नाम

क राजा हए, उनक पौतर वजबाह कमार की हसतिनापर की राजपतरी मनोदया क साथ शादी हई, शादी क थोड ही दिन बाद कनया का भाई

उदयसदर अपनी बहिन को लन क लिए आया | मनोदया उसक साथ जान लगी, उसी समय वजरबाह भी मनोदया क परति तीतर परम क वश उनही क साथ ससराल जान लग।

उदयसदर , मनोदया, वजबाह आदि सभी आनद परवक अयोधया

स हसतिनापर की ओर जा रह थ । साथ म उनक मितर २६ राजकमार और उनकी अनक रानिया भी परवतो और वनो की रमणीय शोभा दखत हय

जा रह थ | तभी यवा राजकमार वजबाह की नजर एकाएक रक गयी.......।

अर, यहा दर कोई अदभत सनदरता दिखाई द रही ह । वह कया

ह ? या तो यह कोई वकष का तना ह, या सोन का कोई सतभ ह या कोई

मनषय ह । जब

पास आकर दखा |

तो कमार आशचरय

चकित रह गय।

अहो ! नगन

दिगमबर मनिराज धयान म खड ह,

आख बद और ॥.. लटकत हए हाथ,

ससार को भलकर आतमा म अनदर-अनदर गहराई म उतर कर कोई

जनधरम की कहानिया भाग-२/२५

अदभत मोकषसख का वदन कर रह ह ।....... शातरस की मसती म मसत ह, तप क दवारा शरीर दरबल हो गया ह, तो भी चतनय क तज का परताप

सरवाग स शोभित हो रहा ह.....हिरण और सरप शात होकर उनक पास बठ ह। अर, उनकी शात मदरा वन क पशओ को भी ऐसी परिय लगती ह कि व भी शात होकर बठ गय ह।

मनि को दखकर कमार वजबाह विचार करत ह-

“वाह ! धनय ह मनिराज का जीवन ! व आनद स मोकष की रचना

कर रह ह और म ससार क कीचड म फसा ह, विषय-भोगो म डब रहा ह, इन भोगो स हटकर ग भी अब ऐसी योगदशा धारण करगा, तभी मरा

जनम सफल होगा | इससमय समयक‌ आतमभान होन पर भी, जस कोई

चदनवकष जहरील सरप स लिपटा हो- ऐसा म विषय-भोगो क पाषो स

घिरा हआ ह। जस कोई मरख परवत क शिखर पर चढ कर ऊघ.....वस

ही म पाच इनदरियो क भोगरपी परवत क भयकर शिखर पर सो रहा ह।

हाथ ! हाय !! मरा कया होगा ? धिककार ह. ...धिककार ह......भवशरमण करानवाल इन विषय-भोगो को।

आर, म एक सतरी म आसकत होकर मोकषसनदरी को साधन म परमादी हो रहा ह. ..लकिन कषणभगर जीवन का क‍या भरोसा? मझ अब

परमाद छोडकर यह पमनिदशा धारण करक मोकष साधना म लग जाना

चाहिय.....।

ऐस बरागय का विचार करत-करत बञजबाह की नजर मनिराज क ऊपर सथिर हो गई, व मनि भावना म ऐस लीन हो गय कि

आस-पास उदयसदर और मनोदया खड ह, उनका खयाल ही नही रहा |

बस ! मातर मनि की ओर दखत ही रह.....और उनक समान बनन की

भावना भात रह।

-> यह दखकर , उनका साला उदयसदर हसता हआ मजाक करत

जनधरम की कहानिया भाग-२/ २६

हए कहता ह-- _ कवरजी ! आप निशचल नतरो स मनि की ओर कया दख

रह हो ? अर, आप भी ऐसी मनिदशा धारण क‍यो नही कर लत।'

वजरबाह तो मनिदशा की भावना भा ही रह थ। उसन तरनत ही कहा- “बाह भाई [ तमन अचछी बात कही, मर मन म जो भाव था, उस

ही तमन परकट किया, अब तमहारा भाव क‍या ह- उस भी कहो।

उदयसदर न उस बात को मजाक समझकर कहा- कबरजी !

जसा तमहारा भाव, वसा ही मरा भाव ! यदि तम मनि हए तो म भी तमहार

साथ मनि होन क लिए तयार ह। परनत दखो ! तम मकर न जाना !!”

(उदयसदर तो मन म अभी ऐसा ही समझ रह थ कि वजबाह को तो मनोदया क परति तीजर राग ह- य क‍या दीकषा लग ” अथवा उसन तो

हसी-हसी म यह बात कही थी...... “शगन क शबद पहल इस उकति

क अनसार वजबाह क उततम भवितबय स पररित होकर बरागय जागत

करनवाल यह शबद भी निमितत हो गय..... ।)

उदयसदर की बात सनत ही निकटभवय ममकष वीर वजबाह क मख

स वजबाणी निकली-

“बस अब म तयार ह...... इसीसमय म इन मनिराज क पास जाकर

मनि-दीकषा अगीकार करगा। वजजबाह आग कहत ह-- “इस ससार और भोगो

स उदास होकर मरा मन अब मोकष म

उदयत हआ ह....ससार या सासारिक भाव अब सवपन म भी नही दिखत...म

तो अब मनि होकर यही वन म रहकर मोकषपथ की साधना करगा। *

जनधरम की कहानिया भाग-२/२७

परवत क ऊपर जस वजर गिरता ह, बस ही वजबाह क शबदो को सनत ही उदयसदर क ऊपर मानो वजज गिर गया, वह तो डर ही गया। अर....यह क‍या हो गया ?

वजबाह तो परसननचितत होकर विवाह क वसतराभषण उतार कर वरागयपरवक मनिराज की ओर जान लग।

मनोदया न कहा- “अर सवामी ! यह आप क‍या कर रह हो ?”!

उदयसदर न भी अशरभीनी आखो स कहा- “अर कवरजी ! म तो हसत-हसत मजाक म कह रहा था, लकिन तम यह क‍या कर रह हो ? मजाक करन म मरी गलती हई ह, अत: मझ कषमा करो ? आप दीकषा मत लो...... |

उसी समय वरागी वजबाह मधर शबदो म कहन लग- “ह उदयसदर ! तम तो मर कलयाण क कारण बन हो। मझ

जागत करक तमन मझ पर उपकार किया ह | इसलिए द:ख छोडो। म तो ससाररपी कए म पडा था, उसस तमन मझ बचाया, तम ही मर सचच मितर हो और तम भी इसी मारग पर मर साथ चलो।””

बरागी वजबाह आग कहन लग- ““जीव जनम-मरण करत-करत अनादि स ससार म भरमण कर रहा ह। जब सवरग क दिवय विषयो म भी कही सख नही मिलता, तब अनय विषयो की कया बात ? अर ! ससार, शरीर और भोग- य सब कषणभगर ह । बिजली की चमक क समान जीवन मिलन पर भी यदि आतमहित न किया तो यह अवसर चला जावगा । विवकी परषो को सवपन जस सासारिक सखो म मोहित होना योगय नही ह।

ह मितर ! तमहारी मजाक भी मर आतमकलयाण का कारण बन गयी ह। परसनन होकर औषधि सवन करन स कया बह रोग नही हरती ? अपित हरती ही ह। तमन हसत-हसत जिस मनिदशा की बात की ह, वह

Saad at कहानिया भाग-२/२८

मनिदशा भवरोग को हरनवाली और आतमकलयाण करनवाली ह, इसलिए,

म अवशय ही मनिदशा अगीकार करगा और तमहारी जसी इचछा हो, तम

वसा करो।”

उदयसदर समझ गया कि अब वजरबाह को रोकना मशकिल

ह....अब वह दीकषा लग ही, फिर भी शायद मनोदया का परम उनह रोक

ल - ऐसा सोचकर उसन अनतिम बात कही-

“कमार ! आप मनोदया की खातिर ही रक जाओ | तमहार बिना

मरी बहन अनाथ हो जायगी | इसलिए उसक ऊपर कपा करक आप रक

जाइय, आप दीकषा मत लीजिए।!

परनत , मनोदया भी बीरपतरी थी.... बह रोन नही बठी .... बलकि

उसन तो परसननचित होकर कहा- ह बनध ! तम मरी चिता मत करो। व

जिस मारग पर जा रह ह, म भी उस ही मारग पर जाऊगी | व विषय- भोगो

स छटकर आतमकलयाण करग, तो क‍या म विषयो म डबकर मरगी ?

नही, म भी उनक साथ ही गहसथदशा छोडकर अरजिका की दीकषा लगी

और आतम-कलयाण करगी। धनय ह मरा भागय !! अर ! मझ भी

आतमहित करन का सदर अवसर मिला | रोको मत भाई ! तम किसी को

भी मत रोको ! कलयाण क मारग म जान दो और ससार क मारग म मत

tara ! तम भी हमार साथ उस ही मारग म आ जाओ।'

अपनी बहिन की दढता को दखकर, अब उदयसदर क भावो म

भी एकाएक परिवरतन हो गया। उसन दखा कि मजाक सतयता का रप

ल रहा ह। अत: उसन कहा-

वाह....वजबाह ! और वाह... ..मनोदया बहिन ! धनय ह तमहारी उततम भावनाओ को ? तम दोनो यहा दीकषा लोग तो कया म तमह छोडकर

राजय म जाऊगा ? नही, म भी तमहार साथ मनिदीकषा लगा।

जनधरम की कहानिया भाग- २/२९

बहा पर सभी की बातचीत सन रह २६ राजकमार भी एक साथ

बोल उठ- “हम भी वजबाह क साथ ही दीकषा लग!

दसरी ओर स महिलाओ क समह म स राजरानियो की भी

आवाज आयी- “हम सभी भी मनोदया क साथ अरजिका क बरत

लगी। -

बस, चारो ओर...गभीर बरागय का वातावरण फल गया।

राजसवक तो घबराहट स दख रह ह कि इन सबको कया हो गया ह ? इन

सब राजकमारो और राजरानियो को यहा छोडकर हम राजय म किस परकार जाव? वहा जाकर इन राजकमारो क माता-पिताओ को क‍या

जवाब दग।

बहत सोच-विचार करन क बाद एक मतरी न राजपतरो स कहा-

“ह कमारो ! तमहारी बरागय भावना धनय ह....लकिन हम

मशकिल म मत डालो ..... .तम हमार साथ घर चलो और माता-पिता की

आजञा लकर फिर दीकषा ल लना.....। *

तब वजबाह बोल- अर, ससार बधन स छटन का अवसर

आया, यहा माता-पिता को पछन क लिए कौन रकगा ? हम यहा आन

क लिए माता-पिता मोह क वश होकर रोकग, इसलिए तम सब जाओ

और माता-पिता को यह समाचार सना दना कि आपक पतर मोकष को

साधन क लिए गय ह, इसलिए आप द:खी मत होइय | * तब मतरी न कहा- कमारो ! तम हमार साथ भल ही न चलो,

परनत जब तक हम माता-पिता को खबर द, तब तक यही रक जाओ।

“srl etwas कषण क लिए भी यह ससार नही चाहिय ..... .जस

पराण निकलन क बाद फिर शरीर शोभा नही दता, उसीपरकार जिसस

हमारा मोह छट गया, ऐस इस ससार म अब कषणमातर क लिए भी हम

अचछा नही लगता।*

जनधरम की कहानिया भाग-२/३०

- ऐसा कहकर वजबाह एव उदयसदर क साथ सब कमार चलन लग.....और मनिराज क पास आय...... |

गणसागर महाराज क सामन सभी न हाथ जोडकर विनयपरवक

नमसकार किया फिर वजबाह न कहा-

“ह सवामी | हमारा मन ससार स बहत भयभीत ह, आपक दरशन

स हमारा मन पवितर हआ ह। अब, हम भवसागर को पार करनवाली ऐसी भगवती दीकषा अगीकार कर ससार कीचड म स बाहर निकलन की इचचछा

ह, इसलिए ह परभ ! हम दीकषा दीजिए।”'

जो चतनय साधना म मगन ह और अभी-अभी सातव स छठव

गणसथान म आय ह, ऐस उन मनिराज न राजकमारो की उततम भावना को जानकर कहा- ह भवयो ! अवशय धारण करो, यह मोकष क कारणरप

भगवती जिनदीकषा ! तम सभी अतयत निकटभवय हो, जो तमह मनितरत की भावना जागत हई” -- ऐसा कहकर आचारयदव न वजबाह सहित २६

राजकमारो को मनिदीकषा दी।

राजकमारो न मसतक क कोमल कशो (बालो) को अपन हाथो स लोच करक पच महाबरत धारण किय | राजपतरी और रागपरिणति दोनो को तयाग दिया, दह का मोह छोडकर चतनयधाम म सथिर हए और

शदधोपयोगी होकर आतम-चितन म एकागर हए | धनय ह उन मनिवरो को ।

जनधरम की कहानिया भाग-२/ ३१

दसरी और मनोदया न भी पति और भाई क समान सासारिक मोह

छोडकर आभषण तयाग कर बरागयपरवक आरयिका क बरत धारण किय।

साथ ही अनक अनय रानिया भी आरयिका हई और एकमातर सफद वसतर

को धारण करक दह म चतनय की साधना क दवारा सशोभित होन लगी ।

सफटिकमणि समान शदधोपयोग क आभषण स सभी आतमाय सशोभित

हो उठी। उसी परकार वजबाह आदि सब मनिराज शदधोपयोग क दवारा

सशोभित होन लग।

धनय ह उन राजपतरो को ! और धनय ह उन राजरानियो को !!

