(an introduction to sanskrit: a book in persian to learn sanskrit by...

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Pratnakirti, vol.-1, Issue-4, 2014 ISSN 2322-0694 www.pratnakirti.com 26 संकृ त-शिण कᳱ फ़ारसी पुतक 'मुक़मात--ज़बान--संकृ त' (An Introduction to Sanskrit: a book in Persian to learn Sanskrit by famous Iranian Indologist Dr. Hassan Rezai Baghbidi) - राजेि सरकार © [email protected] नई भाषा सीखना सदा से ही मानव-जाशत कᳱ वृशि रही है। इस शवदेशिय संकृ त सीखने के शत आकषषण का एक शमक इशतहास हम देख सकते यूरोपीय शवान ारा संकृ त शिण के शिए शिखी गई सामशिय कᳱ चचाष ायः होती है , ᳰकतु एशिया के शवान ारा अपनी भाषा शिखी गई संकृ त शिण कᳱ सामशिय के शवषय इटरनेट भी शनरिहो जाता है। फ़ारसी संकृ त शिण कᳱ अनेक पुतक ईरानी एवं भारतीय शवान ारा शिखी गई है। ये सामशिया ायः साठ के दिक कᳱ ह। शजनम इदुिेखर रशचत 'राहनुमाई संकृ त', मु. अिी हसनी दा उि इिाम रशचत 'ख़ुद आमोजि संकृ त', मु. तक़ᳱ राशिद मुहशसि रशचत 'राहनुमाई ज़बान संकृ त', सी. कु हन राजा रशचत Persian Sanskrit Grammer शविेि उिेखनीय है। इसी परपरा वतषमान समय डॉ. हसन रज़ाई बाग़बीदी (ाचीन ईरानी भाषा शवभाग, तेहरान शवशवािय) ारा 'मुकमाते ज़बाने संकृ त' नाम से शिशखत पुतक सः काशित है। इसका कािन Grand Islamic Encyclopaedia, Tehran, I.R. Iran से है। इस िइसी पुतक का पᳯरचय तुत ᳰकया गया है। - Hassan Rezai Baghbidi, Sanskrit throw Persian, Sanskrit learning in Iran. संकृ त दशण एशिया, दशण पूवष एशिया, मय एशिया के कु छ भूभाग के ाचीन सांकृशतक एवं ऐशतहाशसक अययन, भारोपीय पᳯरवार (Indo-European) के भाषा सबशित अययन के शिए महवपूणष भाषा है। भाषाशवान एवं वशनिाᳫ के इस भाषा कᳱ उपयोशगता के शवषय ो. े डᳯरक मैसमूिर के उार यात - © वᳯरिोिछा, संकृत-शवभाग, कािी शहदू शवशवािय, वाराणसी, 221005.

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  • Pratnakirti, vol.-1, Issue-4, 2014 ISSN 2322-0694

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    ससं्कृत-शिक्षण की फ़ारसी पसु्तक 'मक़ुद्दमात-ए-ज़बान-ए-ससं्कृत'

    (An Introduction to Sanskrit: a book in Persian to learn Sanskrit by famous Iranian

    Indologist Dr. Hassan Rezai Baghbidi)

    - राजेि सरकार ©

    [email protected]

    नई भाषा सीखना सदा से ही मानव-जाशत की प्रवृशि रही ह।ै इस क्रम में शवदशेियों में संस्कृत सीखन ेके प्रशत

    आकषषण का एक क्रशमक इशतहास हम दखे सकत ेहैं। यूरोपीय शवद्वानों द्वारा संस्कृत शिक्षण के शिए शिखी गई

    सामशियों की चचाष प्रायः प्राप्त होती ह,ै ककन्तु एशिया के शवद्वानों द्वारा अपनी भाषा में शिखी गई संस्कृत

    शिक्षण की सामशियों के शवषय में इन्टरनेट भी शनरुिर हो जाता ह।ै फ़ारसी में संस्कृत शिक्षण की अनेक पुस्तकें