जिस समय वजबाह आदि की दीकषा का समाचार अयोधया म पहचा, उसीसमय उनक पिता सरनदरमन‍य तथा दादा विजय महाराज भी

ससार स विरकत हए। अर, अभी नवपरिणत यवा-पौतर ससार छोडकर

मनि हए और म वदध होत हए भी अभी तक ससार क विषयो को नही

छोडा और इन राजकमारो न ससार भोगो को तणबत‌ समझकर छोड दिया

और मोकष क अरथ शातभाव म चितत को सथिर किया।

ऊपर स सदर लगनवाल विषयो का फल बहत कट होता ह,

यौवन दशा म शरीर का जो सदर रप था, वह भी वदधावसथा म करप

हो जाता ह। शरीर और विषय कषणभगर ह, ऐसा जानत हए भी हम विषय-भोगरपी कए म डब रह, तब हम जसा मरख कौन होगा ? ऐसा

विचार करक वरागय भावना भायी, सब जीवो क परति कषमाभाव परवक

विजय महाराज तथा उनक अनय पतर भी जिनदीकषा लकर मनि हए।

अर... पौतर क मारग पर दादा न गमन किया। धनय जनमारग ! धनय

मनिमारग !! धनय ह उस मारग पर चलनवाल जीव !!!

विजय महाराज न दीकषा लन क परव बजबाह क भाई परनदर को

राजय सोपा | परन‍दर राजा न अपन पतर कीरतिधर को राजय सौपकर दीकषा

जनधरम की कहानिया भाग-२/३२

ली। बाद म कीरतिधर न भी पनदरह दिन क पतर सकौशल का राजतिलक

करक जिनदीकषा ल ली और बाद म सकौशल कमार न भी गरभसथ बालक

का राजतिलक करक अपन पिता क पास जिनदीकषा अगीकार की।...

इतना ही नही, उनकी मा न वाघधिन होकर उनह खाया, फिर भी व आतम-

धयान स नही डिग और कवलजञान परकट करक मोकष परापत किया। उसक

बाद राजा दशरथ, रामचनदर भी उस ही वश म हय। ७

= सडक - सनदर मारखा

दो पितर बात कर रह थ, उनम अमरिकन पितर अपन जन पितर

स बोला - हमार शहर की सडक इतनी चौडी ह [क एक सडक

पर पर वग (गति) क साध एक साथ चार मोटर जाती ह और चाए

मोरर आती ह।

तब दसरा जन मितर बोला - थाई, हमारी मोकषपरी की सडक

तो इतनी चाड) ह कि उसम असाधारण बय (मोटर की अपकषा

असखयात यणी/ स एक साध एक सौ आठ जीव गयन कर सकत

ह। अमरिका म तो मोटर की बहत दरघटना होती होगी, लकिन हमारी इस मोकषपरी क यारय पर कोई दरघटना नही होती ।

ह, यह सच ह कि यह यारय पातर 'क‍न-व ह, उस सारय म

जा तो सकत ह; परनत फिर लीटकर वापिस नही आ सकत /

सचमच, यह यारय बहत ही छनदर यारय ह। इसका नाग ह -

मरोकषयारग ।

कहा भी ह-- समयगदरशन-जञान- चारितराणि गरीकषयारय: /

qed, समयरजञान और समयकचारितर - इन तीनो की

एकता ही मोकषमारय ह। ७

जनधरम की कहानिया भाग-२/३३

सरकोशल का वशणय

इस कथा क परव आपन जिनक वरागय की कथा Tel, A AAAS

क छोट भाई परदर अयोधया क राजा थ। उनहोन अपन पतर कीरतिधर को

राजय सौप कर मनिदीकषा ल ली।

राजा कीरतिधर का मन ससार-भोगो स विरकत था, व धरमातमा

राजपाट क बीच म भी ससार-भोगो की असरारता का विचार करत हए

मनिदशा की भावना भात थ।

एक दिन दोपहर क समय आकाश म सरयगरहण दखकर उनका मन

उदास हो गया और व ससार की अनितयता का विचार करन लग। अर,

जब यह सरय भी राह क दवारा ढक जाता ह, तब इस ससार क कषण-भगर

भोगो की क‍या बात ! व तो एक कषण म विनषट हो जात ह। इसलिए उनका

मोह छोडकर म आतमहित करन क लिए जिनदीकषा अगीकार करगा।

राजा कीरतिधर न अपन वरागय का विचार मतरियो क सामन रखा।

मतरियो न कहा- “महाराज ! आपक बिना अयोधया नगरी का

राजय कौन सभालगा ? अभी आप जवान हो. .....फिर भी जस आपक

पिता न आपको राजयभार सौपकर जिनदीकषा ली थी, वस ही आप भी

अपन पतर को राजय सौपकर दीकषा ल लना ।

-इस परकार मतरियो न विनती की | इसस राजा न ऐसी परतिजञा ली

कि पतर क जनम का समाचार सनत ही उस ही दिन उसका राजयाभिषक

करक म मनितरत धारण करगा।

थोड समय बाद, कीरतिधर राजा की रानी सहदवी न एक सदर पतर

को जनम दिया.....उसका नाम सकौशल रखा गया। यही सकौशल

कमार अपनी इस कथा क कथानायक ह।

Saud a) कहानिया भाग-२/३४

“पतर जनम की बात सनत ही राजा दीकषा ल लग।''-- इस भय

स रानी सहदवी न यह बात गपत रखी | कछ दिन तक तो यह बात राजा

स गपत रही, परनत सरय-उदय कब तक छिपा रह सकता ह ? उनक पतर

जनम की खशखबरी परी अयोधया नगरी म फल गयी.... और जब

नगरवासी राजा को बधाई दन आय, तब राजा न परसनन होकर उनह अपन

आभषण भट किय. ..... और अपन बरागय का विचार परकट किया, तथा

कहा कि - बस, अब म राजपतर को राजय सौपकर इस ससार-बधन स

छटगा और तदनसार राजा कीरतिधर न पदरह दिन की आय क राजकमार

सकौशल जो अभी तक माता की गोद म था, उसका राजतिलक करक

सवय न जिनदीकषा धारण कर ली.....और आतमसाधना म ततपर होकर

बन म विचरण करन लग |

कीरतिधर राजा मनि हो गय, जिसस उनकी रानी सहदवी को बहत

ही आघात हआ, वह सोचन लगी कि कही इसीपरकार मरा पतर भी दीकषा

लकर न चला जाय ? तभी किसी भविषयवतता न घोषणा की, कि-

“जिस दिन यह राजकमार अपन पिता को मनि अवसथा म

दखगा, उसी दिन यह दीकषा ल लगा।

कोई मनि राजकमार की नजर म न आ जाए, इसलिए रानी न

ऐसा आदश निकाल दिया कि किसी निरगरथ-मनि को राजमहल क पास

नही आन दिया जाव !”'

अर र, पतर मोह स उसको मनियो क परति दवष हो गया।

राजकमार सकौशल वरागयवत धरमातमा था, राजबभव क सखो

प उसका मन नही रमता था | आतमसवरप की भावना म लीन रहता था।

यवा होत ही माता न उसका विवाह कर दिया।

जनधरम की कहानिया भाग-२/३५

एक दिन सकौशल राजमहल की छत पर बठकर अयोधया नगरी

की सनदरता दख रह थ | उनकी माता सहदवी और धायमाता भी वही थी ।

इसी समय एकाएक नगरी क बाहर नजर पडत ही राजकमार को

कोई महातजसवी मनिराज नगरी की ओर आत दिख; लकिन राजय क

सिपाहियो न उनह दरवाज क बाहर ही रोक दिया, बह समझ नही पाया

कि व आनवाल महापरष कौन ह और पहरदार उनह क‍यो रोक रह ह ?

दसरी ओर सहदवी न भी उन मनिराज को दखा...... व कोई

दसर नही, महाराज कीरतिधर ही थ, जिनहोन १५ दिन क सकौशल को

छोडकर दीकषा ल ली थी। उनको दखत ही रानी को डर लगा कि अर,

उनक बरागय उपदश स मरा पतर भी कही ससार छोडकर न चला जाव,

इसलिए रानी सहदबी न सवको को आजञा दी-

“यहा कोई गदगीयकत अनजान नगन परष नगरी म आय ह और

व हमार पतर सकौशल को भरमित करक ल जावग, इसलिए उनह नगरी

म परवश नही करन दव | इसीपरकार नगरी म कोई दसर नगन साध आव तो

उनको भी मत आन दव, जिसस मरा पतर उनह न दख पाव।

मर पति कीरतिधर पदरह दिन क छोट बालक को छोडकर चल गय

थ, तब उनह दया भी नही आयी थी। ' -- इसपरकार सहदवी न साध बन

अपन पति क परति ऐस अनादरपरण वचनो स कई बार तिरसकार किया..... |

“अर र ! यह दषट रानी साध बन अपन सवामी का अपमान

करती ह।' - यह दखकर धायमाता की आख म स आस गिरन लग।

राजकमार सकौशल का कोमल हदय यह दशय न दख सका,

उसन तरनत धायमाता स पछा-

“मा, यह सब कया ह ? व महापरष कौन ह ? उनह नगरी म क‍यो

आन नही दत? और उनह दखकर त कयो रो रही ह ?

जनधरम की कहानिया भाग-२/३६

राजकमार क परशन को सनत ही धायमाता का हदय एकदम भर

आया और रोत-रोत उसन कहा- बटा ! य महापरष और कोई नही,

तमहार पिताजी ह। व इस अयोधया नगरी क महाराजा कीरतिधर सवय ह और साध हो गय ह। अर, जो कभी सवय इस राजय क सवामी थ, आज

उनह उनक ही सवक, उनक ही राजय म, उनही का अनादर कर रह ह। इस

अयोधया नगरी क राजमहल म कभी किसी साध का अनादर नही हआ,

किनत आज साध हए महाराज का अनादर राजमाता दवारा ही हो रहा ह, राजमाता अपन सवामी और नगन दिगमबर साध को मला-कचला भिखारी जसा कहकर तिरसकार कर रही ह।

धायमाता न सकौशल स आग कहा- बटा ! जब त छोटा-

सा बालक था, तभी बरागय धारण करक तमहार पिता जन साध हो गय

थ। व साध महातमा ही इससमय नगरी म पधार ह.... आहार क लिए

पधार कोई भी मनिराज अपन आगन स कभी वापिस नही गय ।

पतर को राजय सौप कर दीकषा लकर आतमकलयाण कर-- ऐसी परमपरा तो असखयात पीढियो स अपन वश म चली आ रही ह और उसी

क अनसार तमहार पिता न तमह राजय सौप कर जिनदीकषा धारण की ह।

-जब धायमाता न ऐसा कहा, तब उस सनत ही सकौशलकमार

को बहत आशचरय हआ। “अर, यह मर पिताजी! य भिखारी नही, य

तो महान सनत महापरष ह। महाभागय स आज मझ इनक दरशन हए।

ऐसा कहत हए राजकमार सिर का मकट और पर म जत पहन बिना ही नग सिर और नग पर ही नगर क बाहर मनिराज (पिता) की ओर

दौड... .और उनक पास स धरम की विरासत लन क लिए दौड.... .जस

कि ससार क बधन तोडकर मकति की ओर दौड रह हो ?

इसपरकार व मनिराज क पास पहच... .और उनक चरणो म ममन

किया. ...आख म स आस की धारा बहन लगी।

जनधरम की कहानिया भाग-२/३७

* मनिवर ! कषमा करो.....परभो ! मन आपको पहचाना नही म अब इस ससार क बधन स मकत होना चाहता ह......।''

शरी कीरतिधर मनिराज बोल- ह वतस ! इस ससार म सब सयोग कषणभगर ह । उसक भरोस कया रहना? यह सारभत आतम तततव ही आनद

स भरपर ह, उसकी साधना क बिना अनय कोई शरण नही ॥ ह

इसपरकार शरी कीरतिधर महाराज न वरागय स भरपर धरमोपदश दिया।

धरमपिता महाराज कीरतिधर स उपदश सनकर राजकमार सकौशल का हदय

. बहत तपत हआ. ...ऐस असार-ससार स उनका मन विरकत हो गया... और तब शातचितत स विनयपरवक हाथ जोडकर परारथना की-

“sal ! मझ भी जिनदीकषा दकर अपन जस बना लीजिय, म तो मोहनिदरा म सो रहा था, आपन मझ जगाया. ....आप जिस मोकष- सामराजय की साधना कर रह हो ....मझ भी बसा ही मोकष-सामराजय चाहिय। और वह राजकमार उसी समय दीकषा लन तयार हो गया।

इसी समय वहा राजमाता सहदवी और राजकमार सकौशल की गरभवती रानी विचितरमाला, उनक मतरी आदि सभी वहा आ पहच. ...।

उनहोन राजकमार स कहा - ' ह राजकमार ! भल ही तम दीकषा ल लो.....हम नही रोकग । लकिन तमहार वश म ऐसा रिवाज ह कि पतर बडा होन पर, उस राजय सौपकर राजा दीकषा लता ह.... इसलिए आप भी रानी विचितरमाला क बालक को बडा हो जान द, तब उस राजय सौपकर फिर दीकषा ल लना....।

राजकमार न कहा- “जब वरागयदशा जागी, तब उस ससार का

जनधरम की कहानिया भाग-२/३८

कोई बधन रोक नही सकता; फिर भी, दवी विचितरमाला क गरभ म जो

बालक ह, उसका राजतिलक करक म उसको राजय सौपता ह।''

- ऐसा कहकर वही क वही गरभसथ बालक को अयोधया का राजय सौपकर ,

सकौशल कमार न अपन पिता कीरतिधर मनिराज

क पास जिनदीकषा ल ली...... पिता क साथ ही पतर भी ससार क बधन तोडकर मोकषपथ म

चलन लगा। कल का राजकमार राजवभव

छोडकर मोकषरपी आतमवभव को साधन लगा। कषणभर पहल का

राजकमार अब मनि होकर आतमधयान स सशोभित होन लगा।

धनय ह उनका आतजञान..... धनय उनका बरागय ! राजकमार सकौशल क बरागय की कहानी परी हई, अब उनकी माता का कया हआ,

उस अगली कहानी म पढो ! e

सवसवदय पदारथ ह;

एक अधर कमर म जीवाभाई बठा ह।

बाहर स काना भाई न पछा- अर, अदर कौन ह ?

जीवा भाई कहता ह- अधा ह कया ? दिखता नही ।

तब काना भाई न फिर पछा - तम अदर हो या नही ?

जीवा भाई बोला- हा, म तो ह। दखो, चाह जितन घन अधर म भी म ह।

इसी परकार आतमा अपन असतितव को जान सकता ह।

उस अपन को जानन क लिए अनय परकाश आदि की जररत नही

पडती ह। इसपरकार आतमा सवय अपन को जाननवाला aaa

परम पदारथ ह। ©

जनधरम की कहानिया भाग-२/३९

वाधघिन का वशणय

कीरतिधर मनिराज क पास जब सकौशल पतर न दीकषा ल ली, तब सकौशल की माता सहदवी को बहत आघात लगा। पिता और पतर दोनो मनि हो गय, इसस तीवर मोह को लकर सहदवी न उस मनिधरम की निदा

की..... धरमातमाओ का अनादर किया.... और करर परिणाम करक आरतधयान करत-करत वह मरी और मरकर वाघिन हई.....।

अर, जिसका पति मोकषगामी , जिसका पतर भी मोकषगामी - ऐसी वह सहदवी, धरम और धरमातमा क तिरसकार करन स वाघिन Be... l अत: बनधओ ! जीवन म कभी धरम या धरमातमा क परति अनादर नही करना, उनकी निदा नही करना |

अब वाघिन हई वह राजमाता , एक जगल म रहती थी, वह जगल क जीवो की हिसा करती और अतयत द:खी रहती... .उस कही भी चन नही पडती |

एकबार जिस जगल म वह वाघिन रह रही थी, उस ही जगल म मनिराज कीरतिधर तथा सकौशल आकर शाति स आतमा क धयान म बठ गय....। व वीतरागी शाति का महा-आनद लन लग।

वाधिन न दोनो को दखा.....दखत ही करर भाव स गरजना की, और सकौशल मनिराज क ऊपर छलाग मारकर उनह खान लगी....।

कीरतिधर मनिरगाज और सकौशल मनिराज दोनो तो आतमा क धयान म ह और वाघिन मनिराज को खा रही ह, व मनि आतमा क धयान म ऐस लीन हो गय कि शरीर का क‍या हो रहा ह - उसकी ओर उनका लकषय भी नही गया। आतमा का अनभव करत-करत उस ही समय सकौशल मनिराज न तो कवलजञान परकट करक मोकष परापत किया। तथा कीरतिधर मनिराज धयान म ही मगन रह।

जनधरम की कहानिया भाग-२/४०

अहा ! धनय ह उन मनिराजो को, उनक जीवन को !

इधर सकौशल मनि क शरीर को खात-खात वाधिन की नजर उनक हाथ क ऊपर पडी...... हाथ म एक चिनह दखत ही बह

आशचरयचकित रह गयी। उसक मन म विचार आया कि यह हाथ मन

कही दखा ह.... और तरनत ही उस परवभव का जातिसमरण जञान हआ

“अर, यह तो मरा पतर ! म इसकी माता। अर र, अपन पतर को

ही मन खा लिया | - इसपरकार क पशचाताप क भाव स बह वाधिन रोन

लगी, उसकी आखो म स आसओ की धारा बहन लगी।

उसी समय कीरतिधर मनिराज का धयान टटा और उनहोन वाघिन

को उपदश दिया - अर वाधिन ! (सहदवी) पतर क परति विशष परम क

कारण ही तरी मतय हई, उस ही पतर क शरीर का तन भकषण किया ?

ओर र, इस मोह को धिक‍कार ह। अब तम इस अजञान को छोडो और करर

भावो को तयागकर आतमा को समझकर अपना कलयाण करो !/

मनिराज क उपदश को सनकर तरत ही उस बाघिन न धरम परापत

किया, आतमा को समझकर उसन मास-भकषण छोड दिया, फिर बरागय

स सनयास धारण किया और मरकर दवलोक म गई। यहा शरी कीरति धर

मनि भी कवलजञान परापत करक मोकष गय।

(STAT BI TT आदि गहापरष भी कीरतिधर राजा क वश म

ही हए ह।

पाठको ! धरमातमा-जञानियो क जीवन म बरागय समाहित होता

ह, उस इस कहानी स समझना चाहिय और आतमा को समझकर ऐसा

बरागी-जीवन जीन की भावना करनी चाहिय | उस वाघधिन जस हिसक

पराणी न भी आतजञान परापत कर किसपरकार अपना कलयाण किया,

उस जानकर ह भवय जीबो ! तम भी मिथयातव आदि समसत परकार

क पाप भाव छोडकर आतनमजञान परापत करो | e

saad an कहानिया भाग-२/४१

Us UT Sekt

एक था हाथी. ....बहत ही

बडा हाथी ! बहत ही सनदर हाथी ! यह बात रामचनदरजी क समय की ह।

राजा रावण एक समय लका

की ओर जा रह थ, तभी बीच म शरी

सममदशिखर-कषतर को दखकर रावण

को बहत खशी हई और पास म ही

उसन पडाव डाला।

वहा एकाएक मघ-गरजना की आबाज सनाई दन लगी, लोग भय

स यहा-वहा भागन लग, लशकर क हाथी, घोड आदि भी डर स चीतकार

करन लग। रावण न इस कोलाहल को सनकर दखा कि एक बहत मोटा

और अतयत बलवान हाथी झमता-झमता आ रहा ह, यह उसकी ही

गरजना ह और उसस ही डरकर लोग भाग रह ह, हाथी बहत ही सनदर था।

उस मदमसत हाथी को दखकर रावण खश हआ, उस उस हाथी क ऊपर

सवारी करन का मन होन लगा , हाथी को पकडन क लिए वह आया और

हाथी क सामन गया, रावण को दखत ही हाथी उसक सामन ही दौडन

लगा, लोग आशचरय स दखन लग कि अब क‍या होगा ?

राजा रावण बहत ही बहादर था, गजकली_ म अकल ही हाथी क साथ खलन की कला म होशियार था| पहल उसन अपन कपडो का

गदढा बनाकर हाथो क सामन फका, हाथी उस कपड को सघन क लिए

रक गया, उसी समय छलाग मारकर उस हाथी क मसतक क ऊपर चढ

गया और उसक कभसथल पर मदठी स परहार करन लगा।

हाथी घबरा गया, उसन सड ऊपर करक रावण को पकडन की

बहत चषटा की, फिर भी रावण उसक दोनो दतशल क बीच स सरक कर

जनधरम की कहानिया भाग-२/४२

नीच उतर गया । इसपरकार रावण न कई बार हाथी क साथ खल कर हाथी को थका दिया और फिर रावण हाथी की पीठ पर चढ गया जस हाथी भी राजा रावण को समझ गया होव -- इसतरह शात होकर विनयवान सवक की भाति खडा हो गया | रावण उसक ऊपर बठकर पडाव की ओर आया। वहा चारो ओर जय-जयकार होन लगी।

रावण को यह हाथी बहत अचछा लगा, इसलिय उस वह लका ल गया। लका जाकर उस हाथी की परापति की खशी म उतसव मनाकर उसका नाम तरिलोकमणडल रखा। रावण क लाखो हाथियो म स वह परमख हाथी था।

एक बार रावण सीता का हरण करक ल गया | तब राम-लकषमण न लडाई करक रावण को हराया और सीता को लकर अयोधया आय, उसीसमय लका स उस तरिलोकमणडन हाथी को भी साथ ल आय। राम - लकषमण क ४२ लाख हाथियो म वह सबस बडा था और उसका बहत मान था।

राम क भाई भरत अतयत वरागी थ, जस शिकारी को दखकर हिरण भयभीत होता ह, उसीपरकार भरत का चितत ससार क विषय-भोगो स अतयत भयभीत था और व ससार स विरक‍त होकर मनि होन क लिए उतसक थ।

जिसपरकार पिजर म कद सिह खदखिनन रहता ह और बन म जान की इचछा करता ह, उसी परकार वरागी भरत गहवासरपी पिजर स छट कर वनवासी मनि बनना चाहत थ | लकिन राम-लकषमण न आगरह करक उनह रोक लिया। उनहोन उदास मन स कछ समय तो घर म बिताया, लकिन अब तो रतनतरयरपी जहाज म बठकर ससार-समदर स पार होन क लिए तयार थ।

जनधरम की कहानिया भाग- २/४३

एक बार भरत सरोवर क किनार गय, उसी समय गजशाला म

कया हआ उस सनो !

गजशाला म बधा तरिलोकमणडन हाथी मनषयो की भीड दखकर

एकाएक गरजना करन लगा और साकल तोडकर भयकर आवाज करत

हए भागन लगा। हाथी की गरजना सनकर अयोधया-वासी भयभीत हो गय, हाथी तो दौडन लगा, राम-लकषमण उस पकडन क लिए उसक पीछ

दौडन लग | दौडत-दौडत वह हाथी सरोवर क किनार जहा भरत थ, वहा

आया | लोग चितित हो गय - हाय ! हाय !! अब कया होगा ? रानिया

और परजाजन रकषा क लिए भरत क पास आय | उनकी मा ककयी भी भय

स हाहाकार करन लगी।

हाथी दौडत-दौडत भरत क पास आकर खडा हो गया, भरत न

हाथी को दखा और हाथी न भरत को दखा | बस, भरत को दखत ही हाथी

एकदम शात हो गया, और उस जाति

समरण जञान हो गया, उसस उसन जाना

कि “अर, हम दोनो मनि हए थ और

फिर छठव सवरग म दोनो साथ थ।

अर र ! परवभव म म और भरत साथ म ही थ। परनत WA भल

की उसस म दव स पश हआ। अर ! इस पश परयाय को धिककार ह !*'

भरत को दखत ही हाथी एकदम शात हो गया और जस गर क

पास शिषय विनय स खडा रहता ह, वस ही भरत क पास हाथी विनय स

खडा हो गया। भरत न परम स उसक माथ पर हाथ रखकर मक सवर म

कहा - अर गजराज ! तमह यह कया हआ ? तम शात हो !! यह करोध

तमह शोभा नही दता। तम चतनय की शाति को दखो ।”'

जनधरम की कहानिया भाग-२/४४

भरत क मधर वचन सनत ही हाथी को बहत शाति मिली, उसकी आखो म स आस गिरन लग, वरागय स विचार करन लगा कि -

अर, अब पशचाताप करन स कया लाभ ? अब मरा आतम कलयाण हो और म इस भवद:ख स मकत होऊ। ऐसा उपाय करगा। ”'

इसपरकार परम वरागय का चिनतन करत हए हाथी एकदम शात होकर भरत क सामन टकर-टकर (एकटक) दखत खडा रहा | जस कह रहा हो -

“ह बध ! तम परवभव क मर मितर हो, परवभव म सवरग म हम दोनो साथ थ, अब मरा आतमकलयाण कराकर इस पशगति स मरा उदधार करो।

(वाह र वाह ! धनय हाथी ! उसन हाथी होकर भी आतमा क कलयाण का महान कारय किया। पश परयाय म होन पर भी परमातमा को समझन क लिए अपना जीवन सारथक किया |)

हाथी को एकाएक शात हआ दखकर लोगो को बहत आशचरय हआ- अर यह कया हआ ! भरत न हाथी क ऊपर कसा जाद किया ? वह एकाएक शात कस हो गया ?”!

भरत उसक ऊपर बठकर नगरी म आया और हाथी को गजशाला म रखा, महावत उसकी खब सवा करत ह, उस मोहित करन क लिए सगीत करत ह, उसको परसनन करन का उपाय करत ह।

- लकिन आशचरय की बात तो यह ह कि हाथी अब कछ खाता नही, सगीत आदि पर भी धयान नही दता, सोता भी नही, करोध भी नही करता, वह एकदम उदास ही रहता ह| अपन आप म आख बद करक शात होकर बठा रहता ह और आतमहित की बात ही विचारता रहता ह। जाति-समरण को परापत करक उसका मन ससार और शरीर स अतयत विरकत हो गया ह.....।

जनधरम की कहानिया भाग-२/४५

इसी परकार खाय -पिय बिना ही एक दिन हो गया, दो दिन हो गय ,

चार दिन हो गय. ... .तब महावत न शरी राम क पास आकर कहा--

“ह दव | यह हाथी चार दिन स न कछ खाता-पीता ह, न सोता ह और न ही करोध करता ह। शात होकर बठा रहता ह और पर दिन न जान किसका धयान करता ह। उस रिझान क लिए हमन बहत परयतन किय, लकिन उसक मन म क‍या ह ? पता ही नही चलता, बड-बड

गजबदयो को दिखाया, व भी हाथी क रोग को नही जान सक- यह हाथी

अपनी सना की शोभा ह| यह बडा बलवान ह - इस एकाएक यह क‍या

हो गया ? वह हमारी समझ म नही आता, इसलिए आप ही कोई उपाय

कीजिए !