    ईरानी एवं भारतीय शवद्वानों द्वारा शिखी गई ह।ै ये सामशियााँ प्रायः साठ के दिक की हैं। शजनमें इन्दिेुखर

    रशचत 'राहनुमाई ए संस्कृत', मु. अिी हसनी दा उि इस्िाम रशचत 'ख़ुद आमोजि संस्कृत', मु. तक़ी राशिद

    मुहशस्सि रशचत 'राहनुमाई ए ज़बान ए संस्कृत', सी. कुन्हन राजा रशचत Persian Sanskrit Grammer

    शविेि उल्िेखनीय ह।ै इसी परम्परा में वतषमान समय में डॉ. हसन रज़ाई बाग़बीदी (प्राचीन ईरानी भाषा

    शवभाग, तेहरान शवश्वशवद्यािय) द्वारा 'मुकद्दमाते ज़बाने संस्कृत' नाम स े शिशखत पुस्तक सद्यः प्रकाशित ह।ै

    इसका प्रकािन Grand Islamic Encyclopaedia, Tehran, I.R. Iran से हुआ ह।ै इस िेख में इसी पुस्तक

    का पररचय प्रस्तुत ककया गया ह।ै

    - – Hassan Rezai Baghbidi, Sanskrit throw Persian, Sanskrit learning in Iran.

    संस्कृत दशक्षण एशिया, दशक्षण पूवष एशिया, मध्य एशिया के कुछ भूभागों के प्राचीन सांस्कृशतक एवं

    ऐशतहाशसक अध्ययन, भारोपीय पररवार (Indo-European) के भाषा सम्बशन्ित अध्ययन के शिए महत्त्वपूणष

    भाषा ह।ै भाषाशवज्ञान एवं ध्वशनिास्त्र के क्षेत्र में इस भाषा की उपयोशगता के शवषय में प्रो. फे्रडररक मैक्समूिर

    के उद्गार ध्यातव्य हैं-

    © वररष्ठिोिच्छात्र, संस्कृत-शवभाग, कािी शहन्द ूशवश्वशवद्यािय, वाराणसी, 221005.

    mailto:[email protected]

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    Sanskrit certainly forms only sound foundation of comparative Philology and it

    will always remain the only safe guide through all its intricacies. A comparative

    philologist without a knowledge of Sanskrit is like of an astronomer without a knowledge

    of mathematics1.

    इसी कारण न केवि भारत अशपतु िैरटन अमेररका, संयुक्त राज्य अमेररका, कनाडा, यूरोप एवं

    ऑस्रेशिया के दिेों के शवशभन्न शवश्वशवद्याियों में संस्कृत का अध्ययन एवं अध्यापन प्रचशित ह।ै एशिया में

    नेपाि, बांग्िादिे, श्रीिंका, म्यांमार, थाईिैण्ड, इण्डोनेशिया, चीन, जापान, कििीपीन्स, मॉरीिस, टकी

    इत्याकद में भी उच्चशिक्षा के स्तर पर यह भाषा अशस्तत्व में ह।ै इसी क्रम में इस भाषा का अध्ययन-अध्यापन

    िारसी भाषी-इस्िामी गणराज्य ईरान में भी प्रचशित ह।ै भारत-ईरान के परस्पर सम्बन्ि अशत प्राचीनकाि स े

    प्रगाढ़ रह ेहैं। वतषमान कुछ एक राजनीशतक घटनाक्रम को ध्यान न दते ेहुये यकद हम सांस्कृशतक-सामाशजक एवं

    ऐशतहाशसक सम्बन्िों की पड़ताि करें तो पाते हैं कक य ेसम्बन्ि भी मिुर एवं प्रगाढ़ रह ेहैं। दोनों ही दिे आयष-

    जाशत की सन्तशत ह।ै 'वेद' एवं पारशसयों के प्राचीन िन्थ 'जेन्द ए अवस्ता' की भाषागत साम्यता संस्कृत एवं