इसी समय अचानक एक सनदर बनाव बना । अयोधया नगरी

म दो कवली भगवत पधार.....उनक नाम थ - दशभषण और कलभषण | (राम और लकषमण न वन गमन क समय वशसथ परवत पर इन दो मनिवरो क उपसरग को दर करक बहत भकति की थी और उसी समय उन दोनो मनिवरो को कवलजञान परापत हआ था।) व जगत क जीबो का

कलयाण करत-करत अयोधया नगरी म पधार | भगवान क पधारन स परी

नगरी म आनद ही आनद छा गया। सब उनक दरशन करन क लिए

चल...... राम, लकषमण, भरत और शतरघन भी उस तरिलोकमणडन हाथी

क ऊपर बठकर उन भगवतनतो क दरशन करन क लिए आय..... और

धरमोपदश सनन क लिए बठ। भगवान न समयगदरशन-जञान-चारितररप

मोकषमारग का अदभत उपदश दिया, उस सनकर सभी बहत आनदित हए।

बतरिलोकमणडन हाथी भी उन कवली भगवनतो क दरशन स बहत

ही परसनन हआ और धरमोपदश सनकर उसका चितत ससार स उदास हो

गया, उसन अपरब आतम शाति परापत की। उसन भगवनतो को नमसकार

करक शरावक क बरत अगीकार किय।

जनधरम की कहानिया भाग- २/४६

धनय ह गजराज तमको ! तमन आतमा को समझकर जीवन सफल

बनाया ! तम पश नही दव हो, धरमातमा हो, दवो स भी महान हो।

बालको, दखो ! जनधरम का परताप !! एक हाथी जसा पश का

जीव भी जनशासन परापत करक कितना महान हो गया ! तम भी ऐस महान

जनशासन को परापत करक, हाथी की भाति आतमा को समझकर, उततम

बरागयमय जीवन जियो !

आग क‍या हआ - यह जानन क लिए “भरत और हाथी”

नामक कहानी ae |

Wea Ate seit

भगवान क उपदश सनकर महाराज लकषमण न पछा -

“ह भगवन‌ | यह तरिलोकमणडन हाथी पहल गजबनधन तोडकर

कयो भागा ? और फिर भरत को दखकर एकाएक शात क‍यो हो गया ?

तब भगवान की वाणी म आया कि भरत का जीव और हाथी का

जीव दोनो परवभव क मितर ह।

उनक परवभव का वततानत इसपरकार ह, उस सनो - _ भरत और

तरिलोकमणडन हाथी दोनो जीब बहत भव पहल भगवान ऋषभदव क

समय म चदर और सरय नाम क दो भाई थ। मारीचि क मिथया उपदश स

कधरम की सवा करक दोनो न बदर, मोर, तोता, सरप, हाथी, मढक,

बिलली, मरगा आदि बहत भव धारण किय और दोनो न एक-दसर को

बहत बार मारा, कई बार भाई हए, फिर पिता-पतर हए। इसपरकार

yaya करत-करत कितन ही भव बाद भरत का जीव तो जनधरम परापत

कर मनि होकर छठ सवरग म गया। और यह हाथी का जीव भी परवभव म बरागय परापत करक मदयति नाम का मनि हआ |

एकबार एक नगर म दसर एक महाकरदविधारी मनिराज बहत

गणवान और तपसवी थ, उनहोन चारतमास म चार माह क उपवास किय,

जनधरम की कहानिया भाग-२/४७

और फिर चारतमास परा होन पर अनयतर विहार कर गय। हाथी का जीव यानी व ही मदयति मनि तभी उस नगर म आय, तब भल स लोगो न उनह ही महा-तपसवी समझ लिया और सममान करन लग | उनह खयाल आया कि लोग भरम स मझ ऋदधिधारी तपसवी समझ कर मरा आदर कर रह ह - ऐसा जानत हए भी मान (घमणड) क वश म उनहोन लोगो को सचची बात नही बताई, कि पहल तपसवी मनिराज तो दसर थ और म दसरा ह।

अत: शलयपरवक मायाचार करन का परिणाम उनक तिरयचगति क बनध का कारण बना; लकिन मनिपन क परभाव स वह जीव वहा स मर कर परथम तो छठ सवरग म गया। भरत का जीव भी बहा था, व दोनो दव मितर थ | उनम स एक तो इस अयोधया का राजपतर भरत हआ ह और दसरा जीव मायाचारी क कारण यह हाथी हआ ह| उसक मनोहर रप को दखकर लका क राजा रावण न उस पकड लिया और उसका नाम तरिलोकमणडन रखा | रावण को जीतकर राम-लकषमण उस हाथी को यहा ल आय । लोगो की भीड दखकर घबराहट स वह बधन को तोडकर भागा था। लकिन परवभव क मितरो का मिलन होन स परवभव क ससकार जागत होन स भरत को दखत ही हाथी पन: शानत हो गया | उस जातिसमरण जञान हआ ह और अपन परवभव की बात सनकर वह ससार स एकदम उदास हो गया ह, और अब आतमा की साधना म उसन अपना मन लगाया ह उसन शराबक क बरत अगीकार किय ह...... वह भी निकटभवय ह।

दशभषण-कवली की सभा म अपन परवभव की बात सनकर वरागी भरत न वही जिनदीकषा धारण कर ली और फिर कवलजञान परकट करक मोकष परापत किया। उनका मितर तरिलोकमणडन हाथी भी ससार स विरकत हआ, उसन भी आतमानभव परकट करक शरावक क बरत अगीकार किय | वाह ! हाथी का जीव शरावक बना. ... पश होन पर भी दवो स भी महान बना और अब अलपकाल म मोकष परापत करगा।

जनधरम की कहानिया भाग-२/४८

शरी दशभषण-कवली परभ की वाणी म हाथी की सरस बात

सनकर राम-लकषमण आदि सभी आनदित हए। ह भवय पाठको ! तमह भी

आनद आया होगा। और हा ! तम भी हाथी क समान अपनी आतमा को

जिनधरम म लगाओग और मान-माया आदि सभी परकार क विकारी भावो

को छोडोग, तो तमहारा भी कलयाण होगा।

हाथी और भरत क परवभव की बात सनकर राम-लकषमण आदि सभी को आशचरय हआ। भरत क साथ एक हजार राजा भी जिन दीकषा लकर मनि हए। भरत की माता ककयी भी जिनधरम की परम भकत बनकर , वरागय परापत कर आरयिका हई। उनक साथ ३०० सतरियो न भी पथवीमति माताजी क पास जिनदीकषा ली। (बाद म सीताजी भी उन पथवीमति

मराताजी क सघ म आ गयी थी।)

तरिलोकमणडन हाथी का हदय तो कवली भगवान क दरशन स

फला नही समा रहा था, परवभव को सनकर और आतमजञान परापत करक

वह एकदम शात हो गया ! समयगदरशन सहित वह हाथी बरागयपरवक रहता

और शरावक क बरतो का पालन करता ह, पनदरह-पनदरह दिन या महिन- महिन भर क उपवास करता ह। अयोधया क नगरजन बहत वातसलयपरवक उस शदध आहार-पानी क दवारा उसको भोजन करात ह। ऐस धरमातमा

हाथी को दखकर सब उसक ऊपर बहत परम करत ह। तप करन स धीर- धीर उसका शरीर दरबल होन लगा और असत म धरमधयान परवक, दह छोडकर वह छठव सवरग म गया..... और अलपकाल म मोकष परापत किया ।

बालको , हाथी की सरस चरचा परी हई, उस पढकर , तम भी हाथी

जस बनो , हाथी जस मोट नही, लकिन हाथी जस धरमातमा हो जाओ.....

आतमा को समझकर मोकष की साधना करो। ®

जो सवभाव म जीता ह, वह gah an ah aan A sic @, Fe Fat

जनधरम की कहानिया भाग- २/४९

दसर ढाथी की आतमकथा

(पाठको ! पहल तमन ““तरिलोकमणडन ” नाम क हाथी की

कहानी पढी, अब यह दसर हाथी की कहानी उसक मख स सनकर

तम आनदित होओग ।)

धरमातमा हाथी अपनी जीवन कथा कहता ह -

भगवान कऋरषभदव क पतर महाराज बाहबली की राजधानी

पोदनपर ....जहा स असखयात राजा मोकषगामी हए।..... बाद म एक

अरविद नाम का राजा हआ ..... म (हाथी का जीब) परवभव म इसी

अरविद महाराजा क मतरी का पतर था, मरा नाम मरभति था और कमठ

मरा बडा भाई था।

एक बार हमार भाई कमठ न करोधावश म आकर पतथर की बडी

शिला पटक कर मझ मार दिया..... सग भाई न बिना किसी अपराध क

मझ मार डाला.... र ससार !

उस समय म अजञानी था, इसलिए आरततधयान स मर कर तिरयच

गति म हाथी हआ, मझ लोग 'वजघोष नाम स बलात थ।

मरा भाई कमठ करोध स मरकर भयकर सरप हआ।

तथा महाराजा अरविद दीकषा लकर मनि हए।

हाथी अपनी आपबीती बतात हए आग कहता ह - हाथी क

इस भव म मझ कही आराम नही मिलता था..... म बहत करोधी और

विषयासकत था..... सममदशखिर क पास एक बन म रहता था, भविषय

म जहा स म मोकष परापत करगा - ऐस महान सिदधधाम क समीप रहत हए

भी उस समय मरी आतमा सिदधपथ को नही जानती थी | उस वन का अपन

को राजा मानन स वहा स निकलनवाल मनषयो एव अनय जानवरो को म

बहत तरास (दःख) दता था।

जनधरम की कहानिया भाग-२/५०

एक बार एक महान सघ सममदशिखरजी तीरथ की यातरा करन जा

रहा था, हजारो मनषयो की भीड थी। हमार राजा अरविद - जो मनि हो

गय थ। व मनिराज भी इस सघ क साथ ही थ..... लकिन पहल मझ इस बात की खबर नही थी।

उस महान सघ न मर बन म पडाव डाला. .... मर वन म इस सघ

का कोलाहल मझस सहन नही हआ... करोध स पागल होकर म दौडन

लगा और जस ही कोई मर चगल म आया, उसको म कचलन लगा..... कितन ही मनषयो को सड स पकडकर ऊचा उछाला, कितन ही को पर

क नीच कचल डाला..... रथ, घोडा वगरह भी तोड-फोड fea | Gad

चारो ओर हा-हाकार और भगदड मच गई।

करोध क आवग म दौडत-दौडत म एक वकष क पास आया.....

वकष क नीच एक मनिराज बठ थ.... उनहोन अतयत शात-मधर मीठी

नजरो स मरी ओर दखा.... हाथ ऊचा करक व मझ आशीरवाद द रह थ... अथवा मानो आदश द रह थ कि “रक जा ।

मनिराज को दखत ही अचानक कया हआ कि म सतबध रह गया। करोध को म भल गया. .... मनिराज सामन ही दख रह थ..... मझ बहत अचछा लगा... जस व मर कोई परिचित हो - इसपरकार मझ परम भाव

जाग गया |

अहा, मनिराज क साननिधय स कषणमातर म मर परिणाम चमतकारिक

ढग स पलट गय.... करोध क सथान पर शाति मिल गई।

म टकटकी लगाकर दख रहा था.... वहा मनिराज करणादषटि स मझ सबोधत हए बोल - _ ह गजराज ! ह मरभति ! त शात हो ! तझ कररता शोभा नही दती .... परवभव म त मरभति था और अब भरत कषतर का तईसवा तीरथकर भगवान पारशवनाथ होगा | तमहारी महान आतमा इस

करोध स भिनन, अतयत शात चतनय सवरप ह..... उस त जान !””

जनधरम की कहानिया भाग-२/५१

अहा ! मनिराज मझ अतयत मधर रस पिला रह थ.... म मगध

होकर उनकी ओर दखता रहा. .... इतन म मरी नजर उनकी छाती क शरी

वतस चिहन क ऊपर पडी..... मर अनतर म समति जागी.... अर, इनह तो

मन पहल भी कभी दखा ह | य कौन ह ? य तो मर राजा अरबिद ह, अहा!

य राजपाट छोडकर मनिदशा म बीतरागता स कस सशोभित हो रह ह !! इनक पास मझ कितनी शाति मिल रही ह ! अहो, इन मनिराज की

निकटता परापत करन स म करोध क घोर दःख स छट गया. ... .और य मझ

मरा शानत तततव बता रह ह।

ऐसा विचार करक म विनय स सड नवाकर शरी मनिराज क सनमख

खडा रहा... लोगो का और मरा - दोनो का महा उपदरव शात हआ, मर

आखो स अशलरधारा बहन लगी।

. मनिरणज न मरी सड पर हाथ रखकर परम स कहा -

“are | त शात हो ! म अरविद राजा मनि हआ ह और त इसस

पहल क भव म मर मतरी का पतर (मरभति) था.... उस याद कर !

यह सनत ही मझ मर परवभव की याद आयी, जातिसमरण हआ

बरागय स मर परिणाम विशदध होन लग....।

शरी मनिराज न कहा - ' ह भवय ! परवभव म तमहार सग भाई न

ही तझ मारा था.... ऐस ससार स अपन चितत को त विरकत कर.... करोधादि परिणामो को छोडकर शात चितत स अपन आतमतततव का विचार

कर.... त कौन ह ? त हाथी नही, त करोध नही, शरीर और करोध दोनो

स भिनन त तो चतनसवरप ह. ..अर ! अपन चतनयसवरप को त समझ ...। '

शरी मनिराज की मधर वाणी मरी आतमा को जागत करन लगी...

मनिराज की वीतरागी शाति को दखकर म मगध हो गया, कितन निरभय,

कितन शात ! कितन दयाल ! मर करोध की अशाति और मनिराज की

चतना म रहनवाली शाति इन दोनो क महान अनतर का जञान होत ही मरा

जनधरम की कहानिया भाग-२/५२

उपयोग करोध को तज कर कषमा की ओर जान लगा.... करोधरपी

पागलपन कही दर चला गया था।

शरी मनिगज अपनी मधर वाणी स मझ सबोधित करत BU He

रह थ - ह भवय ! अब तमहार भव द:ख का अनत नजदीक आ गया ह, आताजञान करक अपरव कलयाण करन का अवसर आ गया ह.... तम

अनत:वतति क दवारा चतनयतततव को दखो...... उसकी अदभत सनदरता

को दखकर तमह अपरव आनद होगा....। ae oe

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और अब सनो ! अतिशय हरष की बात यह ह कि इस भव म ही

समयकतव परापत कर, आतम; की आराधना म आग बढत -बढत आठव भव

म तम भरतकषतर की चौबीसी म तईसव तरिलोकपजय तीरथकर भगवान

पारशथनाथ होओग..... अब तमहार मातर सात भव शष ह...... और व

भी सब भव आतमा की आराधना स सहित ह.....।

शरी मनिराज स अबन भव क अनत की बात सनकर मझ अपार परसननता हई... और तभी स अनतरग म चतनयतततव क परम-आनद का

सवाद चखन क लिए बारमबार मरा मन करन लगा । “ऐस वीतरागी सत

का मझ समागम मिला ह '-.. इसलिए मझ इसीसमय कषाय स भिनन शात

जनधरम की कहानिया भाग-२/५३

चतनयरस की अनभति करना चाहिय... ऐस शात परिणाम क दवारा मरी

चतना अनतर म उतर गई..... मन अपन परमातमसवरप क साकषात‌

(परतयकष) दरशन किय ..... मझ परम -आनदमय सवानभति सहित समयकतव

परापत हआ।

अहा, मनि भगवत क एक कषणमातर क सतसग न मझ मर परमातमा स मिलाया मरा अकषय चतनय निधान मझ परापत हआ... . । भव-द:ख

का अत और‌ मोकष की साधना का परारभ हआ | मनिराज क उपकार की कया बात ! भाषा क शबद तो मर पास नही थ तो भी मन ही मन मन उनकी

सतति की, शरीर की चषटा क दवारा बदना करक भकति वयकत की....।

परभो | इस पामर जीव को आपन पशता स छडा दिया .... हाथी का यह

भारी शरीर म नही, म तो चतनय परमातमा ह, पल-पल म अनतरमख परिणाम स आनदमय अमत की नदी मर अनतर म उछल रही थी...।

आतमा अपन एकतव म रमन लगा. ... चतनय की गभीर शाति म ठहरत

हए इस भव स पार उतर गया, ... कषायो की अशानति स आतमा छट

गया... म अपन म ही तपत-तपत हो गया।

समयगदषटि हआ हाथी कहता ह - मरी ऐसी दशा दखकर सघ

क मनषयो को भी बहत आशचरय हआ । यह कसा चमतकार ! कहा एक कषण पहल का पागल हाथी ! और कहा यह बरागय भाव स शानतरस म

सराबोर हाथी !””

मनिशरी न उनह समझात हए कहा -

“ह जीवो ! यह हाथी एकाएक शान‍त हो गया -- यह कोई

चमतकार नही, यह तो चतनयतततव की साधना का परताप ह। ..... अथवा

इस चतनय का चमतकार कहो..... कषाय आतमा का सवभाव नही ह,

आतमा का सवभाव तो शानत-चतनयसवरप ह - उस लकषय म लत ही

आतमा करोध स भिनन अपन अतीनदरिय चतनय सख का अनभव करता ह।

जनधरम की कहानिया भाग-२/५४

यह हाथी इस समय ऐस परम चतनय सख का अयभव कर रहा ह। अब

आततजञान परापत कर मोकषमारग म परवश पा गया ह... ... इसका जीवन धनय

हो गया ह...... यह धरमातमा ह.... और भावी तीरथकर ह।

लोगो को अपार परसननता हई..... चारो ओर आशचरय और हरष का वातावरण बन गया | अनक जीवो न मनिराजशरी की बात सनकर और

मरी शानतदशा दखकर चतनय की महिमा को समझकर समयगदरशन परापत

किया।

म शात दषटि स मनषयो को दखकर कषमा माग रहा था और मन ही मन यह विचार कर कि “यह मनिराज का उपकार ह, इनक ही सतसग

का परताप ह....., मरा मन इनक परति कतजञता स भर Bar”

मनिराज न परसनन होकर मझ आशीरवाद दिया।

बधओ ! यह हाथी कोई और नही अपन भगवान पारसनाथ

का ही जीव ह, पहल सिह की फिर इस हाथी की कहानी सनकर सतसमागम की महिमा का विचार करना । हाथी तिरयच-पराणी, मनिराज

क कषणभर क समागम स करोध शात करक आतमतततव क परमारथ

सवरप को समझकर पशपरयाय स भी परमातमा बन जाता ह। उस

सतसमागम की कितनी महिमा ! जीवन म आतमहित करन क लिए

सतसमागम (सतसग) जसा साधन कोई दसरा नही ह। कभी महाभागय

स कषणभर क लिए भी धरमातमा क सतसग का सयोग बन जाव तो परमाद

(आलस) नही करना। सतसग का महान लाभ लकर आतमकलयाण

कर लना ।

फिर, उस हाथी का क‍या हआ ? अब यह सनो -

फिर, आतमजञान परापत हो जान स उस हाथी को अतिशय बरागय

हआ. ... तथा मनिराज क समकष उसन शरावकधरम क पाच अणवरत धारण किय।

जनधरम की कहानिया भाग-२/५५

एकबार वह

हाथी कही पर कीचड

म फस गया, वहा

उसक परवभव का भाई (aa) aaa wa

सरप हआ था, उस सरप

न हाथी को डस

लिया, समयकतव

सहित समाधिमरण

करक वह हाथी तो

सवरग म दव हआ और सरप का जीव नरक म गया।

अगल भव म हाथी का जीव मनषय होकर मनिदशा म धयान म

बठा था, वहा अजगर हए कमठ क जीव न उस डस लिया | फिर स वह सवरग म गया और अजगर नरक म

इसक बाद क भव म हाथी का जीव वजजनाभि-चकरवरती हआ,

व मनि होकर धयान म बठ थ, वहा शिकारी भील हए कमठ क जीव न बाण स उनह वध डाला। पन: वह सवरग म गया, भील नरक म ।

उसक बाद क भव म हाथी का जीव अयोधया नगरी म आनदकमार नाम का महाराज हआ। बहा वरागय परवक मनि होकर सोलह कारण भावना क दवारा उसन तीरथकर परकति बाधी | आनद मनिराज आतमधयान

म बठ थ, इसीसमय सिह हए कमठ क जीव न उनह खा लिया ..... व मनिराज सवरग क दव हए और कमठ का जीब नरकादि म भरमण करत - करत सगम” नाम का दव हआ |

अतिम भव म उस हाथी क जीव न वाराणसी (काशी) नगर म

पारसनाथ तीरथकर क रप म अवतार लिया... दीकषा लकर मनि होकर

जनधरम की कहानिया भाग-२/५६

व आतमधयान म मगन थ, उस समय सगम दव न उपदरव किया, लकिन

पारस मनिराज तो आतमसाधना म अडिग रहकर कवलजञान परापत कर

तीरथकर परमातमा हए..... इनदरो न आकर आशचरयकारी महोतसव मनाया ।

परभ की चरम महिमा को दखकर, कमठ क जीव उस सगम दव को अपनी भल (अजञानता) का भान हआ, कषमा मागकर भकतिपरवक परभ का उपदश सनकर समयगदरशन परापत किया।

पारस क साथ लोहा भी सोना बन गया। धनय ह सतसग की

महिमा ! जिसक परताप स हाथी का जीव मोकषमागरी बन गया। ७ —

- आप जानत ह ९

s ayer Wa-We aa e@) ata क अदर कोई

विचार चल रहा ह। एक न कया विचार किया - यह दसरा उस छकर (सपरश करक) भी नही जान सकता ।

दसर न कया विचार किया- इस पहला, दसर को छकर

भी नही जान सकता / परत व दोनो अपन-अपन आदर विचारो

को तो सपषट जानत ह। सपरश क दवारा या आख क दवारा न दिख-

ऐस अपन अरपी विचारो का असतितव जीव सवय सपषट जान

a ह।

ऐस अरपी विचार जिसकी भमिका म होत ह और जो उनह जानता ह, वह सवय अरपी चतनय आतया ह।

अल त। भी इस समयगजञानी बालक की तरह चतनय

सवरपी आतया और शरीर का भवजञान करना चाहिय।

“चतनय सवरपी आतया यह म ह तथा जड शरीर वह म नही ह। - इसपरकार यथारथ निरणय करना चाहिय। ७

जनधरम की कहानिया भाग-२/५७

बोल. ....तो क‍या बोल 2 भरत चकरवरती क कितन ही राजकमार जनम स ही गग थ.....

बोलत नही थ....फिर जब पहली ही बार बोल.... तब कया बोल ? - यह जानन क लिए पढिय यह कहानी. ...

भरत चकरवरती सहित अनक रानिया भी चिनतित ह, कयोकि उनक अनक राजकमार कछ बोलत ही नही, लगता ह जनम स ही गग ह। अनक वरष बीत गय, एक शबद भी उनक मख स अभी तक निकला नही था, राजकमारो पर बोलन क लिए अनक यकति और उपाय किय गय, परनत ब नही बोल।

अर, चकरवरती क रपवान राजकमार क‍या जिदगी भर ही गग रहग ? कया व बिलकल ही नही बोलग ? - इसकी चिता स सभी हमशा चिनतित रहत थ।

इसीसमय भगवान करषभदव समवशरण सहित अयोधयापरी म पधार.... राजा भरत उनक दरशन करन क लिए गय..... साथ म इन गग राजकमारो को भी ल गय। भरत न भगवान क दरशन किय। राजकमारो न भी भकतिभाव स अपन दादा तीरथकर ऋषभदव क दरशन किय, परनत अभी तक भी व बोल नही।

आखिर भरत चकरवरती न पछा - “ह परभो ! महापणयशाली राजकमार कछ भी नही बोलत ? क‍या व गग ह ?””

उस समय भगवान की वाणी म आया - “ह भरत ! य राजकमार गग नही ह, जनम स ही बरामयचितत क कारण व कछ भी नही बोलत ।

लकिन अब व बोलग।''

भरत न कहा - ह पतरो ! तम गग नही हो” - यह जानकर हम अपार परसननता हई ह..... और अब क‍या बोलत हो ? उस सनन क लिए हम उतसक ह।

जनधरम की कहानिया भाग-२/५८

व वरागी राजपतर एक साथ खड हए और भगवान क सममख परम

विनयपरवक हाथ जोडकर कछ इसपरकार बोल, मानो चतनय की गफा म

स वरागय की मधर वीणा बज रही हो -

“ह परभो ! हम मोकष क कारणरप ऐसी मनिदीकषा चाहिय।

हमारा चितत इस ससार स उदास ह, इस ससार क सयोग म या परभाव

म कही भी हम शानति नही मिली, हम अपन निजसवभाव क मो कषसख

का अनभव करवा दीजिए, जिसस हम कवलजञान परकट करक भव-

बनधन स छट wd 1”

राजकमार आज जीवन म पहली बार ही बोल | वाह ! पहली

ही बार बोल ...... और ऐस उततम वचन बोल ?

भरत चकरवरती और सभाजन भी राजकमारो क शबदो को सनत

ही सतबध रह गय , लाखो -करोडो दवो न और मनषयो न उनक बरागय की परशसा की।..... तिरयचो क समह भी इन बरागी राजकमारो को

आशचरयचकित होकर दख रह थ।

राजकमार तो अपन वरागय भाव म ममन ह। परभ क सन‍मख आजञा लकर व वसतर-मकट आदि परिगरह छोडकर मनि हए. ... . वबचन-विकलप

छोडकर शदधोपयोग क दवारा निजानद सवरप म लीन होकर वचनातीत आनद का अनभव करन लग।.....

पाठको ! इन राजकमारो का उततम जीवन हम यह शिकषा दता ह कि ह जीव ! ऐस ही वचन त बोल, जिसम तमहारा आतमहित का परयोजन हो .... ससार क निषपरयोजन कोलाहल म मत पड....। ७

सब विषततियो का यल अजञान ह । पढा-लिखा अजञानी,

अनपढ अजञानी स अधिक भरयकर होता ह। AMA का

आभास होना ही अजञान क नाश की विधि ह /

जनधरम की कहानिया भाग-२/५९

अहिसा धरम की कहानी (राजा शरणिक, रानी चलना तथा अभयकमार का परवभव)

एक बार राजा शरणिक की राजधानी राजगही म तीरथकर परमातमा

महावीर परभ पधार। उनक समवशरण म आय राजा शरणिक न परभ का

उपदश सनकर गौतम सवामी स पछा -

“ह दव ! मर परभव की कथा कहिय।

गौतम सवामी न अपन दिवयजञान क दवारा जानकर कहा -

“ह शरणिक ! सनो ! दो भव परव म तम भीलराजा थ, उस समय

तमन मास-तयाग की एक परतिजञा ली थी, उसक फल म तम सवरग म दव

हय, फिर यहा क राजा हय हो।

परवभव म तम विधयाचल म '“ 'वादिरसार' नाम क भील थ, वहा

तम शिकार करत और मास खात थ। yn ae

एकबार महाभागय स तमह जन मनिराज

क दरशन हए।

मनिराज न कहा - मासाहार

महापाप ह, उस त छोड द।

तमन भदरभाव स कहा - “oT!