    फ़ारसी के एक ही भाषा पररवार के होन ेका सुस्पष्ट प्रमाण ह।ै दोनों ही दिेों की जाशतगत, संस्कृशतगत एवं

    भाषापररवारगत साम्यता ही दोनों के शनकट होन ेका प्रिान कारण ह।ै इस्िामी गणराज्य ईरान सदा से ही

    अपनी इस आयष-संस्कृशत पर गौरवाशन्वत रहा ह।ै

    सन ् 1979 ई0 की इस्िामी क्राशन्त के पूवष ईरान के तेहरान शवश्वशवद्यािय में संस्कृत शवभाग हुआ

    करता था जो ककन्हीं कारणों स ेसम्प्रशत बन्द ह।ै इसकी सूचना समकािीन शवशभन्न शवद्वानों से प्राप्त होती ह।ै

    शजनमें महापशण्डत राहुि सांकृत्यायन, मौिवी महिे प्रसाद, प्रो. अमृतिाि इिरत, डॉ. ताराचन्द, सी. कुन्हन

    राजा, प्रो. सैयद हसन अब्बास इत्याकद हैं।

    आज भी भारतशवद्या एवं संस्कृत के ईरानी शवद्वानों में डॉ. रज़ा जिािी नाईनी, मुहम्मद अिी हस्नी दा

    उि इस्िाम, मुहम्मद तक़ी राशिद मुहशस्सि, अिी असग़र शहकमत (भूतपूवष राजदतू ईरान), डॉ. फ़तह उल्िाह

    मुज्तबाई, डॉ. मेहरदाद बहार इत्याकद। इन ईरानी शवद्वानों का सहयोग करन ेमें अनेक भारतीय शवद्वानों का

    योगदान भी अशवस्मरणीय रहा ह।ै शजनमें मुख्यरूप स ेप्रो. ताराचन्द, डॉ. सी. कुन्हन राजा, डॉ. एस. एन.

    िुक्िा, डॉ. इन्दिेुखर, पं. गंगानाथ झा, आकद की सुदीघष परम्परा ह।ै इन शवद्वानों ने फ़ारसी एवं अंिेजी में

    संस्कृत स ेसम्बशन्ित िेख, िोििेख, पुस्तकें , कोििन्थ, अनुवाद जैस ेशवशभन्न कायष ककये हैं।

    1. Language, its nature, development & origin, pg. 76

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    इसी क्रम में कुछ समय पूवष तेहरान शवश्वशवद्यािय के 'प्राचीन ईरानी भाषाशवभाग' के प्राध्यापक डॉ0

    हसन रज़ाई बाग़बीदी द्वारा शिशखत पुस्तक 'मक़ुद्दमात ए ज़बान ए ससं्कृत' (An Introduction to

    Sanskrit) मुझ े2014 में सम्माशनत िेखक के द्वारा भेजी गई। यह पुस्तक सन् 2012 ई0 में Centre for the

    Great Islamic Encyclopaedia, Tehran से प्रकाशित ह।ै सम्पूणष पुस्तक का अध्ययन करन ेसे पता चिता

    ह ैकक शवद्वान िेखक न ेपयाषप्त श्रम ककया ह।ै पुस्तक फ़ारसी भाषा में शिखी गई ह।ै संस्कृत वाङ्मय का संशक्षप्त

    इशतहास बतात ेहुय ेसरि-पद्धशत द्वारा संस्कृत शसखान ेका स्तुत्य प्रयास ककया गया ह।ै

    पुस्तक चार खण्डों में शवभाशजत ह-ै बख़्ि ए नख़ुस्त (प्रथम खण्ड), बख़्ि ए दवु्वम (शद्वतीय खण्ड), बख़्ि

    ए सुव्वम (तृतीय खण्ड), बख़्ि ए चहारम (चतुथष खण्ड), प्रथम खण्ड में िेखक ने दवेनागरी वणष, स्वर-व्यंजन