मास का तो हमारा धनधा ह, उस म सरवथा नही छोड सकता। फिर भी

ह सवामी ! आपक बहमानपरवक म कोए

क मास को छोडता ह। भल ही पराणानत क‍यो न हो जाय, पर म कौए का मास

कभी नही खाऊगा। _ शरी मनिराज न उस भवय जानकर यह परतिजञा द दी।

ह शरणिक ! उसक बाद कछ ही

जनधरम की कहानिया भाग-२/६०

समय म ऐसी घटना घटी कि उसी वादिरसार भील को कोई महा भयकर विचितर रोग हआ, औषधि दवारा अनक उपाय करन पर भी वह रोग दर न हआ।

“औषधि क रप म यदि कौए का मास खाओग, तो रोग मिट जायगा | - ऐसा एक मरख वदय न कहा, लकिन वादिससार भील अपनी परतिजञा म दढ था।

उसन कहा- ““मरण हो तो भल ही हो जाव, eg A कोए का मास कभी नही खाऊगा।”!

वादिरसार क एक मितर अभयकमार क जीव न यह बात सनी और वह उस समझान क लिए वादिरसार क पास आ रहा था | इसीसमय रासत म उसन एक यकषदवी को उदासचितत बठ दखा | तब उसर मितर न उसकी उदासी का कारण पछा ?

यकषदवी (रानी चलना क जीव) न कहा - ह भाई ! तम अपन मितर वादिरसार क पास जा रह हो, उस कौए क मास का तयाग ह; लकिन यदि तम जाकर उस दवा क रप म कौए का मास खान क लिए कहोग और कदाचित‌ वह परतिजञा स भरषट होकर मरण स बचन क लिए कौए का मास खावगा तो मरकर नरक म जावगा, अत: उसकी दशा का विचार करक म दःखी ह।””

उससमय उस आशवासन दकर, वह कशल मितर वादिरसार भील क पास आया और उसकी परीकषा लन क लिए कहा -

“aly cht Hie खाओग तो तमहारा रोग मिट जाबगा। दसरी कोई दवा उपयोगी नही ह ।”” जब वह नही माना, तब उसन और भी दढता क साथ कहा - “भाई ! हठ छोड दो, वयरथ ही मरण हो जायगा। एक बार औषधि क रप म कौए का मास खा लो, अचछ हो जान पर फिर बरत aaa”

जनधरम की कहानिया भाग-२/६१

तब भील न मितर को समझात हए कहा - ' मन अपन जीवन

म कोई सतकारय नही किया, जस-तस एक छोटा बरत लिया ह और म ऐसा

मरख नही ह कि उस भी छोड द। जिस धरम स किचित‌ भी सनह होगा, वह

मरण अवसथा म भी वरत को नही छोडगा।

इसपरकार वह अपनी परतिजञा म दढ रहा | उसकी दढता दखकर

उसका मितर परसनन हआ और रासत म यकषदवी क साथ हई सब बात उसन

वादिरसार को बताई कि तमहारी इस परतिजञा क कारण तम दव होग।

उससमय मातर कौए का मास छोडन का भी ऐसा महान फल

जानकर, ह शरणिक ! उस भील राजा को उन जन मनिराज क ऊपर शरदधा

हो गयी और अहिसा धरम का उतसाह बढा, जिसस जनधरम क सवीकार

परवक उसन मासादि का सरवथा तयाग करक अहिसादि पाच अणतरत

धारण किय और पचपरमषठी की भकतिपरवक शाति स पराण तयाग कर, बरत

क परभाव स उसका आतमा सौधरम सवरग म दव हआ।

गौतमसवामी आग कहत ह - “ ह शरणिक ! वह भील तम ही

हो - फिर उस दवपरयाय स चयत होकर तम इस राजगही म शरणिक राजा

हए हो और एक भव क बाद तम तीरथकर होग।'

भील क बरतो का ऐसा उततम फल दखकर वहा उसक मितर न भी

अणतरत धारण किय, वह मितर भी वहा स मरकर बराहमण का अवतार

लकर अरहत‌दास सठ होकर जन ससकार परापत करक सवरग गया, और वहा

स मरकर वह तमहारा पतर अभयकमार हआ ह, वह तो इसी भव म जनमनि

होकर मोकष परापत करगा |

शरणिक न पछा - ह सवामी ! फिर उस यकषदवी का क‍या

हआ ?”

गौतमसवामी न कहा - ह राजन‌ ! वह यकषदवी उसक बाद

जनधरम की कहानिया भाग-२/६२

कितन ही भव धारण करक अनकरम स वशाली क चटक राजा की पतरी

चलना हई, जो अभी तमहारी पटरानी ह।

अपन परवभव की बात सनकर राजा शरणिक को यथारथ बोध हआ, तीरथकर परभ क समीप विशष आतमशदधि परवक कषायिक समयकतव परकट किया | इतना ही नही, धरम की उततम भावना क दवारा उनह तीरथकर

नाम करम बधना भी शर हआ और भगवान महावीर क ८४००० वरष बाद

व इस भरत-दषतर म महापदम नामक परथम तीरथकर होग।

अर भवयजीबवो ! जिस बीतरागता और अहिसा का उपदश

जनधरम दता ह, उसका थोडा -सा पालन करन स ही जब ऐसा महान फल

परापत होता ह, तो समपरण बीतराग भावरप अहिसा का फल कितना महान

होगा, उस समझना चाहिय | अत: ह बधओ, शरबीर होकर बीर भगवान

क अहिसा धरम का पालन करना, उस पालन करन म कायर मत होना।

Wal, Wie sik अणड क खान म भी पच-इनदरिय जीव का घात ह। ऐस

खान-पीनवाल होटल वगरह म भी जिजञास सजजनो को कभी नही जाना

चाहिए। अत: जनधरम की बीतरागता क उततम ससकार आतमा म

विकसित करना चाहिय, जिसस राजा शरणिक क समान हमारा भी महान

कलयाण होव।

अहो ! यह ह विचितर ससार क बीच भी अलितत जञानचतना

राजा शरणिक की |

शरी गौतम गणधर क शरीमख स अपन भतकाल क भवो का वरणन

सनकर, शरणिक राजा वरागयपरवक अपन भविषय क भवो क बार म भी उनस पछत ह। तब गौतमसवामी कहत ह -

“ह शरणिक | पहल अजञानदशा म मिथयातवादि पापो क सवन स

और जनमनि क ऊपर उपसरग करन स जो पाप तमन बाध थ, उसस तम

पहल नरक म जाओग; लकिन वहा भी कषायिक समयकतव होन स तम

जनधरम की कहानिया भाग-२/६३

कभी भी अपन आतमा को विसमत नही करोग और सोलह कारण भावना भात हए दसर भव म तम इस भरतकषतर म महापदम नामक तरिलोकपजय

परथम तीरथकर होकर मोकष परापत करोग।”

अहो , एक ही जीव, एक ही भव म एक बार म नरक क करम

बाधता ह, और फिर उस ही भव म तीरथकर नामकरम परकति का करम

बौधता ह, दखो तो जरा जीव की परिणति की विचितरता। ”

इस परकार कषायिक समयबदषटि शरणिक न अपन बार म एक साथ

दो बात सनी - १. आगामी भव म नरक जाना और २. उसक बाद क

भव म तीरथकर बनना । “नरक म जाना और तीरथकर होना - दोनो बात

एक साथ सनकर उस कसा लग रहा होगा ? खशी हई होगी ? या खद

हआ होगा ? कहा हजारो वरष तक नरक क घोरातिघोर अतयत दःख की वदना ! और कहा तरिलोकपजय तीरथकर पदवी !

अहो ! कसा विचितर सयोग ह । एक ओर नरक गति का खद और

दसरी और तीरथकर पदवी का हरष | लकिन ह भवयजीवो ! तम शरणिक म

ऐसा हरष या खद ही नही दखना | इन दोनो क अलावा एक तीसरी अतयत

सदर वसत उस ही समय शरणिक राजा म वरत रही ह, उस तम दखना, तब

ही तम धरमातमा शरणिक को समझोग, वरना तम शरणिक क परति अनयाय

करोग।

जनधरम की कहानिया भाग-२/ ६४

कया ह यह तीसरी वसत ! यह ह जञानचतना हरष-शोक दोनो स सरवथा अलिपत, परम शानत वरत रही ह। यह जञानचतना ना तो नरक क

करमो को बदती ह, और ना ही तीरथकर परकति क करम को वदती ह - दोनो

करमो स भिनन नषकरमय भाव स करमो स छट कर परम शाति स मोकषपथ को साध रही ह। यह ह शरणिक का सचचा सवरप ! उस समझना चाहिय । तभी

शरणिक की नरक दशा या तीरथकर दशा - दोनो को सनकर तम भी राग- दरष स भिनन शात-जञानचतना रप म रह सकोग और मोकषपथ की साधना

कर सकोग।

हरष-खद स पार ह, सनदर जञान सवभाव।

उस सवभाव को साधकर,, मो कषदशा परगटाव ॥।

चाह कितना चतर कारीयर हो तथाएि वह दो घडी म मकान

तयार नही कर सकता, किनच यदि आतपसवरप की पहिचान करना

चाह तो वह दो घडी म भी हो सकती ह।

आउठ वरष का बालक अनक यन का बोझ नही उठा सकता,

heey यथारध समझ क दवारा आतमा की गरतीति करक कवलजञान को

परापत कर सकता ह।

आतमा पर दवबय म कोई परिवरतन नही कर सकता, किनत

सव-दरवय म परषारध क दवारा सपसत अजञान का नाश करक, समयकजञान

को गरयट करक कवलजञान परापत कर सकता ह।

सव परिणयन म आतमा समपरण सवतनतर ह, किनत पर म कछ

भी करन क लिए आतपा म किचिकयातर सामरथय नही ह ।

आतपा म इतना अपार सवाधीन परषारध विदयमान ह tes ate

वह उलटा चल तो दो घडी म सातव नरक जा सकता ह और यदि

सीधा चल तो दो घडी म कवलजञान गरापत करक सिदध हो सकता ह /

- वसत विजञान सार स साभार

जनधरम की कहानिया भाग-२/६५

वनवासी अजना

(वन-यगफा म मनिदरशन का महान आनद)

(ससार क अतयत द:ख परसग म जब ऊपर आकाश और नीच पाताल - जसी परिसथिति हो, तब भी जीव को धरम और धरमातमा कितन अचितय शरणरप होत ह - उसकी महिमा बतान वाला सती अजना क

जीवन का एक पररक परसग)

बाईस वरष तक पति पवनजय स बिछडी हई सती अजना को,

जिस समय सास कतमती न कलकनी समझकर कररतापरवक राजय स निकाल दिया और जिससमय पिता गह म भी उस आशरय नही मिला, किसी न भी स शरण नही दी, उस समय पर ससार स उदास हई वह सती

अपनी एक सखी क साथ वन की ओर चली गई।

चलो सखी वहा चल ....... जहा मनियो का वास हो।

अजना कहती ह - ह सखी ! इस ससार म अपना कोई नही

ह। शरी दव-गर-धरम ही अपन सचच माता-पिता ह। उनका ही सदा शरण ह।'

वाघ स भयभीत हिरणी क समान अजना अपनी सखी क साथ

वन म जा रही ह........ वनवासी मनिराजो को याद करती जा रही ह, और चलत-चलत जब थक जाती ह, तब बठ जाती ह। उसका द:ख दखकर सखी विचार करती ह -

“हाय ! परव क किस पाप क कारण यह राजपतरी निरदोष और गरभवती होन पर भी महान कषट पा रही ह | ससार म कौन रकषा कर ? पति क घर जिसका अनादर हआ......... जो पिता उस पयार परवक खिलात थ, उन पिता क दवारा भी जिसका अनादर हआ....... इसकी माता भी इस सहारा न द सकी | सहोदर भाई भी ऐस द:ख म कोई सहारा न द सका । राजमहल म रहनवाली अजना इस समय घोर बन म भटक रही ह।

जनधरम की कहानिया भाग-२/६६

आर, दरभागय की इस घडी म एकमातर धरम ही इस शीलवती को

शरण ह | जब परव करम का उदय ही ऐसा हो, तब घरयपरवक धरम सवन ही शरणभत ह, दसरा कोई शरण नही।” उदास अजना वन म अतयत विलाप कर रही ह, साथ ही अजना की सखी भी रो रही ह। निरजन वन

म अजना और उसकी सखी का विलाप इतना करण था कि उनह दखकर

आस-पास म रहनवाली हिरणिया भी उदास हो गई।

बहत दर तक उनका रदन चलता रहा....अनन‍त म विलकषण

चिततवाली सखी न धरयपरवक अजना को हदय स लगाकर कहा -

“ह सखी ! शात हो....... रदन छोडो ! अधिक रोन स कया ?