    उनके भेद-प्रभेद पर शवस्तृत प्रकाि डािा ह।ै फ़ारसी भाशषयों की उच्चारण सुकरता के शिए फ़ारसी वणों की

    सहायता िी गई ह।ै इसी अध्याय में संयुक्त वणों, वणों के मेि से िब्द-शनमाषण, इसके अनन्तर वाक्य शनमाषण के

    शवषय में शसखाया गया ह।ै इसी अध्याय में दवेनागरी शगनती स ेभी पररचय कराया गया ह।ै

    इसी अध्याय में कक्रया (िे’ि) के परस्मैपदी िातुओं के रूप िब्दों के अकारान्त, आकारान्त, इकारान्त,

    ईकारान्त, उकारान्त, ऊकार, ऋकारान्त, नकारान्त के तीनों लिगों के रूपों से पररशचत कराया गया ह।ै

    गम्, वद,् शज, जीव, त्यज,् भू, यज,् रक्ष,् िाव,् नम्, पठ्, शनन्द्य, स्था, वस,् चुर्, पत्, शपब्, पीड् इत्याकद

    िातुओं की चचाष ह।ै संज्ञा (इस्म) एवं शविेषण (शसफ़्त) के पुलल्िग (मुज़क्कर) स्त्रीलिग (मुअन्नस) एवं नपंुसकलिग

    (ख़न्सी) के शवशभन्न िब्द रूपों स ेपररशचत कराया गया ह।ै

    अव्यय िब्दों (क़ैदहा) के अनेक रूप बताये गये हैं यथा- अत्र-तत्र-कुत्र- क्व-अशप-इतस्ततः, यदा-तदा-

    सदा-कुतः, यथा-तथा-कथम्-अिुना इत्याकद।

    िब्दरूप एवं िातुरूप के एकवचन (मुफ़ररद), शद्ववचन (मस्नी) एवं बहुवचन (जमअ) सशहत वणषन ह।ै

    छोटे-छोटे संस्कृत वाक्यों को बनाना शसखाया गया ह।ै उन्हीं वाक्यों की सहायता से एक दीघष गद्यांि

    का शनमाषण ककया गया ह।ै गद्यांि दवेनागरी सशहत रोमन उच्चारण में शिखा गया ह।ै गद्यांि के फ़ारसी अनुवाद

    सशहत िब्दाथष फ़ारसी में प्रस्तुत ककय े गये हैं। आत्मनेपदी िातुओं से भी पररशचत कराया गया ह।ै सम्पूणष

    प्रथमखण्ड में बारह अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय के साथ उदाहरण एवं अभ्यास कदये गये हैं। इसी अध्याय में

    भूतकाि के शवशभन्न स्वरूप एवं उनके उदाहरण शिख ेहैं।

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    शद्वतीय खण्ड में बारह अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में भूतकाि के शवशभन्न रूप भशवष्यत्काि, समास,

    सशन्ि, संख्यावाचक िब्द एवं उनके रूपों इत्याकद का शववेचन ह।ै

    तृतीय खण्ड में शहतोपदिे की चार िघुकथाए ंअभ्यास के शिए दी गई हैं। जो इस प्रकार ह-ै

    (1) ब्राह्मणः त्रयः चौराश्च (बरहमन व सह सय्याद)

    (2) ब्राह्मणस्य स्वप्नः (बरहमन ख़यािबाफ़)

    (3) खरः कुक्कुरः चौरश्च (ख़र सग व दज़ु्द)

    (4) अपरीशक्षतकारक (बरहमन व रासवी ए वफ़ादारि)

    मतन 7 बरहमन व रासवी ए वफ़ादारि-

    अस्त्यजु्जशयन्या ंमाठरो नाम ब्राह्मणः। तस्य ब्राह्मणी बािापत्यस्य रक्षाथ ंब्राह्मणमवस्थाप्य स्नातु ंगता।