तम जानती हो कि इस ससार म जीव को कोई शरण नही, यहा तो सरवजञ

दव, निगरथ वीतरागी गर और उनक दवारा कहा गया धरम -यह ही सचच

माता-पिता और बाधव ह और य ही शरणभत ह, तमहारा आतमा ही तमह शरणभत ह, वह ही सचचा रकषक ह, और इस असार-ससार म

अनय कोई शरणभत नही ह। इसलिए ह सखी ! ऐस धरम-चितन क

दवारा त चितत को सथिर कर....... और परसनन हो |

ह सखी ! इस ससार म परव करम क अनसार सयोग-वियोग होता

ही ह, उसम हरष-शोक कया करना ? जीव सोचता कछ ह और होता कछ ह। सयोग-वियोग इसक आधीन नही ह.....-.यह तो सब करम की

विचितरता ह। इसलिए ह सखी ! त वयरथ ही दःखी न हो, दःख छोडकर धरय स अपन मन को बरागय म दढ कर ।

- ऐसा कहकर सनहपरवक सखी न अजना क आस पोछ। सती

अजना का चितत शात हआ और वह भावना भान लगी -

करमोदय क विविध फल, जिनदव न जो वरणय।

व मझ सवभाव स भिनन ह, म एक जञायक भाव ह ॥

सखी न अजना क हितारथ आग कहा - ' ह दवी ! चलो, इस

जनधरम की कहानिया भाग-२/६७

वन म जहा हिसक पराणियो का भय न हो - ऐसा सथान दखकर , किसी

गफा को साफ करक वहा रहग, यहा सिह, वाघ और सरपो का डर ह।

सखी क साथ अजना जस-तस चलती ह, साधरमी क सनह-बधन स बधी हई सखी उसकी छाया की तरह उसक साथ ही रहती ह। अजना भयानक वन म भय स डर रही थी, उस समय उसका हाथ पकडकर सखी

कहती ह - ' अर मरी बहिन ! त डर मत........ मर साथ चल........ 7

सखी का मजबती स हाथ पकडकर अजना चलन लगी। थोडी

दर पर एक गफा दिखाई दी।

सखी न कहा - “वहा चलत ह।

लकिन अजना न कहा - “ह सखी ! अब मर म तो एक कदम

भी चलन की हिममत नही रही. ...... अब तो म थक गई ह।''

सखी न अतयत परमपरवक शबदो स उस धरय बधाया और सनह स उसका हाथ पकडकर गफा क दवार तक ल गई | दोनो सखी अतयत थकी

हई थी। बिना विचार ही गफा क अनदर जान म खतरा ह - ऐसा विचार करक थोडी दर बाहर ही बठ गयी, लकिन जब दोनो न गफा म

दखा......गफा का दशय दखत ही दोनो सखी आननदाविभत होकर आशचरयचकित हो गई।

-ऐसा कया दखा था उनहोन ?

अहो ! उनहोन दखा कि गफा क अनदर एक बीतरागी मनिराज धयान म विराजमान ह। चारणऋदधि क धारक |

इन मनिराज का शरीर निशचल ह, मदरा gee परमशात और समदर क समान गभीर 4७

ह, आख अनतर म झकी हई ह, आतमा * का जसा यथारथ सवरप जिन-शासन म नि w कहा ह - बसा ही उनक धयान म आ रहा ह। परवत जस अडोल ह।

जनधरम की कहानिया भाग-२/६८

आकाश जस निरमल ह और पवन जस असगी ह, अपरमततभाव म झल रह ह और सिदध क समान आतमिक-आनद का अनभव कर रह ह।

गफा म एकाएक ऐस मनिराज को दखत ही दोनो की खशी का

पार नही रहा। अहो ! धनय मनिराज !” - ऐसा कहती हई हरषपरवक व

दोनो सखी मनिराज क पास गई। मनिराज की बीतरागी मदरा दखत ही व

जीवन क सरव दःखो की भल गयी | भकतिपरवक तीन परदकषिणा दकर हाथ जोडकर नमसकार किया। ऐस वन म मनि जस परम बाधव मिलत ही

खशी क आस निकलन लग...... और नजर मनिराज क चरणो म रक

गयी । तब व हाथ जोडकर गद‌गद‌ भाव स मनिराज की सतति करन लगी।

“ह भगवान ! ह कलयाणरप ! आप ससार को छोडकर आतमहित

की साधना कर रह हो......जगत क जीवो क भी आप परम हितषी

हो।......अहो, आपक दरशन स हमारा जीवन सफल हआ. .....आप

महा कषमाबत हो, परम शाति क धारक हो, आपका बिहार जीवो क

कलयाण का कारण ह।”

ऐसी विनयपरबक सतति करक, मनि क दरशन स उनका सारा भय

दर हो गया.... .और उनका चितत अतयत परसनन हआ |

धयान टटन पर मनिराज न परमशात अमतमयी वचनो स धरम की

महिमा बताकर उनको धरमसाधना म उतसाहित किया और अवधि-चजञान

स मनिराज न 'अजना क उदर म सथित चरमशरीरी हनमान क वततानत

सहित परवभव म अजना दवारा जिन-परतिमा का अनादर करन स इस समय

अजना क ऊपर यह कलक लगा ह- यह बतात हए कहा -

“ह पतरी ! त भकति परवक भगवान जिननदर और जनधरम की आराधना कर....... इस पथवी पर जो सख ह, वह उसक ही परताप स तझ

मिलगा | अत: ह भबयातमा | अपन चितत म स खद (दःख ) छोडकर परमाद

रहित होकर धरमकारय म मन लगा।

जनधरम की कहानिया भाग-२/६९

अहा ! Sis a FTES मनिराज क दरशन स जो क परसननता हई, उसका [eo वरणन नही किया जा io सकता ? आनद स >)

उसकी. नतर-पलक peop झपकना भल गय...। श ६३1 अहो, इस घनघोर वन ६५१

म हम धरमपिता मिल, ee

आपक दरशन स हमारा दःख दर हो गया, आपक बचनो स हम धरमामत मिल गया. . .आप परम

शरणरप हो -- ऐसा कहकर बारमबार नमसकार करन लगी।

निसपही मनिराज तो उस धरम का उपदश दकर आकाशमारग स विहार कर गय । मनिराज क धयान दवारा पवितर हई इस गफा को तीरथ समान

समझकर, दोनो सखी धरम म सावधान होकर वहा रहन लगी। कभी व

जिनभकति करती और कभी मनिराज को याद करक बरागय स शदधातमतततव

की भावना भाती...... ।

इसपरकार धरम की साधनापरवक समय निकल गया और योगय

काल म (चत सदी परणिमा) क दिन अजना न एक मोकषगामी पतरसतन को जनम दिया. ..... जो आग चलकर वीर हनमान क नाम स विखयात हआ।

(व हनमान आताजञानी धरमातमा थ.....उनक जीवन क

आनदकारी परसग को अगली कहानी म पढिय ।) ७

मम सख Wary ae | फल, द:ख म कभी न घबराय /

परवत-नवी-शपशान-भरयानक, अटवी स नही भय GTA |

जनधरम की कहानिया भाग-२/७०

आतमजञानी वीए हनमान (अजना-माता क साथ पतर-हनमान की चरचा)

वन म मनिराज क दरशन स अजना को परम हरष हआ था, उसक कितन ही समय बाद अजना सतती न बन की गफा म पतर हनमान को जनम

दिया..... चरमशरीरी - मोकषगामी पतर क जनम स वन क वकष भी हरष स

खिल उठ और हिरस‍न-मोर आदि पश-पकषी भी आनद स नाच उठ।

पाठकगण ! आपन भी आनद मनाया होगा, कयोकि जस महावीर हमार

भगवान ह, वस ही हपमान भी हमार भगवान ह।

पशचात‌ सती अजना क मामा उस वन म आय और अजना तथा

हनमान को अपनी नगरी म (नदी क बीच म 'हनरह नामक दवीप म) ल

गय... . .और वही सब आनद स रहन लग | दखो, महान पणयवान और

आतजञानी ऐसा वह धरमातमा बालक 'हन' आनद स बडा हो रहा ह।

अजना-माता अपन लाडल बालक को उततम ससकार द रही ह,. और

बालक की महान चषटाओ को दखकर आनदित हो रही ह। ऐस अदभत

परतापी बालक को दखकर जीवन क सभी द:खो को बह भल गयी ह और

आनद स जिनगणो म चितत लगाकर जिनभकति कर रही ह, तथा हमशा वनवास क समय गफा म दख उन मनिराज को बारमबार याद करती ह ।

बालक हनमान भी रोज माता क साथ ही जिन-मदिर जाता ह,

बह बहा दव-गर-शासतर की पजा करना सीख रहा ह और मनियो क सघ

को दखकर आनदित होता ह।

एक बार बालक हममान स माता अजना पछती ह - ' बटा

हनमान ! तमह कया अचछा लगता ह ?”'

हममान कहत ह - मा, मझ तो एक तम अचछी लगती हो और दसरा आतमा का सख अचछा लगता ह।

जनधरम की कहानिया भाग-२/७१

मा कहती ह - अर बटा ! मनिराज न कहा ह कि तम चरमशरीरी हो, इसलिए तम तो इस भव म ही मोकष सख परापत करोग और भगवान

बनोग।

हनमान कहत ह -- “अहो, धनय ह व मनिराज ! धनय ह !! ह

माता, जब मझ तमहार जसी माता मिली, तब फिर म दसरी माता का कया

करगा ? और तम भी इस भव म आरथिका बरत धारण कर , अननत भवो

का अनत करक शीभघर ही मोकष परापत करना। *

अजना कहती ह - वाह बटा ! तमहारी बात सतय ह ? समयकतव

क परताप स अब फिर कभी यह निदय सतरी परयाय नही मिलगी, अब तो

ससार द:खो का अत नजदीक आ गया ह। बटा, तमहारा जनम होन स

लौकिक द:ख टल गय और अब ससार -दःख भी जरर दर हो जावगा |

हनमान कहत ह - ह माता ! ससार का सयोग-वियोग कितना

विचितर ह और जीबो क परीति-अपरीति क परिणाम भी कितन चचल और

असथिर ह। एक कषण म जो वसत पराणो स भी परिय लगती ह, दसर कषण

म बही वसत उतनी ही अपरिय हो जाती ह और फिर बाद म बही वसत फिर

स परिय लगन लगती ह। इसपरकार दसर क परति परीति-अपरीति क

कषणभगर परिणामो क दवारा जीव आकल-वयाकल होत ह। मातर चतनय

जनधरम की कहानिया भाग-२/७२

का सहज जञानसवभाव ही सथिर और शात ह। वह परीति-अपरीति स रहित

ह और जञानसवभाव की आराधना क अलावा अनयतर कही सख नही ह।

अजना कहती ह - वाह बटा ! तमहारी मधर वाणी सनकर

परसननता होती ह। जिनधरम क परताप स हम भी ऐसी ही आराधना कर रह

ह। जीवन म सबकछ दखा, सखमय आतमा दखी, इसीपरकार द:ःखमय

ससार को भी जान लिया। बटा ! अब तो बस ! आनद स मोकष की ही

साधना करना ह।

इसपरकार मा-बटा (अजना और हनमान) बहत बार आनद स

चरचा करत ह, और एक-दसर क धरम ससकारो को पषट करत ह।

वहा हनरह दवीप म हनमान, विदयाधरो क राजा परतिसरय क साथ

दव की तरह करीडा करत ह और आनदकारी चषटाओ क दवारा सबको

आनदित करत ह।

धीर-धीर हनमान यवा हो गय, कामदव होन स उनका रप

सोलह कलाओ स खिल उठा; भदजञान की बीतरागी विदया तो उनम थी

ही, पर आकाशगामिनी विदया आदि अनक पणय विदयाय भी उनको सिदध

हई। व समसत जिनशासतर क अभयास म निपण हो गय; उनम रतनतरय की

परमपरीति थी, दव-गर-शासतर की उपासना म व सदा ततपर रहत थ |७

तम झठ कडलाओग जिस कस को हमन दखा ही नही, फिर उसक ऊपर मफत

का झठा आरोप कयो लगात हो / यदि जीव को तमन दखा होता तो वह हगह चतनयसवरप ही दिखाई दता और वह जड की करिया का

करता ह - ऐसा त यानता ही नही, इसलिए दम बिना दख जीव क ऊपर अजीव क करवतव का गरिधया आरोप यतत लयाओ । यदि झठा ARI PUAN at Ge TI AUN, GA YS FEMA |

जनधरम की कहानिया भाग-२/७३

हनमान को परमातमा क दरशन

एक बार शरी अनतवीरय मनिराज को कवलजञान हआ। दवो और

विदयाधरो क समह आकाश म मगल बाज बजात हए कवलजञान का महान उतसव मनान गय। हनमान भी आनद स उस उतसव म गय और

भगवान क दरशन किय। अहा ! दिवय धरमसभा क बीच निरालमबी

विराजमान अनत चतषटयबत अरहत परमातमा को दखकर हनमान बहत

आशचरय करक परसनन हए। उनहोन इस जीवन म पहली बार वीतराग दव को साकषात‌ दखा था। जस समयगदरशन क समय पहली बार आतमदरशन

होन पर भवय जीव क आतम-परदश अपरव परम आनद स खिल उठत ह, वस ही हनमान का हदय भी परभ को दखकर आनद स खिल उठा।

अहा ! परभ की मदरा पर कसी परम शाति और बीतरागता झलक

रही ह, उस दख-दखकर हनमान क रोम-रोम म हरष समा गया, व परभ की सरवजञता म झरत हए अतीखरिय आनद-रस को शरदधा क पयाल म भर-

भर कर पीन लग। परम भकति स उनकी हदय वीणा झकार उठी -

अतयनत आतमोतपनन विषयातीत अनप अनत का |

विचछदहीन ह सख अहो! शदधोपयोग परसिदध का |

जनधरम की कहानिया भाग-२/७४

अहो, परभो ! आप अनपम अतीनदरिय आतमसख को शदधोपयोग _ क परसाद स अनभव कर रह हो। हमारा भी यही मनोरथ ह कि हम भी

ऐसा उतकषट सख परापत होव।

- ऐसी परसननता परवक सतति करक हनमान कवली परभ की सभा

म बठ । पाठको , आपको जञातवय हो कि महाराजा रावण भी इनही कवली

परभ की सभा म बठ कर धरमोपदश सन रह थ ।

चारो ओर आनद फलाती हई, परभ की दिवय वाणी खिर रही थी; भवयजीव परसननता स झम रह थ | जस भयकर गरमी क बीच मघ वरषा होव

और जीवो को शाति हो, वस ही ससार क कलश स सतपत जीवो का चितत

दिवयधवनि की वरषा क दवारा अतयत शात हआ।

परभ की दिवयधवनि म आया - '“अहो जीवो ! ससार की चारो गतिया शभ-अशभ भावो क दवारा द:ःखरप ह, आतमा की दशा ही परम