    अथ ब्राह्मणस्यकृत े राज्ञः श्राद्ध ं दातमुाह्वानमागतम ् तच्ुत्वा ब्राह्मणः सहजदाररद्रयाकद अशचन्तयत।् यकद

    सत्वरं न गच्छाशम तदन्यः कशश्चच्राद्ध ंिहीष्यशत। उकं्त च-

    आदानस्य प्रदानस्य कतषव्यस्य च कमषणः।

    शक्षप्रमकक्रयमाणस्य कािः शपबशत तद ्रसम।्।

    कक त ु बािकस्यात्र रक्षको नाशस्त। तलत्क करोशम। यात।ु शचरकािपाशितशमम ं पुत्रशनर्वविषे ं नकुि ं

    बािकरक्षाथषम ्अवस्थाप्य गच्छाशम। तथा कृत्वा स तत्र गतः। ततस्तने नकुिने बािकसमीपमागच्छता कृष्णसपो

    दषृ्टो व्यापाकदतश्च। अथासौ नकुिो ब्राह्मणामायान्तमविोक्य रक्तशवशिप्तमखुपादः सत्वरम ् उपागम्य तस्य

    चरणयोिुषिोठ। ततोऽसौ ब्राह्मणस्त ंतथाशवि ंदषृ््वा मम पुत्रोऽनने भशक्षत इत्यविायष व्यपाकदतवान।् अनन्तरं

    यावदसावपुसतृ्य पश्यशत ब्राह्मणस्तावद ्बािकः ससु्थः सपषश्च व्यापाकदशस्तष्ठशत। ततस्तमपुकारमवे नकुि ंशनरुप्य

    शवभाशवतकृत्यः सतंप्तचतेाः स परं शवषादमगमत।् अतोऽह ंब्रवीशम।

    योऽथषतत्त्वमशवज्ञाय क्रोिस्यवै वि ंगतः।

    स तथा तप्यत ेमूढो ब्राह्मणो नकुिाद्यथा।।

    इसी खण्ड के एक अध्याय में िेखक ने 'अशिसूक्त' की कुछ ऋचाओं का अनुवाद प्रस्तुत ककया ह ैजो इस

    प्रकार ह-ै

    अशिमीळे परुोशहत ंयज्ञस्य दवेमशृत्वजम।्

    होतारं रत्निातमम।्।

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    फ़ारसी अनवुाद-

    अशि रा मी सतायम। रूहानी ख़ानगी रा, ख़ ुदा ए मुतवल्िी ए क़ुरबानी रा।

    होतर रा गंज दहदः तरीन रा।

    अशिः पूवशेभऋष शषशभर् ईड्यो नतूनरैुत ।

    स दवेााँ एह वक्षशत।

    फ़ारसी अनवुाद-

    अशि केह तोस्त ररिी हाय पीिीन व कुननूी सुतूदनी (अस्त)

    (बाशिद केह) ऊ ख़ ुदायान रा ईन्जा आवुदष।

    चतुथष खण्ड में िब्दकोष (वाज़ःनामः) का संकिन ह।ै िब्दों का संकिन रोमन वणाषनुक्रम से ककया गया

    ह।ै संस्कृत िब्द रोमन में एवं उसके फ़ारसी िब्द उसके सामने कदय ेगये हैं।

    पुस्तक को शिखने के शिए डॉ0 बाग़बीदी न ेशवशभन्न फ़ारसी पुस्तकों, िोि िेखों, आिेखों के साथ-साथ

    अंिेजी के शवशभन्न िन्थों का सहयोग शिया ह ै–

    Persian - Sanskrit Grammar : C. Kunhan Raja

    The Sanskrit Language Thomas Burrow (1955) London.

    Introduction Sanskrit - I & II- Thomas Egenes (1989), California.

    A Rapid Sanskrit Method- G.L. Hart, Delhi.

    The Student's English - Sanskrit Dictionary. Sh. V. Apte (1912) Poona.