सखरप ह - ऐसा जानकर समयगदरशन-जञान-चारितर क दवारा उसकी

साधना करो | राग स व समयगदरशन-जञान-चारितर - तीनो ही भिनन ह और

आनदरप ह।''

सभी भवयजीव एकदम शात चितत स सन रह ह, परभ कहत ह कि

आतमा क चतनय सख की अनभति क बिना अजञानी जीव पणय-पाप म

मोहित रहत ह और बाहय वभव की तषणा की वदधि म दःखी होत ह। अहो

जीवो ! विषयो की लोलपता छोडकर अपनी आतम-शकति को जानो ।

विषयातीत चतनय का महान सख तमहार म ही भरा ह।

आतमा को भलकर विषयो क आधीन होकर जीव महारनिदय पापकरम करक नरकादि गति म महान दःख भोगता ह। अर, अति दरलभ

मनषय परयाय परापत करक भी जीव आतमहित नही करता और तीवर हिसा- झठ-चोरी आदि पाप करक नरक म चला जाता ह| मदय-मास-मध आदि

अभशषय का सवन करनवाल जीव नरक म जात ह और वहा उनक शरीर

जनधरम की कहानिया भाग-२/७५

क भी टकड-टकड किय जात ह । ऐस द:खो स आतमा को छडान क लिए

ह जीवो | तम आतमा को समझो , उसकी शरदधा करो और शदधोपयोगरप

अनभव करो; शदधोपयोगरप आतमिक धरम का फल मोकष ह।

जीव कितना ही पणय करक दवगति म जाता ह; परनत वहा भी अजञानता स बाहय वभव म ही मरछित रहता ह और आतमा क सचच सख को नही जानता | अर, अभी यह दरलभ अवसर धरम करन क लिए मिला

ह, इसलिए ह जीबो ! अपना हित कर लो ! ससार समदर म खोया हआ

मनषयभवरपी रतन फिर हाथ म आना बहत दरलभ ह। इसलिए तततवजञान

परवक मनि या शरावक धरम का पालन करक आतमा का हित करो।

इसपरकार अनतबीरय कवलीपरभ की दिवयधवनि हनमान एकागरचित

हो सन रह ह और परम बरागयरस म सराबोर हो गय ह। ऐसा सनदर वीतरागी धरम का उपदश सनकर दव, मनषय और तिरयच सभी आनदित

हो रह ह। कितन ही जीव मनि होत ह; कितन ही जीव शरावक क बरत

धारण करत ह और कितन ही कलयाणकारी अपरव समयकतव धरम को परापत

होत ह।

हनमान, विभीषण आदि न भी उततम भावना स शरावक बरत धारण

किय। हनमान को मनि होन की भावना थी, परनत उनका माता-अजना

क परति परम सनह होन स व मनि न हो सक | अर, ससार का सनह-बनधन

ऐसा ही ह।

भगवान का उपदश सनकर बहत स जीवो म समयगदरशन-जञान-

चारितर खिल उठा, जस बरसात होन पर बगीच खिल उठत ह, वस ही

जिनवाणी की अमत वरषा स धरमातमा जीवो क आनद-बगीच. ... .शरावक

धरम तथा मनि धरम क पषपो स खिल उठ।

इसपरकार कवलीपरभ की सभा म आनद स धरम शरवण करक और बरत-नियम अगीकार करक सब अपन-अपन सथान चल गय। हनमान

जनधरम की कहानिया भाग-२/७६

की परसननता का तो पार ही नही। आज तो उनहोन परमातमा को साकषात‌

दखा ह, फिर हरष की कया बात कहना ? घर आकर अपन महान हरष की

बात उनहोन माता स कही -

“अहो मा ! आज तो मन परमातमा को साकषात‌ दखा ह। अहा, कसा अदभत उनका रप ! कसी उनकी परमशात मदरा ! और कितना अचछा उनका उपदश ! मा, आज तो मरा जीवन धनय हो गया।

तब माता अजना कहती ह - _ वाह बटा ! अरहतदव क साकषात‌ दरशन हए, तब तो तर धनय भाग ह और उनक सवरप को जो समझ,

उसको तो भद-जञान हो जाता ह। *

हनमान कहत ह - “वाह माता ! तमहारी बात सतय ह। अरहत परमातमा तो सरवजञ ह, बीतराग ह, उनक दरवय म , गण म, परयाय म सरवतर चतनयभाव ही ह। राग का अशमातर भी उनकी आतमा म नही ह, इसलिए

उस समझकर जो अपन आतमा को राग स भिन‍न सरवजञसवभावी जानत ह,

उनह ही समयगदरशन होता ह। भगवान भी ऐसा ही कहत ह कि -

जो जानत अरहत को, चतनयमय शदधभाव स।

व जानत निजतततव को , समकित लिय आनद स |

माता ! मझ मर अनभवगमय हई यह बात शरीपरभ की वाणी म

सनत ही महान परसननता हई ह।

माता अजना भी पतर की परसननता को दखकर आनदित हई, और कहा - वाह बटा ! भगवान क परति तमहारा ऐसा परम दखकर मझ खशी

हई ह। भगवान की वाणी म तमन और कया सना ? उस तो बताओ ?

हनमान न अतयत उललासपरवक कहा - * अहो, माता ! भगवान की वाणी म आतमा क अदभत आनद का सवरप एव वीतराग रस स भर हए चतनय तततव की गभीर महिमा सनकर भवयजीब शात रस की नदी म सराबोर हो जात थ। माता वहा कितन ही मनिराज विदयमान थ।

जनधरम की कहानिया भाग-२/७७

व आतमा क आनद म झल रह थ । अहो ! आनद म झलत हए

मनिवरो को दखकर मझ उनक साथ रहन का मन हआ, परलसत .... ( इतना कहकर हनमान रक गय।)

अजना न पछा - बटा हनमान ! तम बोलत-बोलत रक कयो गय | कया बताऊ ? मा। | मझ जिनदीकषा की उततम भावना जागी , परनत

ह माता ! तमहार सनह क बधन को म तोड न सका । तमहार परति परम

परम क कारण म मनि न हो सका। माता, सार ससार क मोह को तो छोडन

म म समरथ ह , परनत एक तमहर परति मोह नही छटता, इसलिए महावरत

को न लकर मन मातर अणबरत अगीकार किया ह ।

अजना न परसननता स कहा - अर पतर | त अणवरतधारी शरावक

हआ, यह भी महान आनद की बात ह । तमहारी उततम भावनाओ को दखकर मझ परसननता हो रही ह । म ऐस महान धरमातमा और चरम -शरीरी

मोकषगामी पतर की माता ह, इसका मझ गौरव ह । अर, वन म जनमा मरा पतर बाद म वनवासी होगा ही और आतमा की परमातमादशा को साधगा। धनय वह पतर !.... धनय वह माता !! सवानभति ही चतन की माता !!!

कोई दरिरी जीव सवपन म अपन को राजा यानता था, परनत नीद खली तब उस पता चलाकि वह राजा नही ह । उसी परकार योहनिदरा

म सोता हआ जीव बाहय सयोगो म, (विषयो म, राय म ही सख मानता

ह, वह तो सवपन क चख जसा पिथया ह । जब भदविजञान करक जाया,

तब आभास हआ (कि अर / बाहय म, राग म कही भी यजञ सख नही,

sae Gea मान वह तो भरम ह, तभी एक कषण म वह भरम दर हआ

और धान हआ कि सचचा सख गरी आतया म ह, अननत जञानी वही

कहत ह कि - RUS AY BT ACT थी, जायत दशा म शानत /

ae arate ar farsa ff, जञान होत ही MIRTH!

जनधरम की कहानिया भाग-२/७८

दशभषण-कलभघण दशभषण और कलभषण कछ भव परव उदित और मदित नाम क

सग भाई थ | उनकी माता का नाम उपभोगा था, वह दराचारिणी थी, वस नाम क दषट परष क साथ परम करती थी। मोहबश उस दषट बस न उसक पति को मार डाला तथा विषयाध माता उपभोगा न अपन दोनो पतरो को भी मारन क लिए बस स कहा - “य दोनो पतर अपन दषट करम को समझ जाव, इसक परव ही तम इनह मार डालो । *

अर र, विषयाध ससारी ! विषयो म अधी हई माता अपन सग

पतरो को भी मारन क लिए तयार हो गयी; परनत उसक इस दरविचार को

उसकी पतरी समझ गयी और उसन अपन दोनो भाई उदित-मदित को

बताकर सावधान कर दिया | इसस करोधित होकर उन दोनो भाईयो न वस

को मार डाला और वह मरकर करर भील हआ।

फिर व उदित-मदित दोनो भाई एक मनिराज क उपदश स बरागय

परापत कर मनि हो गय। व सिदधकषतर सममदशिखरजी की यातरा को जात समय रासता भल गय और घोर जगल म भटक गय । वहा परव भव का बरी

करर भील उनह पहचान गया और मारन को तयार हो गया।

इस उपसरग क परसग को समझकर उदित मनि न मदित मनि स

कहा -

“ह मनि | दह भी छट जाय ऐस भयकर उपसरग का परसग आया

ह, परनत तम भय मत करना, करोध भी मत करना, कषमा म सथिर रहना;

परव म हमन जिस मारा था, वह दषट वस का जीव, भील होकर इस समय हम मारन आया ह. ...परनत हम तो मनि हो गय ह, अपन को शतर-मितर

कया ? इसलिए तम आतमा की वीतराग-भावना म ही दढ रहना ।

उसक उततर म मदित मनि कहत ह - अहो मनिवर ! हम मोकष क उपासक, दह स भिनन आतमा का अनभव करन वाल, हमको भय

जनधरम की कहानिया भाग-२/७९

कसा? दहादि मर नही ह, म तो अतीनदरिय चतनय ह, मरी अतीनदरिय शाति को हरनवाला कोई ह ही नही।

- ऐसा कहकर व दोनो मनि अपनी आतम-शाति म एकागर हो

गय | तब परम धरयपरवक दोनो मनि दह क ममतव को छोड, परम वरागय स आतमभाव म रम गय । भील उनह मारन क लिए शसतर उठान लगा, ठीक

उसी समय वन का राजा वहा पहचा और उसन भील को भगाकर दोनो मनिराजो की रकषा की ।

वन का राजा परवभव म एक पकषी था,उस शिकारी क जाल स इन

दोनो भाइयो न बचाया था, उस उपकारी ससकार क कारण उस सदबदधि

उपजी और उसन मनियो का उपसरग दर कर उनकी रकषा की। उपसरग दर

होत ही दोनो मनिराज शरी सममदशिखरजी की यातरा करक रतनतरय की

आरधमना परवक, समाधि-मरण परवक सवरग गय।

दषट भील का जीव दरगति म गया और उसन घोर द:ख परापत किया। उसक बाद कतप क परभाव स जयोतिषी दव हआ।

अब ब उदित और मदित (दशभषण और कलभषण) दोनो भाइयो क जीव सवरग की आय परण कर एक राजा क यहा रतनरथ और

विचितररथ नाम क कमार हए। भील का जीव भी जयोतिषी दव की आय

परण कर इन दोनो का भाई हआ | दखो, करम की विचितरता ! किसको कह

बरी, किसको कह भाई !

इस समय भी परव क बर ससकार स वह उन दोनो भाइयो क परति

बर रखन लगा। इसस दोनो भाइयो न उस दश निकाला द दिया। वह

दभी-तापस हआ और विषयाध होकर मरा | अनक भवो म रलत-रलत फिर जयोतिषी दव हआ | उसका नाम अमिनिपरभ था।

इधर रतनरथ और विचितररथ - य दोनो भाई वरागय धारण कर

राजपाट छोडकर मनि हय... .और समाधि-मरण परवक सवरग गय।

जनधरम की कहानिया भाग-२/८०

वहा स निकलकर व दोनो भाई सिदधारथ नगरी क राजा क यहा

दशभषण और कलभषण नाम क पतर उतपनन हए। अपनी बहिन को

दखकर अनजान म दोनो भाई उसक रप पर मोहित हो गय, उसस विवाह

करन क लिए आपस म लडन लग और एक-दसर को मारन क लिए तयार

हो गय | परनत जब पता चला कि अर ! जिसक लिए हम आपस म लड

रह थ, वह तो हमारी बहिन ह ! - ऐसा पता चलत ही दोनो भाई अतयनत

शरमिनदा हय और ससार स उदास होकर नगर छोडकर वन म चल गय और

जिनदीकषा लकर मनि हए।

जिस समय व आतमधयान म लीन थ, तब भी परवभव का बरी

अमिनिपरभदव उनक ऊपर उपसरग करन आया। तब राम-लकषमण न उस

भगाकर उपसरग दर किया, उपसरग दर होत ही दोनो मनियो को कवलजञान हआ, व दोनो कवली भगवनत विहार करत-करत अयोधया नगरी म

पधार। तभी भरत तथा तरिलोकमणडन हाथी क जीव को परतिबोध

हआ.... |

अनत म ब दोनो दशभषण-कलभषण कवली दह की सथिति परण

होन पर कथलगिरि स मोकष पधार।

उन दशभषण-कलभषण कवली भगवन‍तो को हमारा नमसकार हो ।

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eae मरण मर म नही होता, दह क मरण स मरा मरण

नही होता, म तो सदा जीवनत चतनयमय ह। म मनषय या

तिरयच नही हआ। म तो शरीर स भिनन चतनय ही ह ।

यदि म शरीर स भिनन न होता तो शरीर छटत ही म भी समापत हो जाता ? म तो जाननहार सवरप स सदा जीवनत ह ।