    A Higher Sanskrit Grammar - M.R. Kale (1894) Bombay.

    History of Sanskrit Literature- A.A. Mac Donell (1900), London.

    Vedic Grammar A.A. Mac Donell (1910), Strassburg.

    A Sanskrit- English Dictionary M. Moniar Williams (1899), Oxford.

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    Learn Sanskrit in 30 Days - K. Srinivasachari (2001), Chennai इत्याकद।

    शवद्वान िेखक द्वारा सरि पद्धशत में फ़ारसी-भाषा के माध्यम से संस्कृत शसखान ेका प्रयास ककया गया

    ह।ै िेखक का यह प्रयास अनायास न होकर सायास ह।ै संस्कृत को शबना समझे भारोपीय वगष (Indo-

    European Family) शविेषरूप स ेभारत-ईरानी वगष की भाषाओं का सही-सही शवशे्लषण व शववेचन सम्भव

    नहीं ह,ै और न ही भाषावैज्ञाशनक समस्याओं का सटीक समािान हो सकता ह।ै यही िेखक की भी अविारणा

    ह।ै उन्होंने प्राचीन ईरानी भाषाओं (Old Iranian Languages) को समझन ेमें सुकरता के शिए फ़ारसी भाषा

    में इस पुस्तक को शिखा ह।ै उपयुषक्त िन्थ ईरान के Centre for Great Islamic Encyclopaedia Tehran से

    2012 ई0 में प्रकाशित ह।ै सम्पूणष पुस्तक 168 पृष्ठों की ह।ै पुस्तक का मुद्रण, िीथोिािी एवं पृष्ठ सज्जा

    'साजमान प्रकािन' स ेहुआ ह।ै प्रथम संस्करण की 500 प्रशतया ंप्रकाशित हुई हैं। हाडषबैंड की इस पुस्तक की

    ISBN 9786006326085 संख्या ह।ै िन्थ ईरान के प्रशसद्ध इन्डोिॉशजस्ट डॉ0 ितहउल्िाह मुज्तबाई को

    समर्वपत ह।ै डॉ. हसन रज़ाई बाग़बीदी तेहरान शवश्वशवद्यािय के प्राचीन ईरानी भाषा शवभाग के एसोशियेट

    प्रोिेसर हैं। आप फ़ारसी, प्राचीन फ़ारसी, संस्कृत पहिवी इत्याकद भाषाओं के गम्भीर शवद्वान हैं। आपके द्वारा

    चौदहवें शवश्व संस्कृत सम्मेिन क्योतो (जापान) में 'पारसी संस्कृत' पर प्रस्तुत िोि िेख गाम्भीयषता, ज्ञानपूणष

    गवेषणा से पररपूररत था। यह िोििेख इस समीक्षक द्वारा पढ़ा गया ह।ै इसके अशतररक्त भारतशवद्या, प्राचीन

    भारत-ईरान सम्बन्ि पर कायष में भी आप सकक्रयता स ेप्रवृि हैं। आपके द्वारा संस्कृत वाङ्मय एवं भारतीय

    संस्कृशत पर अनेक िेख, िोि िेख, प्रबन्ि इत्याकद शिखे गये हैं। ईरान में बुझी हुई संस्कृतज्योशत को पुनः

    प्रज्ज्वशित करन ेका डॉ0 हसन रज़ाई बाग़बीदी का यह प्रयास भूरर-भूरर प्रिंसनीय हैं।

    सहायक-िन्थ सचूी

    1. मुक़द्दमात ए ज़बान ए संस्कृत (2012) बाग़दीदी डॉ0 हसन रज़ाई सेन्टर िॉर कद िेट इस्िाशमक

    इनसाइक्िोपीशडया तेहरान ईरान.

    2. Language, its nature, development and origin (1954), Jespersen Otto, London

    3. ईरान सकदयों के आइने में (1998 ई0), इिरत प्रो0 अमृतिाि.

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